हरियाली तीज कथा

छोटी कहानी इन हिंदीहरियाली तीज कथा

हरियाली तीज: झूलने का त्यौहार

हरियाली तीज, जिसे झूलने के त्यौहार के रूप में जाना जाता है, एक महत्वपूर्ण हिंदू त्यौहार है जो भगवान शिव और देवी पार्वती के पुनर्मिलन की स्मृति में मनाया जाता है। यह त्यौहार विशेष रूप से उत्तर भारत के राज्यों जैसे राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, और हरियाणा में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। हरियाली तीज की तारीख हिंदू कैलेंडर के श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि पर आती है, जो इस साल 7 अगस्त 2024 को है।

त्यौहार का महत्व और पौराणिक कथा

हरियाली तीज का मुख्य उद्देश्य भगवान शिव और देवी पार्वती के पुनर्मिलन का उत्सव है। शास्त्रों के अनुसार, देवी पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए 108 जन्म लिए थे। पार्वती ने शिवजी को खुश करने के लिए कठोर तपस्या की थी और अन्न-जल का त्याग किया था। उनके इस तपस्या के कारण, भगवान शिव ने उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया। इसलिए, हरियाली तीज विवाहित महिलाओं के लिए विशेष महत्व रखती है, जो अपने पति की लंबी उम्र और सुखी वैवाहिक जीवन की कामना करती हैं।

हरतालिका तीज की कथा के अनुसार, देवी पार्वती ने देवी शैलपुत्री के रूप में अवतार लिया, जो हिमालय की पुत्री थीं, जिन्होंने नारद के सुझाव पर भगवान विष्णु से विवाह करने का वचन दिया था। यह सुनकर, देवी पार्वती ने अपनी सहेली को अपने पिता के निर्णय के बारे में बताया, जिस पर सहेली देवी पार्वती को घने जंगल में ले गई ताकि उनके पिता उनकी इच्छा के विरुद्ध उनका विवाह भगवान विष्णु से न कर दें। तब से, इस दिन को हरितालिका तीज के रूप में जाना जाता है क्योंकि देवी पार्वती की महिला (आलिका) सहेली को भगवान शिव से विवाह करने के अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए उनका हरण (हरित) करना पड़ा था। पार्वती ने शिव लिंगम की पूजा करते हुए एक गुफा में तपस्वी जीवन जीने के लिए सभी भौतिकवादी अवकाश छोड़ दिए और सौ वर्षों तक भगवान शिव से प्रार्थना की। भाद्रपुष्प के शुक्ल पक्ष के तीसरे दिन, देवी पार्वती ने अपने बालों से एक शिवलिंग बनाया और प्रार्थना की। उनकी पूर्ण भक्ति से प्रसन्न होकर, उन्होंने देवी पार्वती से विवाह करने का वचन दिया और इस तरह पुनर्मिलन पूरा हुआ।

हरियाली तीज की पूजा विधि

हरियाली तीज के दिन, विवाहित महिलाएं विशेष रूप से भगवान शिव और देवी पार्वती की पूजा करती हैं। वे उपवास रखती हैं और पूजा के बाद तीज की कथा पढ़ती या सुनती हैं। इस दिन हरे रंग के कपड़े पहनने का विशेष महत्व है, जो हरियाली और प्रकृति की हरीतिमा का प्रतीक है। महिलाएं अपने घरों को हरे पत्तों से सजाती हैं और झूलों पर झूलती हैं।

हरितालिका तीज के दिन माता पार्वती और भगवान शिव की विधि-विधान से पूजा की जाती है। माना जाता है कि इस व्रत को रखने से अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है और कुंवारी कन्याओं को मनचाहा वर मिलता है। माना जाता है कि हरतालिका तीज के दिन भगवान शिव और माता पार्वती का पुनर्मिलन हुआ था। माता पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए कठोर तप किया था. इस तप को देखकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए और माता पार्वती को अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया। तभी से मनचाहे पति की इच्छा और लंबी आयु के लिए हरतालिका तीज का व्रत रखा जाता है। इस व्रत पर सुहागिन स्त्रियां नए वस्त्र पहनकर, मेंहदी लगाकर, सोलह श्रृंगार कर भगवान शिव और मां पार्वती की पूजा करती हैं।

माना जाता है की भगवान शिव ने माता पार्वती को भाद्रपद की शुक्ल तृतीया को दर्शन देकर विवाह का वर दिया था, और आशीर्वाद देते हुए मां पार्वती को कहा कि तुमने मेरी आराधना करके जो व्रत किया था, उसी के फलस्वरूप मेरा तुमसे विवाह हो सका। इसका महत्व यह है कि मैं इस व्रत को करने वाली कुंआरियों को मनोवांछित फल देता हूं। इसलिए सौभाग्य की इच्छा करने वाली प्रत्येक युवती को यह व्रत पूरी एकनिष्ठा तथा आस्था से करना चाहिए ।

इस व्रत की विधि इस प्रकार है-

इस दिन महिलाएं निर्जल (बिना कुछ खाए-पिए) रहकर व्रत करती हैं। इस व्रत में बालू-रेत से भगवान शंकर व माता पार्वती का मूर्ति बनाकर पूजन किया जाता है। घर को साफ-स्वच्छ कर तोरण-मंडप आदि से सजाएं। एक पवित्र चौकी पर शुद्ध मिट्टी में गंगाजल मिलाकर शिवलिंग, रिद्धि-सिद्धि सहित गणेश, पार्वती एवं उनकी सखी की आकृति (प्रतिमा) बनाएं।

प्रतिमाएं बनाते समय भगवान का स्मरण करें। देवताओं का आह्वान कर षोडशोपचार पूजन करें। व्रत का पूजन रात भर चलता है। महिलाएं जागरण करती हैं और कथा-पूजन के साथ कीर्तन करती हैं। प्रत्येक प्रहर में भगवान शिव को सभी प्रकार की वनस्पतियां जैसे बिल्व-पत्र, आम के पत्ते, चंपक के पत्ते एवं केवड़ा अर्पण किया जाता है। आरती और स्तोत्र द्वारा आराधना की जाती है।

भगवती-उमा की पूजा के लिए ये मंत्र बोलें-

ऊं उमायै नम:, ऊं पार्वत्यै नम:, ऊं जगद्धात्र्यै नम:, ऊं जगत्प्रतिष्ठयै नम:, ऊं शांतिरूपिण्यै नम:, ऊं शिवायै नम:

भगवान शिव की आराधना इन मंत्रों से करें-

ऊं हराय नम:, ऊं महेश्वराय नम:, ऊं शम्भवे नम:, ऊं शूलपाणये नम:, ऊं पिनाकवृषे नम:, ऊं शिवाय नम:, ऊं पशुपतये नम:, ऊं महादेवाय नम:

पूजा दूसरे दिन सुबह समाप्त होती है, तब महिलाएं अपना व्रत संपन्न करती हैं और अन्न ग्रहण करती हैं।

हरतालिका तीज व्रत के कुछ विशेष नियम हैं जिनका पालन अत्यंत आवश्यक है।

१. ये व्रत निराहार और निर्जला किया जाता है। व्रत के बाद अगले दिन जल ग्रहण करने का विधान है।

२. इस व्रत में कथा का विशेष महत्व है। कथा के बिना यह व्रत अधूरा माना जाता है।

३.इस व्रत में व्रती को शयन निषेध है।हरितालिका तीज का व्रत रखने वाली प्रत्येक महिला को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वे रात को सोए नहीं। इस दिन व्रत रखकर रात्रि जागरण कर भजन-कीर्तन और भगवान का ध्यान किया जाता है। कहते हैं कि अगर कोई व्रत के दिन सो जाता है, तो वे अगले जन्म में अजगर के रूप में जन्म लेती है।

४.अगले दिन सुबह पूजा के बाद किसी सुहागिन स्त्री को श्रृंगार का सामान, वस्त्र, खाने की चीजें, फल, मिठाई आदि का दान करना शुभ माना जाता है।

५. धार्मिक मान्यता है कि अगर आपने हरतालिका व्रत एक बार शुरू कर दिया, तो इसे आप छोड़ नहीं सकते। हरतालिका तीज का व्रत आपको हर साल रखना पड़ेगा और पूरे विधि-विधान से पूजा की जाती है।

६. व्रत करने वाली महिलाएं इस दिन खुद को क्रोध से दूर रखें। कहते हैं हरतालिका तीज के व्रत में महिलाओं को खुद पर संयम रखना चाहिए. क्रोध बिल्कुल नहीं करना चाहिए।

७. धार्मिक मान्यता है कि अगर आपने हरतालिका व्रत एक बार किसी भी कारण वश छोड़ दिया तो यह व्रत जीवन पर्यंत दुबारा नहीं रख सकती।

८. सुखद दांपत्य जीवन और मनचाहा वर प्राप्ति के लिए यह व्रत विशेष फलदायी है। व्रत करने वाले को मन में शुद्ध विचार रखने चाहिए। यह व्रत भाग्य में वृद्धि करने वाला माना गया है। इस व्रत के प्रभाव से घर में सुख शांति और समृद्धि आती है। नकारात्मक विचारों का नाश होता है।

तीज के दौरान गीत और नृत्य

हरियाली तीज के उत्सव का एक अनिवार्य हिस्सा झूला झूलना और लोकगीत गाना है। महिलाएं समूहों में एकत्रित होती हैं, पारंपरिक गीत गाती हैं और नृत्य करती हैं। ये गीत और नृत्य उत्सव के आनंद को बढ़ाते हैं और इसे जीवंत बनाते हैं।

क्षेत्रीय विविधताएँ

हरियाली तीज के रीति-रिवाज और परंपराएं विभिन्न क्षेत्रों में भिन्न हो सकती हैं। राजस्थान, हरियाणा और पंजाब जैसे राज्यों में इसे बहुत उत्साह के साथ मनाया जाता है और इसमें जुलूस, सांस्कृतिक प्रदर्शन और विस्तृत मेहंदी (मेंहदी) डिजाइनों का समावेश होता है। नेपाल में, यह एक राष्ट्रीय अवकाश है और सार्वजनिक स्थानों पर “पिंग” नामक झूले लगाए जाते हैं।

मेहंदी का महत्व

हरियाली तीज के उत्सव में मेहंदी का विशेष महत्व है। महिलाएं अपने हाथों और पैरों पर मेहंदी के सुंदर डिज़ाइन बनाती हैं। यह माना जाता है कि मेहंदी के गहरे रंग से पति का प्रेम अधिक होता है और सास के साथ अच्छे संबंध बनते हैं। मेहंदी के औषधीय गुण भी हैं, जो इसे मानसून के मौसम में उपयोग के लिए आदर्श बनाते हैं। यह बैक्टीरिया और वायरस से लड़ने में मदद करती है और महिलाओं को सामान्य सर्दी और अन्य बीमारियों से बचाती है।

धार्मिक-आध्यात्मिक चर्चा

हरियाली तीज के दौरान महिलाओं द्वारा किए जाने वाले कठोर व्रत और उपवास उन्हें देवी पार्वती की तरह अपने पति के प्रति निष्ठा और प्रेम की ओर प्रेरित करते हैं। यह त्यौहार प्रेम, भक्ति और प्राकृतिक कायाकल्प का प्रतीक है। तीज के दिन महिलाएं अपने पति के जीवन की लंबी आयु, उनके स्वास्थ्य और सौभाग्य के लिए भगवान शिव और देवी पार्वती से प्रार्थना करती हैं।

हरियाली तीज का आधुनिक संदर्भ

आजकल, हरियाली तीज को मनाने का तरीका बदल गया है, लेकिन इसकी आत्मा वही है। महिलाएं धार्मिक रूप से भोर में उठकर पूजा करती हैं, नए कपड़े पहनती हैं और खुद को गहनों से सजाती हैं। वे अपने परिवार और दोस्तों के साथ मिलकर इस त्यौहार को मनाती हैं और भक्ति गीत गाकर एवं नृत्य करके इस अवसर का जश्न मनाती हैं।

समापन छोटी कहानी इन हिंदीहरियाली तीज कथा

हरियाली तीज एक महत्वपूर्ण हिंदू त्यौहार है जो प्रेम, भक्ति और प्राकृतिक सौंदर्य का प्रतीक है। यह त्यौहार विवाहित महिलाओं को अपने पति के प्रति अपनी निष्ठा और प्रेम को प्रकट करने का अवसर देता है। हरियाली तीज के अवसर पर हम सभी को प्रेम, भक्ति और प्राकृतिक सौंदर्य का उत्सव मनाने का संदेश मिलता है। सभी विवाहित महिलाओं को हरियाली तीज की हार्दिक शुभकामनाएँ!

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