सत्संग सुनने का फल

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प्रेरक प्रसंग विद्यार्थियों के लिए 2024

एक बार देवर्षि नारद भगवान विष्णु के पास गए और उनसे सत्संग की महिमा सुनाने का अनुरोध किया। भगवान विष्णु मुस्कराते हुए नारद से बोले कि वे इमली के पेड़ के पास जाएँ, जहाँ उन्हें एक रंगीन प्राणी मिलेगा, जो सत्संग की महिमा जानता है और समझाएगा।

नारदजी इमली के पेड़ के पास पहुंचे और गिरगिट से सत्संग की महिमा के बारे में पूछा। सवाल सुनते ही गिरगिट पेड़ से नीचे गिर पड़ा और प्राण छोड़ दिए। आश्चर्यचकित नारदजी ने भगवान विष्णु को यह घटना सुनाई।

भगवान विष्णु ने मुस्कराते हुए नारद से कहा कि वे नगर के एक धनवान के घर जाएँ और वहाँ पिंजरे में बंद तोते से सत्संग की महिमा पूछें। नारदजी वहाँ पहुंचे और तोते से सत्संग का महत्व पूछा। थोड़ी देर बाद ही तोते की आँखें बंद हो गईं और उसके प्राणपखेरू उड़ गए।

नारदजी घबरा कर भगवान विष्णु के पास लौटे और पूछा कि क्या सत्संग का नाम सुनकर मरना ही सत्संग की महिमा है। भगवान हंसते हुए बोले कि उन्हें नगर के राजा के महल में जाना चाहिए और नवजात राजकुमार से सत्संग की महिमा पूछनी चाहिए।

नारदजी डरते हुए राजा के महल में पहुंचे, जहाँ उनका स्वागत किया गया। उन्होंने डरते-डरते राजा से नवजात राजकुमार के बारे में पूछा और राजकुमार के पास ले जाया गया। पसीने से तर होते हुए, मन-ही-मन श्रीहरि का नाम लेते हुए, नारदजी ने राजकुमार से सत्संग की महिमा के बारे में प्रश्न किया।

राजकुमार हंस पड़ा और बोला कि नारदजी अपनी महिमा नहीं जानते, इसलिए उनसे पूछ रहे हैं। राजकुमार ने बताया कि नारदजी के क्षणमात्र के संग से वह गिरगिट की योनि से मुक्त हो गया था और दर्शनमात्र से तोते की योनि से मुक्त होकर मनुष्य जन्म प्राप्त कर सका। नारदजी के सान्निध्य से उसकी कई योनियाँ कट गईं और वह राजकुमार बना। यह सत्संग का ही अद्भुत प्रभाव है।

राजकुमार ने नारदजी से आशीर्वाद मांगा कि वह मनुष्य जन्म के परम लक्ष्य को प्राप्त कर सके। नारदजी ने खुशी-खुशी आशीर्वाद दिया और भगवान श्री हरि के पास जाकर सब कुछ बताया। भगवान ने कहा कि सचमुच, सत्संग की बड़ी महिमा है। संत का सही गौरव या तो संत जानते हैं या उनके सच्चे प्रेमी भक्त। इसलिए जब कभी मौका मिले, सत्संग का लाभ जरूर लेना चाहिए। क्या पता किस संत या भक्त के मुख से निकली बात जीवन सफल कर दे।

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