जग रखवाला है मेरा भोला बाबा

भोले जी के भजन लिखित में जग रखवाला है मेरा भोला बाबा

कब से खड़ी हूं झोली पसार
क्यों ना सुनो तुम मेरी पुकार
जग रखवाला है मेरा भोला बाबा
सहारा देने वाला है मेरा भोला बाबा।


देख लो लगी है आज मंदिर में यह भीड़ भारी
दर्शनों की खातिर यहां आए हैं लाखों नर नारी
आ जाओ त्रिपुररी भक्तो ने पुकारा है मेरे भोले बाबा
जग रखवाला है मेरा भोला बाबा।


जिंदगी के हारे गम जमाने का ले हम हैं आए
आज इस जमाने में लोग अपने हुए हैं पराए
रे सिवा इस दुनिया में कोर ना हमारा है मेरे भोले बाबा
सहारा देने वाला है मेरा डमरू वाला।


रास्ता ना सुझे कहां जाएं मुसीबत के मारे
आसररा है तेरा दूर कर जा ये संकट हमारे
सुनते हैं तुमने ही लाखों को तारा है मेरे भोले बाबा
‘जग रखवाला है मेरा भोला बाबा।


आ गए शरण में बोझ पापों का सिर पर उठाए
‘कर नजर दया की भक्तजन तेरे ही गीत गाए
सेवा में तेरी हमने तो जीवन गुजारा है मेरे भोले बाबा
जीने का सहारा है मैरा भोले बाबा।

भोले जी के भजन लिखित में जग रखवाला है मेरा भोला बाबा

कालयवन ब्राह्मण कुल में पैदा जरूर हुआ था किन्तु मलएच्छ राजा ने उसे गोद लिया था तो परवरिश मलएच्छ की तरह हुई …

शक्तिशाली योद्धा श्री कृष्ण के सामने युद्ध को खड़ा है ….श्रीकृष्ण रणनीति को समझ गये, और बातों में बहलाकर भाग खड़े हुए.. ..सीधे मुचकुंद की गुफा तक दौड लगा दी …
मुचकुंद को सोता देख कालयवन ने समझ लिया कि यह कृष्ण है और मलएच्छ स्वभाव से लात मार दी, मुचकुंद की नजर सीधे कालयवन पर पडी…वरदानुसार कि बर्षों से सोये हुए मुचकुंद की जो निद्रा भंग करेगा वह भस्म हो जायेगा …कालयवन एक क्षण में धू धू करके भस्म हो गया!!

श्रीकृष्ण सिखा रहे है कि अगर युद्ध मलएच्छों से हो तो हर युद्ध लडकर नही जीता जाता , रणछोड भी बनना पड़ता है!!

जरासंध बार बार ,17बार आक्रमण करता रहा मथुरा पर ,हर बार कृष्ण उसको पराजित करके खदेड देते ,वह हर बार दुगुनी शक्ति से आक्रमण करता …
अपनी प्रजा की भलाई के लिए कृष्ण द्वारिका का निर्माण करते है और सबको द्वारिका वासी बनाते है ।
जरासंध मथुरा को पाकर खुश है …
श्री कृष्ण सब जानते है ,उनको पता है कि जरासंध को युद्ध से नही मल्लयुद्ध में छल से ही हराया जा सकता है ,उसके शरीर को चीरकर विपरीत दिशा में फेंकने से ही मृत्यु होगी और यह कार्य करने के लिए बलदाऊ से शक्तिशाली भला कौन होगा, किन्तु बलदाऊ छल का प्रयोग नही करेंगे,
इसलिए कृष्ण महाभारत की बिसात पर भीम को लेकर जरासंध के पास जाते है मल्लयुद्ध के लिए और छल से जरासंध का वध करवाते है !!

श्रीकृष्ण सिखा रहे हैं कि बडी विजय के लिए कर्म भूमि भी छोडनी पडती है किन्तु शत्रु को कभी जिन्दा नही छोड़ना चाहिए!!

शिशुपाल को जरासंध ने अपना वारिस बनाया था ,जरासंध की मृत्यु पर वह कृष्ण के प्रति नफरत की पराकाष्ठा पर था …जब सारा जग अग्रिम पूजा के लिए कृष्ण पर सहमति जता रहे है तब बह भरी सभा में वह कृष्ण को अपमानित कर गालियां दे रहा है ….100 गालीयां पूरी हुई, 101 गाली पर बिना एक पल गंवाये, माफी मांगने का भी समय नही दिया ,एक क्षण में सुदर्शन का आव्हान और इधर गर्दन धड़ से अलग !!

श्रीकृष्ण सिखा रहे हैं कि आखिरी गलती पर दुष्ट अपराधी को माफी मांगने का भी समय नही देना चाहिए और वध कर देना चाहिए!!

सागर मंथन में मनमोहिनी की उत्पत्ति ने स्वयंवर प्रथा को जन्म दिया , इस प्रथा ने स्त्री को उसके विवाह को लेकर वर चुनने का अधिकार दिया …
रूक्मणी का स्वयंवर होने जा रहा है किन्तु जिसको रूक्मणी ने वरण किया वह स्वयंवर में उपस्थित ही नही ..पत्र लिखती है कृष्ण को कि ..
” मैं आपसे प्रेम करती हूं ,मेरा आग्रह है कि मेरा हरण करके मुझे पत्नी रूप में स्वीकार करो नाथ”
कृष्ण पत्र पाकर तत्काल सहायता को निकल पडते हैं ।

श्रीकृष्ण सिखा रहे हैं कि स्त्री जिस किसी को भी ह्रदय से अपना पति स्वीकार करती है भले ही वह किसी भी कुल की हो यह उसका अधिकार है …इसके लिए हरणकरता भी बनना पडता है !!

जब प्रेम ह्रदय में हो तब युद्ध की बातें निरर्थक हो जाती है …युद्ध का मार्ग ही शान्ति और प्रेम की तरफ जाता है ।
कृष्ण राधा का प्रेम अमर है किन्तु कृष्ण की कर्म स्थली मथुरा है , अपने अवतार को सार्थक करने के लिए अपने प्रेम को एक वचन के साथ विरह की पीडा में छोड जाते है , वृन्दावन की हर गोपी राधा है विरह में ,कृष्ण के लौटने की प्रतीक्षा में सारा जीवन दान कर देती है, बाधा नही बनती कृष्ण के कर्मपथ में !!

श्रीकृष्ण सिखा रहे हैं कि कर्म पथ पर प्रेम को भी त्यागना पड्ता है , प्रेम में छल ,कपट ,नीचता नही होती , प्रेम सदा कर्म पथ पर सहायक होता हैं

एक सभा में पति ,पिता ,ससुर राजा सभी उपस्थित है , इस पुरूषों से भरी सभा में एक स्त्री असहाय, खडी अपमानित हो रही है ,कोई सहायता को आगे नही आता , द्रोपदी की एक पुकार पर कृष्ण चीर को बढाकर स्त्री की अस्मिता की रक्षा करते हैं ।
स्त्री के मान के महाभारत की रूपरेखा रखने वाले

श्रीकृष्ण सिखा रहे हैं कि …जब सारे मार्ग बन्द हो जाए तब ईश्वर ही हमें सम्भालता है , स्त्री के स्वाभिमान के लिए कृष्ण सारथी भी बन जाते हैं !!

माखनचोर बनकर बाल लीला करने बाले कृष्ण सिखा रहे है कि बचपन अबोध होता है , दूध और माखन बच्चों के शरीर का सम्पूर्ण आहार होता है ….गायों का चरवाहा बनकर गाय की उपयोगिता का संदेश दे रहे है कृष्ण!!

भौतिक संसाधनो के बीच रहकर, वैभव को भोगकर,गृहस्थ रहकर कैसै वैरागी बना जाता है यह श्रीकृष्ण सिखाते हैं !!