भोले बाबा के ढोलक वाले भजन लिरिक्स चुन चुन लाई
चुन चुन लाई भोला फूल बेल पाती
जटा इधर-उधर पूजा करने दे, करने दे
1. ओ भोले तेरे सर पे है गंगा जल में कैसे चढ़ाऊं
गंगा हटा लो जल में चढ़ा दूं, कर डालूं श्रृंगार हो
2. ओ भोले तेरे सर पर है चंदा चंदन कैसे लगाऊं
चंदा हटा लो चंदन लगा दूं कर डालूं श्रृंगार हो
3. ओ भोले तेरे कानों में बिच्छू कुंडल कैसे पहनाऊं
बिच्छू हटा लो कुंडल पहना दूं कर डालूं श्रृंगार हो
4. ओ भोले गले नाग है काला माला कैसे पहनाऊं
नाग हटा लो माला पहना दूं कर डालूं श्रृंगार हो
5. ओ भोले तेरा भोग है भंगिया लड्डू कैसे चढ़ाऊं
भंगिया हटा लो लह चढ़ा दूं हो जाऊं भव से पार हो
भोले बाबा के ढोलक वाले भजन लिरिक्स चुन चुन लाई
प्ररणादायक कहानी
संन्तो का डांटना
पवन तोमर
//संन्तो की क्षमा श्राप से भी भारी है//
अगर संन्त तुम्हारे अपराध पर कुछ ना बोले और तुम्हें क्षमा कर दे तो जान लेना कि तुम्हारी दुर्गति निश्चित है
अगर डांट दिया तो समझना की कोई आने वाली/वला/या संकट टल गया,,,,,
एक संन्त नाव में बैठकर गंगा पार कर रहे थे और उनके साथ उनका शिष्य भी था
तभी नाव में दो पुलिस के कर्मचारी भी चढे जिनके पास पुरानी चाकू वाली बन्दूक थी
नाव में जगह कम होने पर सन्त और शिष्य सिमट कर बैठ गए
तभी एक पुलिस वाले ने अभियान में आकर शिष्य के जूते की ठोकर मारी और बोला चल साइड में बैठ
शिष्य और चुपक कर बैठ गया लेकिन शान्त बैठा रहा कुछ ना बोला
तभी दूसरे पुलिस वाले ने शिष्य में दो थप्पड़ मार दिए फिर भी शिष्य कुछ न बोला और शांन्त बैठा रहा तभी नाव किनारे पर आई,,
आप को बता दें कि नाव कभी भी पूरी तरह किनारे पर नहीं आती थोड़े गहरे पानी में ही रहतीं हैं
तभी एक पुलिस वाले ने जूते कपड़े भीगने से बचने के लिए उसने बन्दूक को पानी में खड़ा करके नाव से छंलाग लगाई तभी उसका बैलैन्स बिगड़ गया और बन्दूक पर लगा चाकू उसके गर्दन चीरता हुआ घुस गया और वह मर गया
तभी गुरुजी ने देखा तो शिष्य में थप्पड़ लगा दिये तभी वहा खड़े लोग बोले महाराज इसका क्या दोष है
गुरुजी वोले अगर इसने थोड़ा सा भी डांट दिया होता तो वह पुलिस वाला नहीं मरता इसने उससे कुछ नही वोला इस लिए उसका विनाश हो गया
इसलिए संन्त कुछ ना वोले तुम्हारी गलती पर तो यह ना समझना की वो डर गया या दब गया
क्योंकि संन्त शांत स्वभाव के होते हैं इसलिए तुम्हारी गलती देख कर भी नजरअंदाज कर देते हैं
लेकिन उनका मालिक दंड ज़रूर देता
/कबीर जी कहते हैं/
दुखिया को ना सताइए,, दुखिया देगा रोए
जब दुखिया का मुखिया सुने,, तब तेरी गति क्या होए
इन संन्तो को ऐसा ना समझो कि ये अन्नाथ है ये भगवान के साक्षात पार्षद हैं। जिनके लिए भगवान कहते हैं
अहम भक्त पराधिनो
में भक्त के पराधीन हूं ,,और भक्त मेरे पराधीन है
जय श्री रामजय श्री कृष्णा
हर हर महादेव
पागल बाबा मंदिर की कहानी
भगवान श्री कृष्ण की जन्मभूमि में हर जगह आपको भगवान क़ृष्ण से जुड़े कुछ न कुछ आश्चर्य दिखाई दे ही जाएंगे। कहा जाता है कि इसकी वजह यहां कण-कण में भगवान श्रीकृष्ण का वास है। वृन्दावन में भी आपको ऐसे कई आश्चर्य दिखाई दे जाएंगे। यहां कई ऐसे सन्त भी हुए हैं, जिनके चमत्कारों के किस्से हमेशा चर्चा में रहते रहे हैं। आज भी अनेक संत हैं, जिनके आश्चर्यजनक चमत्कारों को यहां आने वाले श्रद्धालु अक्सर देखते रहते हैं। ऐसा ही एक चमत्कार है, पागल बाबा का मंदिर और उसके पागल बाबा। पागल बाबा और उनके इस मंदिर के निर्माण की कहानी दोनों ही बेहद दिलचस्प है।
पागल बाबा मंदिर मथुरा-वृन्दावन मार्ग पर स्थित है। इसके बारे में एक कथा जनमानस में आज भी प्रचलित है। इसके अनुसार एक गरीब कृष्ण भक्त ब्राह्मण दिनभर ठाकुरजी का नाम जपता रहता था। उसके पास जो कुछ भी था या यूं कहें कि जितना भी रूखा-सूखा उसे मांगकर खाने को मिलता, वह उसे भगवान की मर्जी समझकर खुशी-खुशी ग्रहण करते हुए अपना जीवन व्यतीत कर रहा था।
एक बार उसे कुछ पैसों की जरूरत पड़ी तो वह किसी साहूकार से पैसे लेने के लिए गया। साहूकार ने उसे पैसे देते हुए कहा कि उसे जल्द ही पैसे लौटाने होंगे। उसकी बात मानकर वह पैसे लेकर घर आ गया। वह ब्राह्मण हर महीने नियम से किश्त का हिसाब करके साहूकार के पैसे लौटाने जाता था। आखिरी किश्त के थोड़े दिन पहले ही साहूकार ने वसूली का एक पत्र उसके घर भिजवा दिया। यह देखकर ब्राह्मण बहुत परेशान हुआ और साहूकार से विनती करने लगा लेकिन साहूकार नहीं माना। मामला अदालत में पहुंच गया। ब्राह्मण ने जज लीलानंद ठाकुर से अनुरोध करते हुए कहा कि एक किश्त के अलावा उसने साहूकार का सारा कर्ज अदा कर दिया है। यह साहूकार झुठ बोल रहा है। यह सुनकर साहूकर ने क्रोधित होकर दलील दी कि उसने कोई गलत व्यवहार नहीं किया है। जिस किसी के भी सामने आरोपी ने धन लौटाया हो, उसे अदालत में पेश किया जाना चाहिए। इतना सुनकर ब्राह्मण सोच में डूब गया क्योंकि साहूकार को जब-जब धन लौटाया गया, तब उसका कोई भी गवाह नहीं था।
इस बारे में बहुत सोचते हुए ब्राह्मण को अंत में अपने भगवान की याद आई और गवाह के रूप में उसने भगवान कृष्ण का नाम लिया। यह सुनकर पहले तो जज साहब कुछ हैरान हुए लेकिन बाद में ब्राह्मण से उनका पता मांगा गया। ब्राह्मण के कहने पर एक नोटिस बांके बिहारी के मंदिर में भेजा गया। पेशी की अगली तारीख पर एक बूढ़ा आदमी कोर्ट में पेश हुआ और ब्राह्मण की तरफ से गवाही देते हुए बोला कि जब ब्राह्मण साहूकार के पैसे लौटाता था तब मैं उसके साथ ही होता था। बूढ़े आदमी ने रकम वापस करने की हर तारीख को कोर्ट में मुंहजुबानी बताया जैसे उसे सब-कुछ एक-एक तारीख के हिसाब से याद हो। साहूकार के खाते में भी बूढ़े आदमी द्वारा बताई गई रकम की तारीख भी सही निकली। साहूकार ने राशि तो दर्ज की थी लेकिन नाम फर्जी लिखे थे। इसके आधार पर जज ने ब्राह्मण को निर्दोष करार दे दिया। लेकिन, जज अब तक हैरान थे कि इतना बूढ़ा आदमी इतनी तारीखें कैसे याद रख सकता है। जज साहब ने उसके बारे में उस ब्राह्मण से पूछा कि यह बूढ़ा आदमी कौन है। तो, ब्राह्मण ने उत्तर दिया कि वह सब जगह रहता है लोग उन्हें श्याम, कान्हा, कृष्ण आदि नामों से जानते हैं। इसके बाद जज साहब ने फिर से उसको पूछा कि वह बूढ़ा आदमी कौन था फिर ब्राह्मण ने कहा सच में उसे नहीं पता कि वह कौन थे।
जज साहब को इस बात से बड़ी हैरानी हुई। उनके मन में सवाल पर सवाल आ रहे थे कि आखिर वह आदमी कौन था। इसी पहेली को सुलझाने के लिए जज साहब स्वयं अगले दिन बांके बिहारी के मंदिर में पहुंच गए। वह जानना चाहते थे कि आखिर बीते दिन जो आदमी अदालत में आया था, वह कौन था। मंदिर के पुजारी से जब जज साहब ने पूछा और सारे घटनाक्रम की जानकारी करते हुए बात की तो पुजारी ने उन्हें बताया कि जो भी चिट्ठी-पत्री यहां आती है उसे भगवान के चरणों रख दिया जाता है। जज साहब ने उस बूढ़े आदमी के बारे में भी पूछा लेकिन पुजारी ने कहा ऐसा कोई भी आदमी यहां नहीं रहता है। ये सब बातें सुनने के बाद जज साहब को लगा कि वह साक्षात श्रीकृष्ण ही रहे होंगे।
इस घटना का जज पर इतना असर पड़ा कि अपने आपको धन्य मानते हुए उन्होंने अपने पद से ही इस्तीफा दे दिया और घर-परिवार भी छोड़ दिया और, स्वयं एक संत बन गए।
स्थानीय लोगों का मानना है कि बहुत सालों बाद वह जज ‘पागल बाबा’ के नाम से वृन्दावन में वापस लौटे और उन्होंने पागल बाबा मंदिर का निर्माण कराया। तब से यह मंदिर पागल बाबा मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है।
इस मंदिर के निर्माण के बारे में एक और प्रचलित मान्यता यह भी है कि जब जज साहब को पता लगा कि उनके सामने साक्षात श्रीकृष्ण ही कोर्ट में पेश हुए थे। तब से वह श्रीकृष्ण को ढूंढने के लिए इतने अधीर हो गए कि अपनी सुध-बुध खो बैठे थे। इस घटना ने उन्हें पागल सा कर दिया था। इसके बाद वह जिस किसी भंडारे में जाते थे वहां से पत्तलों की जूठन उठाते थे और उसमें से आधा जूठन ठाकुर जी को अर्पित करते थे और आधा खुद खाते थे। उन्हें ऐसा करते देख लोग उनके खिलाफ हो गए और लोगों ने उन्हें मारना-पीटना भी शुरू कर दिया लेकिन वह अपनी सुध-बुध खोकर प्रत्येक दिन भण्डारों का जूठन खुद खाते और भगवान को भी खिलाते रहते थे। हारकर लोगों ने उन्हें एक पागल के रूप में मान लिया। धीरे-धीरे उनका नाम ही ‘पागल बाबा’ पड़ गया।
कहा जाता है कि उनसे परेशान होकर लोगों ने एक बार उनके खिलाफ एक योजना बनाई। जिसके अनुसार लोगों ने भण्डारे में अपनी पत्तलों में कुछ न छोड़ा ताकि वह ठाकुरजी को जूठन न खिला सके। उन्होंने फिर भी सभी पत्तलों को पोंछकर एक निवाला इकट्ठा कर ही लिया और अपने मुंह में डाल लिया। लेकिन, इस आपाधापी में वह ठाकुरजी को भोग लगाना भूल गए। इस बात का अहसास होते ही वह बिना ठाकुरजी को भोग लगाए ही निवाला मुंह में रख गए हैं, तो उन्होंने अपना निवाला गले के नीचे नहीं जाने दिया। उन्हें लगा कि अगर वह पहले खा लेंगे तो ठाकुरजी का अपमान हो जाएगा और अगर थूक दिया तो अन्न का अपमान हो जाएगा। अब वह निवाला मुंह में लेकर ठाकुर जी के चरणों का ध्यान करने लगे। तभी अचानक से बाल-गोपाल एक सुंदर से लड़के के रूप में पागल बाबा यानी जज साहब के पास आया और बोला क्यों आज मेरा भोजन खा गए। यह सुनकर जज साहब की आंखें आसुओं से भर गईं और वह बोले कि ठाकुरजी बड़ी भूल हो गई है, माफ कर दो। ठाकुरजी भी मुस्कुराते हुए बोले कि आज तक तुमने मुझे लोगों का जूठा खिलाया है किंतु आज अपना ही जूठा ही खिला दे। जज साहब की आंखों से आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे। इस घटना के बाद उनके अनुयायियों की संख्या बढ़ने लगी।
कालांतर में, बाबा ने एक विशाल मंदिर प्रस्थापना का प्रण लिया और विशाल भण्डारा का आयोजन किया। अपार जनसमूह उमड़ा लेकिन बाबा का भण्डार खाली होने का नाम ही नहीं ले रहा था बाबा ने मंदिर में विशाल रसोई का निर्माण कराया तथा मंदिर के नीचे विशाल भण्डार घर बनवाया। उसी समय आयकर विभाग ने छापा मारा कि इतना अनाज और भण्डारे का सामान कहां से आ रहा है। बाबा का चमत्कार तब भी हुआ, जब पूरी टीम भण्डार घर में घुसी तो उसे वहां कुछ भी नजर नहीं आया वह आश्चर्य चकित हो गए कि जब यहां कोई सामान है ही नहीं तो इतना विशाल भण्डारा कैसे चल रहा है। हैरान परेशान आयकर के अधिकारी वहां से चले गए।
बाबा के देशभर में भक्त विशेषकर असम, बंगाल व उड़ीसा के औद्योगिक घरानों व मारवाड़ी परिवारों से आते हैं। बाबा मूलरूप से सापटग्राम असम से थे और वहां भी उनका एक विशाल मंदिर है।
पागल बाबा अपने पास एक लाल रंग का बड़ा सा रुमाल रखते थे और हर किसी के सिर पर उसे रखकर आशीर्वाद देते थे। साथ ही, व्यापारियों को समय-समय पर समाज में जरूरत की वस्तुओं के विषय में तेजी-मंदी के गुर भी बताते थे। इससे व्यापारियों को बड़ा लाभ होता था। बड़ी संख्या में मारवाड़ी और देश के बड़े औद्योगिक घरानों के लोग बाबा के अनन्य शिष्य बन गए। आज तक उनके परिवार भी बाबा के भक्त हैं और बाबा की शक्तियों को महसूस करते हैं। बाबा की आकर्षक छवि लिए श्याम वर्ण के बाबा में हर किसी को अपनी ओर संम्मोहित करने की शक्ति थी।
पागल बाबा को समर्पित यह विशाल मंदिर आज भी वृन्दावन में मौजूद है। कहा जाता है कि यहां से कोई भी भक्त खाली हाथ नहीं जाता है। यहां भक्तों की हर मनोकामना बाबा और उनके कान्हा जरूर सुनते हैं। यह दस मंजिली इमारत अपने आप में अनूठी है और वृंदावन की एक सशक्त पहचान भी है। यह मंदिर सबसे निचली मंजिल पर लगने वाली कठपुतलियों की प्रदर्शनी के लिए भी प्रसिद्ध है। यहां कठपुतली के खेल के जरिए महाभारत और रामायण महाकाव्यों को दर्शकों के सामने रखा जाता है।
बाबा ने साल 1977 में एक धर्मार्थ ट्रस्ट की स्थापना की। बाबा के आदेश पर बने अस्पताल में बिना सरकारी मदद के जनरल ओपीडी, आंखों का अस्पताल, आयुर्वेदिक, होम्योपैथिक, विभाग पागल बाबा महाराज के भक्त परिवारों के सहयोग से चल रहे हैं। हाल में कोरोना जैसी महामारी से परेशान लोगों के लिए ऑक्सीजन प्लांट लगाने व ऑक्सीजन सिलेंडर की निर्भरता खत्म करने के कार्य किए जा रहे हैं।