रचा है सृष्टि को जिस प्रभु ने,
रचा है सृष्टि को जिस प्रभु ने,
वही ये सृष्टि चला रहे है,
जो पेड़ हमने लगाया पहले,
रचा है सृष्टि को जिस प्रभु ने,
वही ये सृष्टि चला रहे है ॥इसी धरा से शरीर पाए,
इसी धरा में फिर सब समाए,
है सत्य नियम यही धरा का,
है सत्य नियम यही धरा का,
एक आ रहे है एक जा रहे है,
रचा है सृष्टि को जिस प्रभु ने,
वही ये सृष्टि चला रहे है ॥
जिन्होने भेजा जगत में जाना,
तय कर दिया लौट के फिर से आना,
जो भेजने वाले है यहाँ पे,
जो भेजने वाले है यहाँ पे,
वही तो वापस बुला रहे है,
रचा है सृष्टि को जिस प्रभु ने,
वही ये सृष्टि चला रहे है ॥
बैठे है जो धान की बालियो में,
समाए मेहंदी की लालियो में,
हर डाल हर पत्ते में समाकर,
हर डाल हर पत्ते में समाकर,
गुल रंग बिरंगे खिला रहे है,
रचा है सृष्टि को जिस प्रभु ने,
वही ये सृष्टि चला रहे है ॥
रचा है सृष्टि को जिस प्रभु ने,
वही ये सृष्टि चला रहे है,
जो पेड़ हमने लगाया पहले,
उसी का फल हम अब पा रहे है,
रचा है सृष्टि को जिस प्रभु ने,
वही ये सृष्टि चला रहे है
रचा है सृष्टि को जिस प्रभु ने लिरिक्स
कार्तिक मास की कहानी
श्रीमत्कुंजबिहारिणे नमः।।
कार्तिक स्नान बुढ़िया माई की कहानी 1
एक बुढिया माई थी जों चातुर्मास में पुष्कर स्नान किया करती थी | उसके एक बेटा और बहु थी |
सास ने बहु को सैगार { उपवास में खाने योग्य } बनाने को कहा तो बहु ने जमीन के पापडे बांध दिए |
बेटा माँ को पहुचाने के लिए पुष्कर गया | रास्ते में माँ से बोला माँ सैगार कर ले |
जहाँ पानी मिला वही सैगार करने बेठ गई तो पापडे फलाहार बन गये |
पुष्कर माँ के रहने के लिए झोपडी बना कर बेटा वापस घर आ गया |
रात्रि में श्रावण मास आया और बोला बुढिया माई दरवाजा खोल तब बुढिया माई से पूछा तू कोन है ?
मैं श्रावण , बुढिया ने तुरंत दरवाजा खोल दिया |
बुढिया ने शिव पार्वती की पूजा अर्चना की बेलपत्र से अभिषेक किया जाते समय श्रावण ने झोपडी के लात मारी झोपडी की एक दीवार सोने की हो गई |
भाद्रपद मास आया उसने भी दरवाजा खोलने को कहा , बुढिया ने दरवाजा खोला सत्तु बना कर कजरी तीज मनाई भाद्रपद भी लात मार गया तो दूसरी दीवार हीरे की हो गई |
फिर आशिवन मास आया और उसने भी दरवाजा खोलने को कहा , बुढिया ने दरवाजा खोला , पितरो का तर्पण कर ब्राह्मण भोज करा कर श्राद्ध किया |
। नव रात्रि में माँ दुर्गा को अखंड ज्योति जलाकर प्रसन्न किया सत्य की विजय दिवस के रूप में बुराई का अंत की ख़ुशी में दशहरा मनाया |
आशिवन मास ने लात मारी और तीसरी दीवार भी बहुमूल्य रत्नों से जडित हो गई |
इन सब के बाद कार्तिक मास आया उसने भी दरवाजा खोलने को कहा | बुढिया ने दरवाजा खोला अति प्रसन्न मन से कार्तिक स्नान किया दीपदान कर दीवाली , गोरधन पूजा , भईया दूज , आवला नवमी मनाई ।
कार्तिक मास ने जाते समय लात मारी तो झोपडी के स्थान पर महल बन गया | बुढिया तन मन धन से गरीबो की सेवा कर भजन कीर्तन में अपना समय व्यतीत करने लगी |
बेटा अपनी माँ को लेने आया तो माँ और झोपडी को पहचान न सका तो पड़ोसियों से पूछा | उन्होंने बताया तो बेटा माँ के चरणों में गिरकर बोला माँ घर चलो | सारे सामान के साथ घर ले आया |
सास के ठाठ देखकर बहु के मन में लालच आ गया और उसने अपनी माँ को भी पुष्कर छोडकर आने को कहा तो उसका पति अपनी सास को भी छोड़ आया | और सास चार समय भोजन करती और दिन भर सोती चारो मास आये और चले गये जाते जाते झोपडी को लात मारी और झोपडी गिर गई और बहु की माँ गधी की योनि में चली गई क्यों की ओरत लक्ष्मी का रूप है और लक्ष्मी की तरह चंचल होना चाहिए भगवान की पूजा और अतिथि का समान करना चाहिए |
बहु ने कहा अब माँ को ले आवो ,जब जवाई सास को लेने गया तो कही न मिली , लोगो से पूछने पर लोगो ने बताया की तेरी सास धर्म कर्म कुछ न करती थी खाती थी और सोती थी जिससे वह गधी बन गई |
।जवाई गधी [ साँस ] को बांध कर घर ले आया उसकी पत्नी ने पूछा मेरी माँ कहा है तब पति ने कहा तेरे लालच की वजह से तेरी माँ गधी बन गई |
बड़े बड़े विद्वानों ,ब्राह्मण ,ऋषि ,मुनियों से पूछने पर उन्होंने बताया की तेरी साँस के स्नान किये पानी से स्नान करने पर उसे मनुष्य योनि मिलेगी |
तब बहु ने ऐसा ही किया और उसकी माँ पुन: मनुष्य योनि में आ गई |
हे ! राधा – दामोदर भगवान जेसा बुढिया माई को दिया वैसा सबको देना कहता न , सुनता न , हूकारा भरता न म्हारा सारा परिवार न |
|| वन्दे विष्णु || || वन्दे विष्णु || || वन्दे विष्णु |
जय श्री कृष्णा राधे राधे जी
*भोले भक्त की भक्ति (कहानी)*
*एक गरीब बालक था जो कि अनाथ था। एक दिन वो बालक एक संत के आश्रम में आया और बोलाक्ष कि बाबा आप सब का ध्यान रखते है, मेरा इस दुनिया मेँ कोई नही है तो क्या मैँ यहाँ आपके आश्रम में रह सकता हूँ ?*
*बालक की बात सुनकर संत बोले बेटा तेरा नाम क्या है ? उस बालक ने कहा मेरा कोई नाम नहीँ हैँ।*
*तब संत ने उस बालक का नाम रामदास रखा और बोले की अब तुम यहीँ आश्रम मेँ रहना। रामदास वही रहने लगा और आश्रम के सारे काम भी करने लगा।*
*उन संत की आयु 80 वर्ष की हो चुकी थी। एक दिन वो अपने शिष्यो से बोले की मुझे तीर्थ यात्रा पर जाना हैँ तुम मेँ से कौन कौन मेरे मेरे साथ चलेगा और कौन कौन आश्रम मेँ रुकेगा ?*
*संत की बात सुनकर सारे शिष्य बोले की हम आपके साथ चलेंगे.! क्योँकि उनको पता था की यहाँ आश्रम मेँ रुकेंगे तो सारा काम करना पड़ेगा इसलिये सभी बोले की हम तो आपके साथ तीर्थ यात्रा पर चलेंगे।*
*अब संत सोच मेँ पड़ गये की किसे साथ ले जाये और किसे नहीँ क्योँकि आश्रम पर किसी का रुकना भी जरुरी था।*
*बालक रामदास संत के पास आया और बोला बाबा अगर आपको ठीक लगे तो मैँ यहीँ आश्रम पर रुक जाता हूँ।*
*संत ने कहा ठीक हैँ पर तुझे काम करना पड़ेगा आश्रम की साफ सफाई मे भले ही कमी रह जाये पर ठाकुर जी की सेवा मे कोई कमी मत रखना।*
*रामदास ने संत से कहा की बाबा मुझे तो ठाकुर जी की सेवा करनी नहीँ आती आप बता दिजिये के ठाकुर जी की सेवा कैसे करनी है ? फिर मैँ कर दूंगा।*
*संत रामदास को अपने साथ मंदिर ले गये वहाँ उस मंदिर मे राम दरबार की झाँकी थी। श्रीराम जी, सीता जी, लक्ष्मण जी और हनुमान जी थे।*
*संत ने बालक रामदास को ठाकुर जी की सेवा कैसे करनी है सब सिखा दिया।*
*रामदास ने गुरु जी से कहा की बाबा मेरा इनसे रिश्ता क्या होगा ये भी बता दो क्योँकि अगर रिश्ता पता चल जाये तो सेवा करने मेँ आनंद आयेगा।*
*उन संत ने बालक रामदास कहा की तू कहता था ना की मेरा कोई नहीँ हैँ तो आज से ये राम जी और सीता जी तेरे माता-पिता हैँ।*
*रामदास ने साथ मेँ खड़े लक्ष्मण जी को देखकर कहा अच्छा बाबा और ये जो पास मेँ खड़े है वो कौन है ?*
*संत ने कहा ये तेरे चाचा जी है और हनुमान जी के लिये कहा की ये तेरे बड़े भैय्या है।*
*रामदास सब समझ गया और फिर उनकी सेवा करने लगा। संत शिष्योँ के साथ यात्रा पर चले गये।*
*आज सेवा का पहला दिन था, रामदास ने सुबह उठकर स्नान किया ,आश्रम की साफ़ सफाई की,और भिक्षा माँगकर लाया और फिर भोजन तैयार किया फिर भगवान को भोग लगाने के लिये मंदिर आया।*
*रामदास ने श्री राम सीता लक्ष्मण और हनुमान जी आगे एक-एक थाली रख दी और बोला अब पहले आप खाओ फिर मैँ भी खाऊँगा।*
*रामदास को लगा की सच मेँ भगवान बैठकर खायेंगे. पर बहुत देर हो गई रोटी तो वैसी की वैसी थी।*
*तब बालक रामदास ने सोचा नया नया रिश्ता बना हैँ तो शरमा रहेँ होँगे। रामदास ने पर्दा लगा दिया बाद मेँ खोलकर देखा तब भी खाना वैसे का वैसा पडा था।*
*अब तो रामदास रोने लगा की मुझसे सेवा मे कोई गलती हो गई इसलिये खाना नहीँ खा रहेँ हैँ !*
*और ये नहीँ खायेंगे तो मैँ भी नहीँ खाऊँगा और मैँ भूख से मर जाऊँगा..! इसलिये मैँ तो अब पहाड़ से कूदकर ही मर जाऊँगा।**
*रामदास मरने के लिये निकल जाता है तब भगवान राम जी हनुमान जी को कहते हैँ हनुमान जाओ उस बालक को लेकर आओ और बालक से कहो की हम खाना खाने के लिये तैयार हैँ।*
*हनुमान जी जाते हैँ और रामदास कूदने ही वाला होता हैँ की हनुमान जी पीछे से पकड़ लेते हैँ और बोलते हैँ क्याँ कर रहे हो?*
*रामदास कहता हैँ आप कौन ? हनुमान जी कहते है मैँ तेरा भैय्या हूँ इतनी जल्दी भूल गये ?*
*रामदास कहता है अब आये हो इतनी देर से वहा बोल रहा था की खाना खा लो तब आये नहीँ अब क्योँ आ गये ?*
*तब हनुमान जी बोले पिता श्री का आदेश हैँ अब हम सब साथ बैठकर खाना खायेँगे। फिर राम जी, सीता जी, लक्ष्मण जी , हनुमान जी साक्षात बैठकर भोजन करते हैँ।*
*इसी तरह रामदास रोज उनकी सेवा करता और भोजन करता।*
*सेवा करते 15 दिन हो गये एक दिन रामदास ने सोचा घर मैँ ५ लोग हैं,सारा काम में ही अकेला करता हुँ ,बाकी लोग तो दिन भर घर में आराम करते है.मेरे माँ, बाप ,चाचा ,भाई तो कोई काम नहीँ करते सारे दिन खाते रहते हैँ. मैँ ऐसा नहीँ चलने दूँगा।*
*रामदास मंदिर जाता हैँ ओर कहता हैँ पिता जी कुछ बात करनी हैँ आपसे।राम जी कहते हैँ बोल बेटा क्या बात हैँ ?*
*रामदास कहता हैँ की घर में मैं सबसे छोटा हुँ ,और मैं ही सब काम करता हुँ।अब से मैँ अकेले काम नहीँ करुंगा आप सबको भी काम करना पड़ेगा,आप तो बस सारा दिन खाते रहते हो और मैँ काम करता रहता हूँ अब से ऐसा नहीँ होगा।*
*राम जी कहते हैँ तो फिर बताओ बेटा हमेँ क्या काम करना है?रामदास ने कहा माता जी (सीताजी) अब से रसोई आपके हवाले. और चाचा जी (लक्ष्मणजी) आप घर की साफ़ सफाई करियेगा*
*भैय्या जी (हनुमान जी)शरीर से मज़बूत हैं ,जाकर जंगल से लकड़ियाँ लाइयेंगे. पिता जी (रामजी) आप बाज़ार से राशन लाइए और घर पर बैठकर पत्तल बनाओँगे। सबने कहा ठीक हैँ।मैंने बहुत दिन अकेले सब काम किया अब मैं आराम करूँगा*.
*अब सभी साथ मिलकर काम करते हुऐँ एक परिवार की तरह सब साथ रहने लगेँ।*
*एक दिन वो संत तीर्थ यात्रा से लौटे तो देखा आश्रम तो शीशे जैसा चमक रहा है, वो बहुत प्रसन्न हुए.मंदिर मेँ गये और देखा की मंदिर से प्रतिमाऐँ गायब हैँ*.
*संत ने सोचा कहीँ रामदास ने प्रतिमा बेच तो नहीँ दी ? संत ने रामदास को बुलाया और पूछा भगवान कहा गये*
*रामदास भी अकड़कर बोला की मुझे क्या पता हनुमान भैया जंगल लकड़ी लाने गए होंगे,लखन चाचा झाड़ू पोछा कर रहे होंगे,पिताजी राम पत्तल बन रहे होंगे माता सीता रसोई मेँ काम कर रही होंगी.*
*संत बोले ये क्या बोल रहा ? रामदास ने कहा बाबा मैँ सच बोल रहा हूँ जब से आप गये हैँ ये चारोँ काम मेँ लगे हुऐँ हैँ*।
*वो संत भागकर रसोई मेँ गये और सिर्फ एक झलक देखी की सीता जी भोजन बना रही हैँ राम जी पत्तल बना रहे है और फिर वो गायब हो गये और मंदिर मेँ विराजमान हो गये।*
*संत रामदास के पास गये और बोले आज तुमने मुझे मेरे ठाकुर का दर्शन कराया तू धन्य हैँ। और संत ने रो रो कर रामदास के पैर पकड़ लिये…!*
*रामदास जैसे भोले,निश्छल भक्तो की भक्ति से विवश होकर भगवान को भी साधारण मनुष्य की तरह जीवन व्यतीत करने आना पड़ता है*.
*जय श्री राम*