राधा-कृष्ण के भजन लिखे हुए कृष्ण का जन्म हुआ नंद के घराने में
कृष्ण का जन्म हुआ नंद के घराने में
नाम बदनाम हुआ माखन के चुराने मे
काहे की मटकी बनी काहे से भराई है
कौन के लालना ने फोड़ फोड़ खाई है
कृष्ण का जन्म हुआ नंद के घराने में…
माटी की मटकी बनी दहिया से भराई है
नंद के लालना ने फोड़ फोड़ खाई है
कृष्ण का जन्म हुआ नंद के घराने में…
काहे का पलना बना काहे से जड़ाया है
कौन के लालना को नींद भर सुलाया है।
कृष्ण का जन्म हुआ नंद के घराने में.
काहे की बसी बनी काहे से जडाई है
कौन के लालना ने तान भर सुनाई है
कृष्ण का जन्म हुआ नंद के घराने में….
राधा-कृष्ण के भजन लिखे हुए कृष्ण का जन्म हुआ नंद के घराने में
श्रीमद्भागवत में पादपों का छः भागों में विभाजन किया गया है,
पादप माने जो अपना भोजन नीचे से ग्रहण कर ऊपर की ओर बढ़ें !
१. वनस्पति – जो बिना बौर आये ही फलते हैं ; वट, पीपल आदि
२. औषधि – जो फल पकने पर सूख जाते हैं ; चना,जौ,मटर,गेंहू,जौ,मक्का आदि
३. लता – जो किसी सहारे फैले ; मालती, गिलोय-अमृता आदि
४. त्वकसार – जिनकी छाल ही इतनी कठोर हो कि अन्य लकड़ी आदि उसमें न हो ; बाँस आदि
५. वीरुध – झाड़ियां – तुलसी, झरबेर आदि
६. द्रुम – जिसमें फूल-बौर आकर फल आवें – नीम, आम, आदि
कन्द और मूल भूमि के भीतर होते हैं
कन्द वे जो छील-पका कर खाये जाँय – सूरन,आलू, अरवी
मूल – वे जिन्हें कच्चा चबाया जा सके – मूली, गाजर
संत कबीर गांव के बाहर झोपड़ी बनाकर अपने पुत्र कमाल के साथ रहते थे. संत कबीर जी का रोज का नियम था- नदी में स्नान करके गांव के सभी मंदिरों में जल चढाकर दोपहर बाद भजन में बैठते, शाम को देर से घर लौटते.
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वह अपने नित्य नियम से गांव में निकले थे. इधर पास के गांव के जमींदार का एक ही जवान लडका था जो रात को अचानक मर गया. रात भर रोना-धोना चला.
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आखिर में किसी ने सुझाया कि गांव के बाहर जो बाबा रहते हैं उनके पास ले चलो. शायद वह कुछ कर दें. सब तैयार हो गए. लाश को लेकर पहुंचे कुटिया पर. देखा बाबा तो हैं नहीं, अब क्या करें ?
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तभी कमाल आ गए. उनसे पूछा कि बाबा कब तक आएंगे ? कमाल ने बताया कि अब उनकी उम्र हो गई है. सब मंदिरों के दर्शन करके लौटते-लौटते रात हो जाती है. आप काम बोलो क्या है ?
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लोगों ने लड़के के मरने की बात बता दी. कमाल ने सोचा कोई बीमारी होती तो ठीक था पर ये तो मर गया है. अब क्या करें ! फिर भी सोचा लाओ कुछ करके देखते हैं. शायद बात बन जाए.
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कमाल ने कमंडल उठाया. लाश की तीन परिक्रमा की. फिर तीन बार गंगा जल का कमंडल से छींटी मारा और तीन बार राम नाम का उच्चारण किया. लडका देखते ही देखते उठकर खड़ा हो गया. लोगों की खुशी की सीमा न रही.
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इधर कबीर जी को किसी ने बताया कि आपके कुटिया की ओर गांव के जमींदार और सभी लोग गए हैं. कबीर जी झटकते कदमों से बढ़ने लगे. उन्हें रास्ते में ही लोग नाचते कूदते मिले. कबीर जी कुछ समझ नही पाए.
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आकर कमाल से पूछा कया बात हुई ? तो कमाल तो कुछ ओर ही बताने लगा. बोला- गुरु जी बहुत दिन से आप बोल रहे थे ना की तीर्थ यात्रा पर जाना है तो अब आप जाओ यहां तो मैं सब संभाल लूंगा.
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कबीर जी ने पूछा क्या संभाल लेगा ? कमाल बोला- बस यही मरे को जिंदा करना, बीमार को ठीक करना. ये तो सब अब मैं ही कर लूंगा. अब आप तो यात्रा पर जाओ जब तक आप की इच्छा हो.
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कबीर ने मन ही मन सोचा- चेले को सिद्धि तो प्राप्त हो गई है पर सिद्धि के साथ ही साथ इसे घमंड भी आ गया है. पहले तो इसका ही इलाज करना पडेगा बाद मे तीर्थ यात्रा होगी क्योंकि साधक में घमंड आया तो साधना समाप्त हो जाती है.
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कबीर जी ने कहा ठीक है. आने वाली पूर्णमासी को एक भजन का आयोजन करके फिर निकल जाउंगा यात्रा पर. तब तक तुम आस-पास के दो चार संतो को मेरी चिट्ठी जाकर दे आओ. भजन में आने का निमंत्रण भी देना.
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कबीर जी ने चिट्ठी मे लिखा था-
कमाल भयो कपूत, कबीर को कुल गयो डूब.
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कमाल चिट्ठी लेकर गया एक संत के पास. उनको चिट्ठी दी. चिट्ठी पढ के वह समझ गए. उन्होंने कमाल का मन टटोला और पूछा कि अचानक ये भजन के आयोजन का विचार कैसे हुआ ?
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कमाल ने अहं के साथ बताया- कुछ नहीं. गुरू जी की लंबे समय से तीर्थ पर जाने की इच्छा थी. अब मैं सब कर ही लेता हूं तो मैने उन्हें कहा कि अब आप जाओ यात्रा कर आओ. तो वह जा रहे है ओर जाने से पहले भजन का आयोजन है.
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संत दोहे का अर्थ समझ गए. उन्होंने कमाल से पूछा- तुम क्या क्या कर लेते हो ? तो बोला वही मरे को जिंदा करना बीमार को ठीक करना जैसे काम.
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संत जी ने कहा आज रूको और शाम को यहां भी थोडा चमत्कार दिखा दो. उन्होंने गांव में खबर करा दी. थोडी देर में दो तीन सौ लोगों की लाईन लग गई. सब नाना प्रकार की बीमारी वाले. संत जी ने कमाल से कहा- चलो इन सबकी बीमारी को ठीक कर दो.
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