भगवान नंदी की कहानी

विद्यार्थी के लिए प्रेरणादायक कहानी short

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एक समय की बात है, प्राचीन काल में शिलाद नाम के एक महान ऋषि थे। वे बहुत बड़े तपस्वी थे और उन्होंने आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन करने का संकल्प ले रखा था। उनका जीवन तपस्या और साधना में ही बीतता था। लेकिन कुछ समय बाद उन्हें एक चिंता सतानेलगी। उन्हें डर लगने लगा कि उनके ब्रह्मचर्य के संकल्प की वजह से उनका वंश समाप्त हो जाएगा और उनके पितरों का नाम लेने वाला कोई भी नहीं बचेगा।

इस चिंता से परेशान होकर महर्षि शिलाद ने भगवान इंद्र की कठोर तपस्या करनी शुरू कर दी। वे दिन-रात भगवान इंद्र की आराधना करते रहे। अंत में भगवान इंद्र ऋषि की तपस्या से प्रसन्न होकर प्रकट हुए। उन्होंने शिलाद ऋषि से उनकी मनोकामना पूछी। शिलाद ने एक वरदान मांगा – वे चाहते थे कि भगवान इंद्र उन्हें जन्म और मृत्यु के बंधन से मुक्त एक पुत्र प्रदान करें। लेकिन भगवान इंद्र ने उन्हें बताया कि वे ऐसा वरदान देने में असमर्थ हैं। उन्होंने शिलाद को सलाह दी कि वे भगवान शिव की तपस्या करें, क्योंकि केवल शिव ही जन्म-मृत्यु से मुक्ति का वरदान दे सकते हैं।

शिलाद ऋषि भगवान इंद्र की बात मान गए। उन्होंने भगवान शिव की कठिन तपस्या शुरू कर दी। वे दिन-रात शिवलिंग की पूजा करते, व्रत रखते और तपस्या में लीन रहते थे। उनकी यह कठोर साधना देखकर भगवान शिव प्रसन्न हो गए। शिलाद ने भगवान शिव से एक पुत्र की इच्छा व्यक्त की। भगवान शिव की कृपा से शिलाद ऋषि को एक पुत्र प्राप्त हुआ जिसका नाम ‘नंदी’ रखा गया। लेकिन कुछ समय बाद शिलाद को यह पता चला कि उनके इस बालक नंदी की आयु बहुत कम है।

तब शिलाद ने नंदी से कहा कि वह भगवान शिव की तपस्या करे और उनकी भक्ति में लीन हो जाए। बालक नंदी भी अपने पिता के आदेश का पालन करने लगा। वह दिन-रात भगवान शंकर की आराधना करने लगा। नंदी की यह निष्ठा और तपस्या देखकर भगवान शिव बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने स्वयं ही नंदी को अपने चरणों में स्थान दिया और उसे अपने गणों का अधिनायक नियुक्त कर दिया। इसके साथ ही भगवान शिव ने नंदी को अमरत्व का भी वरदान प्रदान किया।

उन्होंने नंदी को एक और विशेष वरदान दिया – जब भी कहीं भगवान शिव की कोई प्रतिमा स्थापित की जाएगी, तो उसके सामने नंदी की मूर्ति भी होनी चाहिए। यदि नंदी की मूर्ति नहीं होगी तो वह शिव प्रतिमा अधूरी मानी जाएगी। इस प्रकार भगवान शिव ने नंदी को अपने साथ अविनाभाव रूप से जोड़ दिया।

आज भी जब हम किसी शिव मंदिर में जाते हैं तो देखते हैं कि शिवलिंग या शिव प्रतिमा के ठीक सामने नंदी महाराज की मूर्ति बैठी होती है। नंदी की दोनों आँखें भगवान शिव की प्रतिमा पर टिकी रहती हैं, मानो वह उनका निरंतर दर्शन कर रहा हो। इसी वजह से कहा जाता है कि नंदी के नैनों में ही भगवान शिव बसते हैं।

नंदी के सिर पर दो भव्य सींग लगे होते हैं। ये सींग बुद्धि और विवेक के प्रतीक माने गए हैं। इसलिए मनुष्यों को सलाह दी जाती है कि उन्हें हमेशा अपनी बुद्धि का इस्तेमाल विवेक से करना चाहिए। सोच-समझकर ही कोई निर्णय लेना चाहिए। नंदी भी इसी बात का प्रतीक है।

नंदी की गर्दन में एक बड़ी घंटी बंधी होती है। यह घंटी इस बात का प्रतीक है कि मनुष्य को हर पल भगवान का ध्यान रखना चाहिए। जैसे ही घंटी बजती है, वैसे ही मन को भगवान की याद दिलाई जाती है। इसीलिए कहा जाता है कि नंदी का गला हमेशा भजन गाता रहता है।

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लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि नंदी जी की कृपा के बिना शिव दर्शन असंभव है। क्योंकि नंदी को ही भगवान शिव ने शिवलोक का द्वारपाल बनाया है। वे ही शिव भक्तों को भगवान के दर्शन की अनुमति देते हैं। इसीलिए हर शिव मंदिर में नंदी की मूर्ति को विशेष महत्व दिया गया है।

प्राचीन काल से ही नंदी की पूजा-अर्चना का विधान रहा है। शास्त्रों के अनुसार, शिवलिंग की स्थापना से पहले नंदी की मूर्ति स्थापित की जाती है। उनकी विधिवत् पूजा की जाती है और फिर शिवलिंग की प्राणप्रतिष्ठा होती है। इस प्रकार शिवलिंग की स्थापना नंदी की कृपा से ही संभव होती है।

नंदी की पूजा के लिए विशेष विधान बताए गए हैं। पूजा के समय उनके सामने चावल, दूध, शहद और फल चढ़ाए जाते हैं। लौकिक प्रथा के अनुसार शिव भक्त सबसे पहले नंदी की पूजा करते हैं और उनकी कृपा मांगते हैं। कहा जाता है कि नंदी की कृपा बिना कोई भी कार्य सिद्ध नहीं होता।

नंदी की उपासना करने वालों को विशेष लाभ प्राप्त होता है। उनकी दया से साधक को अनेक सिद्धियां प्राप्त होती हैं। मान्यता है कि जिन भक्तों पर नंदी प्रसन्न होते हैं, उनके सभी कष्ट दूर हो जाते हैं और उन्हें अपार सुख-समृद्धि मिलती है।

इतिहास गवाह है कि नंदी की कृपा से कई राजा-महाराजा और साधक-संत अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सके हैं। नंदी ने खुद भी कई बार भक्तों की रक्षा की है और उन्हें संकट से उबारा है। ऐसी कई घटनाएं प्राचीन साहित्य में मिलती हैं।

एक किंवदंती के अनुसार, एक बार काशी में एक बहुत बड़ा अकाल पड़ा था। लोग भूख से बेहाल थे। तब महामहिम नंदी स्वयं प्रकट हुए और उन्होंने लोगों के लिए अन्न की व्यवस्था की। इस प्रकार वे भक्तों की रक्षा करते थे।

एक और किंवदंती है कि काशी के राजा ने एक बार नंदी जी का अपमान किया था। नंदी जी क्रोधित हो गए और राजा पर अपनी कोप-वृष्टि शुरू कर दी। पूरा शहर नष्ट होने लगा। अंत में जब राजा ने क्षमा मांगी तो नंदी जी शांत हुए और उन्होंने शहर को बचा लिया।

इस प्रकार प्राचीन ग्रंथों में नंदी की महिमा का बहुत वर्णन मिलता है। उनकी शक्ति और कृपा का यशगान किया गया है। कहा गया है कि जो नंदी पर विश्वास रखता है, उसकी हर मनोकामना पूर्ण होती है।

भगवान शिव के प्रमुख अवतार भोलेनाथ, विश्वनाथ, महादेव और रुद्ररूप में भी नंदी उनके साथ विराजमान होते हैं। इसी से उनकी महत्ता और गरिमा का पता चलता है। यही कारण है कि हिंदू धर्म में उनकी आराधना का विशेष महत्व है।

नंदी शिव के अग्रगण्य होने के कारण उन्हें शेष नागों से भी अधिक महत्व प्राप्त है। कहा जाता है कि शेष नाग आकाश को संभालते हैं जबकि नंदी सम्पूर्ण ब्रह्मांड को संभाल रहे हैं। इसलिए उनकी शक्ति अपार है।उनकी महिमा शिवोपनिषद में भी वर्णित है।

नंदी केवल शिव जगत ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण सृष्टि को संचालित करते हैं। वे शिव के कर्म सहायक हैं और ब्रह्मांड के सामंजस्य को बनाए रखते हैं। इसलिए शास्त्रों में उन्हें “नंदिनाथ”, “महापुरुष” और “अधिनाथ” जैसे बिरुदों से भी विभूषित किया गया है।

नंदी की उपासना उनके सात स्वरूपों – अष्टनन्दी, महानन्दी, सिद्धनन्दी, उग्र-नन्दी, योग-नन्दी, रुद्रनन्दी और महानंदिनाथ के रूप में होती है। इन सभी स्वरूपों का वर्णन विस्तार से शिव पुराण में मिलता है। प्रत्येक स्वरूप की अलग विधि और महिमा है।

नंदी के बारे में कहानी के मुख्य बिंदु इस प्रकार हैं:

  1. प्राचीन काल में शिलाद नाम के एक महान ऋषि थे जो कठोर ब्रह्मचारी थे। हालाँकि, वह चिंतित हो गए कि उनके ब्रह्मचर्य व्रत के कारण उनका वंश समाप्त हो जाएगा क्योंकि परिवार का नाम आगे बढ़ाने वाला कोई नहीं होगा।
  2. शिलाद ने भगवान इंद्र को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या की और एक ऐसे पुत्र का वरदान मांगा जो जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्त हो। इंद्र ने उसे ऐसा वरदान प्राप्त करने के लिए भगवान शिव की पूजा करने का निर्देश दिया।
  3. कठोर तपस्या के बाद शिलाद ने भगवान शिव को प्रसन्न किया जिन्होंने उन्हें नंदी नामक पुत्र प्रदान किया। हालाँकि, नंदी की आयु बहुत कम थी।
  4. तब शिलाद ने नंदी को शिव का ध्यान करने की सलाह दी। नंदी की भक्ति इतनी तीव्र थी कि भगवान शिव ने उन्हें अपने गणों (सेनाओं) का नेता बनाया और उन्हें अमरता प्रदान की।
  5. शिव ने नंदी को यह भी आशीर्वाद दिया कि जहां भी उनकी (शिव की) मूर्ति स्थापित की जाएगी, वहां मूर्ति के सामने नंदी की उपस्थिति अनिवार्य होगी। नंदी की मूर्ति के बिना शिवलिंग अधूरा रहेगा।
  6. यही कारण है कि आज सभी शिव मंदिरों में, नंदी बैल का मुख शिवलिंग की ओर होता है, मानो वह सदैव भगवान के दर्शन की इच्छा रखता हो।
  7. नंदी के दो सींग ज्ञान और बुद्धि का प्रतीक हैं, जो भक्तों को अपनी बुद्धि का उपयोग विवेक के साथ करना सिखाते हैं। नंदी के गले में बंधी घंटी भगवान के प्रति निरंतर समर्पण का प्रतीक है।
  8. नंदी को शिव के निवास का द्वारपाल माना जाता है, जिनकी कृपा के बिना शिव के दर्शन असंभव हैं।
  9. नंदी की पूजा शिवलिंग मूर्ति की स्थापना से पहले की जाती है, जो उनके महत्व और अपरिहार्य उपस्थिति को दर्शाती है।
  10. ऐसी कई प्राचीन कहानियाँ हैं जो नंदी की कृपा, शक्ति और प्रसन्न होने पर अपने भक्तों को विपत्तियों से बचाने की क्षमता को उजागर करती हैं।