‘कामदा’ नामक एकादशी के माहात्म्य

निर्जला एकादशी की संपूर्ण जानकारी

ekadashi 2023 list in hindi

एकादशी का नामतिथिमहीनावार
पौष पुत्रदा7जनवरीरविवार
षटतिला6फरवरीमंगलवार
जया20फरवरीमंगलवार
विजया6मार्चबुधवार
आमलकी20मार्चबुधवार
पापमोचिनी5अप्रैलशुक्रवार
कामदा19**अप्रैलशुक्रवार**
वरुथिनी4मईशनिवार
मोहिनी19मईरविवार
अपरा2जूनरविवार
निर्जला18**जूनमंगलवार**
योगिनी2जुलाईमंगलवार
देवशयनी17जुलाईबुधवार
कामिका31जुलाईबुधवार
श्रावण पुत्रदा16अगस्तशुक्रवार
अजा29अगस्तगुरुवार
परिवर्तिनी14सितंबरशनिवार
इन्दिरा28सितंबरशनिवार
पापांकुशा14अक्टूबरसोमवार
रमा28अक्टूबरसोमवार
देवुत्थान12नवंबरमंगलवार
उत्पन्ना26नवंबरमंगलवार
मोक्षदा11दिसंबरबुधवार
सफला26दिसंबरगुरुवार

कामदा एकादशी का महत्व

कामदा एकादशी का व्रत करने से जो फल मिलता है वह हम सोच नहीं सकते। 100 यज्ञ करने के बाद जो फल मिलता है वही फल हमको कामदा एकादशी का व्रत करने मात्र से प्राप्त हो जाता है इससे मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है वेद और पुराणों में बताया गया है जितना पुण्य हजारों वर्ष तपस्या करने से सोना और मोती दान कन्या दान करने से मिलता है उतना फल एकमात्र कामदा एकादशी के व्रत करने से प्राप्त हो जाता है

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कामदा एकादशी की कथा

युधिष्ठिर ने पूछा, “वासुदेव! आपको नमस्कार। कृपया बताएं, चैत्र मास के शुक्ल पक्ष में कौन सी एकादशी होती है?”

श्रीकृष्ण ने कहा, “राजन्! ध्यान से सुनो इस पुरानी कथा को, जिसे वसिष्ठ ने दिलीप से पूछने पर कहा था।

दिलीप ने पूछा, “भगवान्! मुझे बताइए, चैत्र मास के शुक्ल पक्ष में कौन सी एकादशी होती है?”

वसिष्ठ ने कहा, “राजन्! चैत्र शुक्ल पक्ष में ‘कामदा’ नामक एकादशी होती है।वह परम पुण्यदायी है। पापों को नष्ट करने के लिए वह दावानल ही है। प्राचीन काल की बात है, नागपुर नामक एक सुंदर नगर था, जहां सोने के महल थे। उस नगर में पुण्डरीक और अन्य महा भयंकर नाग निवास करते थे। पुण्डरीक नामक नाग उस समय राज्य कर रहा था। गन्धर्व, किन्नर और अप्सराएं भी उस नगर का सेवन करते थे। वहां एक श्रेष्ठ अप्सरा थी, जिसका नाम ललिता था। उसके साथ ललित नाम वाला गन्धर्व भी था, जो पति-पत्नी के रूप में रहते थे। दोनों ही काम से पीड़ित रहा करते थे। ललिता के हृदय में सदा पति की ही मूर्ति बसी रहती थी और ललित के हृदय में सुंदरी ललिता का नित्य निवास था। एक दिन की बात है, नागराज पुण्डरीक राजसभा में मनोरंजन कर रहा था। उस समय ललिता का गान हो रहा था। किन्तु उसके साथ उसकी प्यारी ललिता नहीं थी। गाते-गाते उसे ललिता का स्मरण हो आया। उसके पैरों की गति रुक गई और जीभ लड़खड़ाने लगी। नागों में श्रेष्ठ कर्कोटक को ललिता के मन का सन्ताप ज्ञात हो गया; अतः उसने राजा पुण्डरीक को उसके पैरों की गति रुकने और गान में त्रुटि होने की बात बता दी।

कर्कोटक की बात सुनकर नागराज पुण्डरीक की आँखें क्रोध से लाल हो गईं। उसने गाते हुए कामातुर ललिता को शाप दिया –

‘दुर्बुद्धे! तू मेरे सामने गान करते समय भी पत्नी के वशीभूत हो गया, इसलिए राक्षस हो जा।’

महाराज पुण्डरीक के इतना कहते ही वह गन्धर्व राक्षस हो गया। उसका भयानक मुख, विकराल आँखें और देखने मात्र से भय उत्पन्न करने वाला रूप। ऐसा राक्षस होकर वह कर्म का फल भोगने लगा। ललिता अपने पति के विकराल रूप को देख मन ही मन बहुत चिंतित हुई। भारी दुःख से कष्ट पाने लगी। सोचने लगी, ‘क्या करूँ? कहाँ जाऊँ? मेरे पति पाप से कष्ट पा रहे हैं।’ वह रोती हुई घने जंगलों में पति के पीछे-पीछे घूमने लगी। बन में उसे एक सुंदर आश्रम दिखाई दिया, जहाँ एक शांत मुनि बैठे हुए थे। उनका किसी भी प्राणी के साथ बैर या विरोध नहीं था। ललिता शीघ्रता के साथ वहां गई और मुनि को प्रणाम करके उनके सामने खड़ी हुई। मुनि बड़े दयालु थे। उस दुःखिनी को देखकर वे इस प्रकार बोले–‘शुभे! तुम कौन हो? कहाँ से यहाँ आयी हो? मेरे सामने सच-सच बताओ।’ललिता ने कहा–‘महामुने! वीरधन्वा नाम वाले एक गन्धर्व हैं। मैं उन्हीं महात्मा की पुत्री हूँ। मेरा नाम ललिता है। मेरे स्वामी अपने पाप-दोष के कारण राक्षस हो गए हैं। उनकी यह अवस्था देखकर मुझे चैन नहीं है। ब्रह्मन्‌! इस समय मेरा जो कर्तव्य है, वह बताइए। विप्रवर! जिस पुण्य के द्वारा मेरे पति राक्षस भाव से छुटकारा पा जाऊँ, उसका उपदेश कीजिए।’

ऋषि बोले–‘भद्रे! इस समय चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की “कामदा” नामक एकादशी तिथि है, जो सभी पापों को हरने वाली और उत्तम है। तुम उसी का विधिपूर्वक व्रत करो और इस व्रत का जो पुण्य है, उसे अपने स्वामी को दे दो। पुण्य देने पर क्षणभर में ही उसके शाप का दोष दूर हो जायेगा।’

राजन्‌! मुनि के यह वचन सुनकर ललिता को बड़ा हर्ष हुआ। उसने एकादशी का उपवास करके द्वादशी के दिन उन ब्रह्मर्षि के समीप ही भगवान्‌ वासुदेव के [श्रीविग्रह के] समक्ष अपने पति की उद्धार के लिए यह वचन कहा–‘मैंने जो यह “कामदा” एकादशी का उपवास किया है, उसके पुण्य के प्रभाव से मेरे पति का राक्षस भाव दूर हो गया।’

वसिष्ठजी कहते हैं–ललिता ने इसी क्षण यह कहते ही उसी क्षण उसका पाप दूर हो गया। उसने दिव्य देह धारण कर लिया। राक्षस भाव चला गया और पुनः गन्धर्वत्व की प्राप्ति हुई। नृप श्रेष्ठ! वे दोनों पति-पत्नी “कामदा” के प्रभाव से पहले की अपेक्षा भी अधिक सुंदर रूप धारण करके विमान पर आरूढ़ हो अत्यन्त शोभा पाने लगे। यह जानकर इस एकादशी के व्रत का यथाशक्ति पालन करना चाहिए। मैंने लोगों के हित के लिए तुम्हारे सामने इस व्रत का वर्णन किया है। “कामदा” एकादशी ब्रह्महत्या आदि पापों तथा पिशाचत्व आदि दोषों का भी नाश करने वाली है। राजन्‌! इसके पठन और सुनने से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है।

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कामदा एकादशी व्रतोपवास 19 April 2024

पारण: अगले दिन सूर्योदय के बाद और 10:05 से पहले।

 कामदा एकादशी का व्रत कैसे करें?

शास्त्रों के अनुसार इस दिन हमें भगवान नारायण की पूजा करनी चाहिए अथवा हमें अपने आराध्य की पूजा करनी चाहिए व्रत के दिन एक बार भोजन जो व्रत है अन्न तो हमें ग्रहण करना नहीं हमें अगर हो सके तो कुछ खाद्य वस्तु ही नहीं खानी चाहिए पीकर या जल पीकर या कई लोग निर्जला भी व्रत रखते हैं कामदा एकादशी के व्रत के दिन सबसे पहले ब्रह्म मुहूर्त में उठे। उठने के बाद में स्नान करें स्नान के बाद में हाथ में जल ले और जल के बाद य संकल्प करें कि मेरा यह गोत्र है , मेरा यह नाम है और मैं चैत्र मास की कामदा एकादशी का व्रत करता हूं और फिर इसके बाद हमें भगवान अपने इष्ट की पूजा करनी चाहिए पंचामृत से उनका अभिषेक करना चाहिए सुंदर फल इत्यादि से उनको भोग लगाना चाहिए घी का दीपक उनके आगे जलाना चाहिए।

चैत्रमास कृष्णपक्षकी ‘पापमोचनी’ एकादशीका माहात्म्य

नमस्कार आप सभी को माता रानी के भजन की लिरिक्स के लिए नीचे लिखे हुए भजन पर click करें

माता रानी के भजन लिखित में

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