मैया राणी के भवन में

माता के भजन ढोलक वाले lyrics मैया राणी के भवन में

मैया राणी के भवन में

हम दिवाने हो गए

हम दिवाने हो गए

माँ हम दिवाने हो गए

मैया राणी के भवन में

हम दिवाने हो गए

एक तो माँ के पैर सुन्दर

दूसरी पायल सजी

तीसरा महावर लगा है

हम दिवाने हो गए

मैया राणी के भवन में

हम दिवाने हो गए

हम दिवाने हो गए

माँ हम दिवाने हो गए

मैया राणी के भवन में

हम दिवाने हो गए

एक तो माँ का रूप सुन्दर

दूसरा साड़ी सजी

तीसरा गोटा लगा है

हम दिवाने हो गए

मैया राणी के भवन में

हम दिवाने हो गए

हम दिवाने हो गए

माँ हम दिवाने हो गए

मैया राणी के भवन में

हम दिवाने हो गए

एक तो माँ के हाथ सुन्दर

दूसरा चूड़ी सजी

तीसरा मेहंदी लगी है

हम दिवाने हो गए

मैया राणी के भवन में

हम दिवाने हो गए

हम दिवाने हो गए माँ

हम दिवाने हो गए

मैया राणी के भवन में

हम दिवाने हो गए

एक तो माँ का रूप सुन्दर

तुसरी माला सजी

तीसरा माँ का मुस्कुराना हम दिवाने हो गए

मैया राणी के भवन में

हम दिवाने हो गए

हम दिवाने हो गए माँ

हम दिवाने हो गए

मैया राणी के भवन में

हम दिवाने हो गए

एक माँ के कान सुन्दर

दूसरा झुमके सजे

तीसरी नथनी सजी है

हम दिवाने हो गए

मैया राणी के भवन में

हम दिवाने हो गए

हम दिवाने हो गए माँ

हम दिवाने हो गए

मैया राणी के भवन के

हम दिवाने हो गए

एक तो माँ को भोग छप्पन दूसरा पूरी सजी

तीसरा नारियल चढ़ाना हम दिवाने हो गए

मैया राणी के भवन में हम दिवाने हो गए

हम दिवाने हो गए माँ हम दिवाने हो गए

मैया राणी के भवन के हम दिवाने हो गए

माता के भजन ढोलक वाले lyrics मैया राणी के भवन में

माँ दुर्गा के कुछ छोटे मंत्र क्या हैं?

जय माता दी🙏,

माँ दुर्गा के कुछ छोटे मंत्र और शक्तिशाली मंत्र।

(1) ॐ दुर्गायै नमः

ॐ दुर्गायै नमः

(2) ॐ दुं दुर्गायै नमः

ॐ दुं दुर्गायै नमः

(3) सर्वस्वरूपे सर्वेषे सर्वशक्ति समन्विते, भयेभ्यः त्राहि नो देवी दुर्गे देवी नमो स्तुते

सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वेशक्तिसमन्विते।
भयेभ्यस्त्रहि नो देवी दुर्गे देवी नमोऽस्तु ते

(4) ॐ जयन्ती मंगला काली भद्र काली कपालिनी,

दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमो-स्तु-ते

ॐ जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी

दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते।।

भावार्थ : जयंती, मंगला, काली, भद्रकाली, कपालिनी, दुर्गा, क्षमा, शिवा धात्री और स्वधा- इन देवताओं से प्रसिद्ध जगदंबे। आपको मेरा नमस्कार है।

जो व्यक्ति दुर्गा का स्मरण करता है, उसे अग्नि में जलाए जाने पर भी, युद्ध में जाने पर भी, अत्यंत दुःखी होने पर भी, युद्ध से अत्यंत भयभीत होने पर भी कष्ट नहीं होता।

~ देवी कवच

शरणमसि सुराणां सिद्धविद्याधारणं
मुनिमनुजपशूनां दस्युभिस्त्रसितानाम्।
नृपतिगृहगतानां व्याधिभिः पीडितानां
त्वमसि शरणमेका देवी दुर्गे प्रसीद

अष्ट्गंध क्या होता है? हिंदू पूजा पाठ विधान में इसका क्या महत्व है?

अष्टगंध धातु है जो धातु रचनाओं में उपयोग होती है। यह धातु एक मिश्रण होती है जिसमें आठ प्रमुख धातुओं का समावेश होता है। इन आठ प्रमुख धातुओं के नाम हैं सोना, चांदी, पीतल, तांबा, लोहा, सिंदूर, अक्क, वङ्ग। यहाँ वङ्ग स्पष्टीकरण के लिए प्रयुक्त किया गया है, इसे आमतौर पर सफेद चांदी के साथ प्रतिस्थापित किया जाता है।

अष्ट्गंध का उपयोग धातुओं की रचनाओं को मजबूत और टिकाऊ बनाने के लिए किया जाता है। इसका प्रयोग धातु औषधियों, आभूषणों, तारों, विद्युत संयंत्रों, और अन्य उद्योगों में किया जाता है। अष्ट्गंध धातु को अलाट औषधियों में भी उपयोग किया जाता है, जिससे अलाट का धातु अधिक संघटित होता है और अधिक मजबूत बनता है।

अष्ट्गंध एक मूल्यवान धातु है और इसकी प्राप्ति और व्यवहार के नियमों को नियंत्रित किया जाता है। इसका उत्पादन कई देशों में किया है

माता दुर्गा किसका अवतार थीं?

मां दुर्गा बाबा शिव की पत्नी आदिशक्ति का ही रूप हैं,जगत जननी जगदम्बा, प्रधान शक्ति को प्रकृति एवं शिव को परम पुरुष , आदिपुरुष माना गया है, श्रृष्टि की आदि और अंत भी यही हैं,ये माया है,महामाया हैं,एक होते हुए भी कारणवश अनेक हो जाती हैं दुर्गुणों का विनाश करने वाली,दुर्गातिहारिणी दुर्गा ही शिव की शक्ति हैं,शक्ति बिना शिव….शव हो जाते हैं माता सती के भस्म हो जाने पर शिव का विकराल ओर बावरा रूप ग्रंथों में वर्णित है।ये आदिशक्ति जगदम्बा ने ही त्रिगुण रूप लेकर श्री ब्रह्मा , श्रीविष्णु और महेश से विवाह किया था।तीन रूप में होकर भी मां दुर्गा(आदिशक्ति) एक ही हैं।नवरात्रि में नवदुर्गा के रूप में पूजी जाती हैं।श्रृष्टि के कण कण में व्याप्त महामाया ही मां दुर्गा हैं जो दरिद्रों के घर दीनता बनकर प्रवेश करती हैं और राजाओं के घर वैभव और सौभाग्य बनकर आती हैं, मां दुर्गा से इतर इस संसार में कुछ भी नही है, दुर्गा सप्तशती में मां का ही स्वरूप सम्पूर्ण संसार है : सर्व रुपमयी देवी ,सर्व देवी मयं जगत, अतोहम् विश्व रूपा तां नमामि परमेश्वरी।।

माँ दुर्गा स्वयं आदि शक्ति हैं। शक्ति की देवी, राक्षसों का संहार करती हैं। शेरवाली, शैलपुत्री, स्कंदमाता, उमा, महागौरी, महाकाली के नामों से भी जानी जाती हैं। इनके अन्य नाम हैं भवानी, अम्बिका, शिवानी, महादेवी, गणेश जननी इत्यादि। इनका सबसे प्रमुख नाम पार्वती है। माता रानी अलग अलग रूपों में पूजी जाती हैं और वे परिस्थिति के अनुसार अपना रूप बदलती हैं। जगदंबा होने के कारण वे अपने बच्चों की हमेशा रक्षा करती हैं और दुष्टों का विनाश भी करती हैं। समस्त संसार के जीव भोजन के बिना जीवित नहीं रह सकते। माँ दुर्गा ही भोजन और पालन पोषण की देवी अन्नपूर्णा हैं। शीतला माता भी इन्हीं का रूप हैं। प्रजापति दक्ष के घर पुत्री रूप में जन्म लिया और सती कहलाई। भगवान शिव से विवाह किया। जब सती रूप में अपने प्राण त्यागे तो इनके अंग जहाँ भी गिरे वहाँ शक्तिपीठों में विराजमान हैं माँ दुर्गा। 51 शक्तिपीठों के साथ महादेव के भैरव रूप रहते हैं। दुर्गा माता पर्वत राज हिमावत के घर जन्म लेती हैं, पार्वती कहलाती हैं। महादेव को समाधि से जगाती हैं। उन्हें पति के रूप में प्राप्त करने के लिए ब्रह्मचारिणी रूप में कठिन तपस्या करती हैं। दुर्गा माता जब भी जन्म लेती हैं महादेव को प्राप्त कर लेती हैं, महादेव वैराग्य से बाहर इन्हीं के कारण आते हैं। स्कंद अर्थात कार्तिकेय जी की माता हैं दुर्गा जी। और दुष्ट दानव महिषासुर का वध कात्यायनी रूप में करती हैं माँ दुर्गा। रक्तबीज नामक राक्षस का वध करने वाली माँ काली हैं दुर्गा जी।

दुर्गा जी के नौ अवतार क्या हैं?

माता पार्वती ही आदिशक्ति और भगवती दुर्गा है। और नवरात्रि मे इनके नौ रूपों मे वंदना की जाती है।

प्रथम शैलपुत्री

यह पार्वती जी का प्रथम अवतार है, माता सती के रूप जन्म ली।

द्वितीय ब्रह्मचारिणी

जब माता ने कठोर तपस्या के उपरांत शिव जी को पति रूप मे पाया।

तृतीय चंद्रघंटा

माता के मस्तक पर चंद्र समान तिलक है।

चतुर्थ कूष्मांडा

संपूर्ण ब्रह्मांड की जननी रूप मे मां कुष्मांडा कहलाई।

पंचम स्कंदमाता

कार्तिकेय जी की माता स्कंदमाता कहलाई।

षष्ठी कात्यायिनी

कात्यायन ऋषि की तपस्या से प्रसन्न हो उनके घर पुत्री मे जन्मी माता कात्यायनी कहलाई।

सप्तम कालरात्रि

सभी काल और दुःख को हरनेवाली माता कालरात्रि कहलाई।

अष्टमी महागौरी

गौर वर्ण रूप मे माता महागौरी कहलाई।

नवम सिद्धिदात्री

दुर्गा सप्तशती के अनुसार प्राचीन काल में जब दैत्यो का स्वामी महिषासुर था, सारे देवताओं को पराजित कर स्वयं इंद्र के सिहासन पर बैठ गया और सारे देवताओं को स्वर्ग से निकाल कर उपद्रव करने लगा। तब सभी देवता गण ब्रम्हा, विष्णु, महेश के पास गए और उनसे महिषासुर से रक्षा हेतु बिनती की।

तब भगवान विष्णु जी के मुख से एक महान तेज उत्पन्न हुआ और उस तेज मे ब्रम्हा, शिव के साथ सभी देव गणों से तेज पुंज निकल कर मिल गए और एक होकर एक विशाल तेजपुंज नारी स्वरूप बन गयी, जिसकी ज्वालाये सभी दिशाओं में फैल रही थी।

महादेव जी के तेज से उसका मुख प्रकट हुआ, यम के तेज से उनके केश हुए, विष्णु के तेज से उस देवी की भुजाएँ, अग्नि के तेज से तीन नेत्र, ब्रम्हा के तेज से दोनों चरण, आदि आदि देवताओं के तेज से उन शिवा भगवती के अंगो का प्रदुर्भाव हुआ। इसके बाद महादेव जी ने त्रिशूल, विष्णु जी ने चक्र, इंद्र ने वज्र, यम ने खड्ग और कालदंड, मरुत ने धनुष बाण समुद्र देव ने दिव्य वस्त्र और आभूषण आदि आदि देवताओं ने उस देवी को अनेकों आयुधों और आभूषण प्रदान किये। पर्वत राज हिमालय ने सिंह भेंट की जिस पर आरूढ़ होकर उस भगवती दुर्गा देवी जी ने घोर गर्जना की। और महिषासुर आदि दैत्यो का संहार किया।तब सभी देवताओं ने उस देवी माँ की इस प्रकार स्तुति की –

हे देवी आप ही सबको आश्रय प्रदान करने वाली आद्या परा शक्ति हो। मुक्ति का कारण आप ही हो, स्वाहा, स्वधा, जयंती, मंगला, काली, भद्रकाली, कपालिनी, दुर्गा, शिवा आप इन नामो से विख्यात हो। आप इस दुर्गम संसार रूप सागर से पार उतरने वाली नौका रूप दुर्गा हो। आप ही सृष्टि का सृजन, पालन और विनाश करने वाली हो। आप ही हम सबकी रक्षा करने वाली माँ जगदंबा हो। आप ही इस चराचर जगत मे विद्यमान चेतना हो।हम सबका पालन करने वाली शक्ति स्वरूपा जगतजननी हो। आपको कोटि कोटि प्रणाम है। आपको बार बार प्रणाम है।