चैत्र नवरात्रि कब है

चैत्र नवरात्रि कब है

चैत्र नवरात्रि कब है ? इस सवाल का जवाब आगे के क्रम में आपको मिल जायेगा , हमारे सनातन धर्म में वर्ष भर कोई न कोई उत्सव चलता ही रहता है , जिनमे नवरात्री का विशेष महत्व है और उसमे भी चैत्र नवरात्री का क्यूंकि हमारे नए साल का आगमन ही चैत्र नवरात्रि से होता है। नए साल का आगमन चैत्र माह से होता हे जिनके शुरुवात के 9 दिन नवरात्री के रूप में मनाए जाते हैं, जो शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से लेकर नवमी तक चलता है।

हिंदू धर्म के अनुसार एक वर्ष में चार नवरात्रि होती है। प्रथम चैत्र नवरात्री, दूसरी आषाढ़ माह में ,तीसरी आश्विन माह में और चौथी माघ माह में गुप्त नवरात्री मनाई जाती हैं। नवरात्री मानाने का सबसे बड़ा कारण शक्ति जागरण है ,ये समय मौसम के परिवर्तन का होता है चैत्र मास में सर्दी का मौसम खत्म होकर गर्मी के मौसम में प्रवेश करता है , किसी साधक के लिए अपनी शक्ति साधना का यह सबसे अनुकूल समय होता है। चूँकि यहाँ मौसम परिवर्तन का समय होता है , वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी इन दिनों आहार विहार में संयम रखने से शरीर स्वस्थ रहता है , यही कारण है की लोग इन दिनों में जप -तप,व्रत इत्यादि धार्मिक अनुष्ठान अधिक मात्रा में करते हैं

(Chaitra Navratri 2024 Calendar)

  • 09 अप्रैल 2024 – घटस्थापना, मां शैलपुत्री की पूजा
  • 10 अप्रैल 2024 – मां ब्रह्मचारिणी की पूजा
  • 11 अप्रैल 2024 – मां चंद्रघंटा की पूजा
  • 12 अप्रैल 2024 – मां कुष्मांडा की पूजा
  • 13 अप्रैल 2024 – मां स्कंदमाता की पूजा
  • 14 अप्रैल 2024 – मां कात्यायनी की पूजा
  • 15 अप्रैल 2024 – मां कालरात्रि की पूजा
  • 16 अप्रैल 2024 – मां महागौरी की पूजा
  • 17 अप्रैल 2024 – मां सिद्धिदात्री की पूजा, राम नवमी

What are the 9 days of Navratri?नव दुर्गा के 9 नाम कौन कौन से हैं?

नव दुर्गा के 9 रूप –

प्रथम रूप : शैल पुत्री

श्री दुर्गा का प्रथम रूप श्री शैलपुत्री हैं। पर्वतराज हिमालय की पुत्री होने के कारण ये शैलपुत्री कहलाती हैं। नवरात्र के प्रथम दिन इनकी पूजा और आराधना की जाती है।

द्वितीय दुर्गा : श्री ब्रह्मचारिणी

श्री दुर्गा का द्वितीय रूप श्री ब्रह्मचारिणी हैं। यहां ब्रह्मचारिणी का तात्पर्य तपश्चारिणी है। इन्होंने भगवान शंकर को पति रूप से प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी। अतः ये तपश्चारिणी और ब्रह्मचारिणी के नाम से विख्यात हैं। नवरात्रि के द्वितीय दिन इनकी पूजा और अर्चना की जाती है।

तृतीय दुर्गा : श्री चंद्रघंटा


श्री दुर्गा का तृतीय रूप श्री चंद्रघंटा है। इनके मस्तक पर घंटे के आकार का अर्धचंद्र है, इसी कारण इन्हें चंद्रघंटा देवी कहा जाता है। नवरात्रि के तृतीय दिन इनका पूजन और अर्चना किया जाता है। इनके पूजन से साधक को मणिपुर चक्र के जाग्रत होने वाली सिद्धियां स्वतः प्राप्त हो जाती हैं तथा सांसारिक कष्टों से मुक्ति मिलती है।

चतुर्थ दुर्गा : श्री कूष्मांडा


श्री दुर्गा का चतुर्थ रूप श्री कूष्मांडा हैं। अपने उदर से अंड अर्थात् ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण इन्हें कूष्मांडा देवी के नाम से पुकारा जाता है। नवरात्रि के चतुर्थ दिन इनकी पूजा और आराधना की जाती है। श्री कूष्मांडा की उपासना से भक्तों के समस्त रोग-शोक नष्ट हो जाते हैं।


पंचम दुर्गा : श्री स्कंदमाता


श्री दुर्गा का पंचम रूप श्री स्कंदमाता हैं। श्री स्कंद (कुमार कार्तिकेय) की माता होने के कारण इन्हें स्कंदमाता कहा जाता है। नवरात्रि के पंचम दिन इनकी पूजा और आराधना की जाती है। इनकी आराधना से विशुद्ध चक्र के जाग्रत होने वाली सिद्धियां स्वतः प्राप्त हो जाती हैं।

षष्ठम दुर्गा : श्री कात्यायनी


श्री दुर्गा का षष्ठम् रूप श्री कात्यायनी। महर्षि कात्यायन की तपस्या से प्रसन्न होकर आदिशक्ति ने उनके यहां पुत्री के रूप में जन्म लिया था। इसलिए वे कात्यायनी कहलाती हैं। नवरात्रि के षष्ठम दिन इनकी पूजा और आराधना होती है।


सप्तम दुर्गा : श्री कालरात्रि


श्रीदुर्गा का सप्तम रूप श्री कालरात्रि हैं। ये काल का नाश करने वाली हैं, इसलिए कालरात्रि कहलाती हैं। नवरात्रि के सप्तम दिन इनकी पूजा और अर्चना की जाती है। इस दिन साधक को अपना चित्त भानु चक्र (मध्य ललाट) में स्थिर कर साधना करनी चाहिए।

अष्टम दुर्गा : श्री महागौरी


श्री दुर्गा का अष्टम रूप श्री महागौरी हैं। इनका वर्ण पूर्णतः गौर है, इसलिए ये महागौरी कहलाती हैं। नवरात्रि के अष्टम दिन इनका पूजन किया जाता है। इनकी उपासना से असंभव कार्य भी संभव हो जाते हैं।


नवम् दुर्गा : श्री सिद्धिदात्री


श्री दुर्गा का नवम् रूप श्री सिद्धिदात्री हैं। ये सब प्रकार की सिद्धियों की दाता हैं, इसीलिए ये सिद्धिदात्री कहलाती हैं। नवरात्रि के नवम दिन इनकी पूजा और आराधना की जाती है।
इस दिन को रामनवमी भी कहा जाता है और शारदीय नवरात्रि के अगले दिन अर्थात दसवें दिन को रावण पर राम की विजय के रूप में मनाया जाता है। दशम् तिथि को बुराई पर अच्छाकई की विजय का प्रतीक माना जाने वाला त्योतहार विजया दशमी यानि दशहरा मनाया जाता है। इस दिन रावण, कुम्भकरण और मेघनाथ के पुतले जलाये जाते हैं।

नवरात्रि का महत्व एवं मनाने का कारण –


नवरात्रि काल में रात्रि का विशेष महत्व होता है|देवियों के शक्ति स्वरुप की उपासना का पर्व नवरात्र प्रतिपदा से नवमी तक, निश्चित नौ तिथि, नौ नक्षत्र, नौ शक्तियों की नवधा भक्ति के साथ सनातन काल से मनाया जा रहा है। सर्वप्रथम श्रीरामचंद्रजी ने इस शारदीय नवरात्रि पूजा का प्रारंभ समुद्र तट पर किया था और उसके बाद दसवें दिन लंका विजय के लिए प्रस्थान किया और विजय प्राप्त की । तब से असत्य, अधर्म पर सत्य, धर्म की जीत का पर्व दशहरा मनाया जाने लगा। नवरात्रि के नौ दिनों में आदिशक्ति माता दुर्गा के उन नौ रूपों का भी पूजन किया जाता है जिन्होंने सृष्टि के आरम्भ से लेकर अभी तक इस पृथ्वी लोक पर विभिन्न लीलाएँ की थीं। माता के इन नौ रूपों को नवदुर्गा के नाम से जाना जाता है।
नवरात्रि के समय रात्रि जागरण अवश्य करना चाहिये और यथा संभव रात्रिकाल में ही पूजा हवन आदि करना चाहिए। नवदुर्गा में कुमारिका यानि कुमारी पूजन का विशेष अर्थ एवं महत्व होता है। गॉंवों में इन्हें कन्या पूजन कहते हैं। जिसमें कन्या पूजन कर उन्हें भोज प्रसाद दान उपहार आदि से कुमारी कन्याओं की सेवा की जाती है।

नवरात्रि व्रत विधि-

कलश स्थापना-


नवरात्र के दिनों में कहीं-कहीं पर कलश की स्थापना की जाती है एक चौकी पर मिट्टी का कलश पानी भरकर मंत्रोच्चार सहित रखा जाता है। मिट्टी के दो बड़े कटोरों में मिट्टी भरकर उसमे गेहूं/जौ के दाने बो कर ज्वारे उगाए जाते हैं और उसको प्रतिदिन जल से सींचा जाता है। दशमी के दिन देवी-प्रतिमा व ज्वारों का विसर्जन कर दिया जाता है।
महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती मुर्तियाँ बनाकर उनकी नित्य विधि सहित पूजा करें और पुष्पो को अर्ध्य देवें ।
इन नौ दिनो में जो कुछ दान आदि दिया जाता है उसका करोड़ों गुना मिलता है इस नवरात्र के व्रत करने से ही अश्वमेघ यज्ञ का फल मिलता है।

कन्या पूजन-

नवरात्रि के आठवें दिन महागौरी की उपासना का विधान है। अष्टमी के दिन कन्या-पूजन का महत्व है जिसमें 5, 7,9 या 11 कन्याओं को पूज कर भोजन कराया जाता है। आश्विन मास के शुक्लपक्ष कि प्रतिपद्रा से लेकर नौं दिन तक विधि पूर्वक व्रत करें। प्रातः काल उठकर स्नान करके, मन्दिर में जाकर या घर पर ही नवरात्रों में दुर्गाजी का ध्यान करके कथा पढ़नी चहिए। यदि दिन भर का व्रत न कर सकें तो एक समय का भोजन करें । इस व्रत में उपवास या फलाहार आदि का कोई विशेष नियम नहीं है। कन्याओं के लिये यह व्रत विशेष फलदायक है। कथा के अन्त में बारम्बार ‘दुर्गा माता तेरी सदा जय हो’ का उच्चारण करें ।

अब तक आपको आपके सवाल (चैत्र नवरात्रि कब है) का जवाब मिल ही गया होगा। हमारे धर्म ग्रंथों की अनसुनी कहानी , भजन की pdf, और ज्ञानवर्धक चर्चा सुनने के लिए हमारे इस ग्रुप में जल्दी join ho जाएं, यहां आध्यात्म के अलावा और कोई फालतू बात नहीं होती https://chat.whatsapp.com/J8DmhFf4cucFkku4aiTr1s

काली कमली वाला मेरा यार है

किशोरी कुछ ऐसा इन्तजाम हो जाए

भोले मेरी कुटिया में आना होगा

बेलपत्ते ले आओ सारे

चुन चुन लाई भोला फूल बेल पाती

मैं कैसे कावड़ चढ़ाऊं ओ भोले भीड़ बड़ी मंदिर में

बालू मिट्टी के बनाए भोलेनाथ

जग रखवाला है मेरा भोला बाबा

कैलाश के भोले बाबा 

कब से खड़ी हूं झोली पसार

भोले नाथ तुम्हारे मंदिर मेंअजब नजारा देखा है —

शिव शंभू कमाल कर बैठे

गोरा की चुनरी पे ओम लिखा है

FAQs


दुर्गा पूजा के 10 दिन कौन से हैं?

हिन्दू पंचांग के अनुसार प्रतिपदा से लेकर नवमी तक माँ दुर्गा के नौ दिन होते हैं और दसवे दिन विजय दशमी होती है।




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