लिखित भजन डायरी

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जन्मे अवध में राम मंगल गाओ री
दो सबको ये पैगाम घर घर जाओ री
जन्मे अवध में राम मंगल गाओ रीकौशल्या रानी को सब दो बधाई
आई रे आई घडी शुभ ये आई
मिलके चलो रघु धाम
संग मेरे आओ री
मिलके चलो रघु धाम
संग मेरे आओ री

जन्मे अवध में राम मंगल गाओ री
दो सबको ये पैगाम घर घर जाओ री

राम लला के दर्शन करलो
पग पंकज पे माथा धरलो
पावन है इनका नाम
पल पल ध्याओ री
पावन है इनका नाम
पल पल ध्याओ री

जन्मे अवध में राम मंगल गाओ री
दो सबको ये पैगाम घर घर जाओ री

दशरथ के अंगना बजी शहनाई
दुल्हन के जैसी अयोध्या सजाई
खुशियों की है ये शाम
दीप जलाओ री
खुशियों की है ये शाम
दीप जलाओ री

जन्मे अवध में राम मंगल गाओ री
दो सबको ये पैगाम घर घर जाओ री

लिखित भजन डायरी

हनुमान चालीसा का रहस्य!!!!!

भगवान को अगर किसी युग में आसानी से प्राप्त किया जा सकता है तो वह युग है कलियुग। इस कथन को सत्य करता एक दोहा रामचरितमानस में तुलसीदास जी ने लिखा है

*नहिं कलि करम न भगति बिबेकू। राम नाम अवलंबन एकू॥

कालनेमि कलि कपट निधानू। नाम सुमति समरथ हनुमानू॥

भावार्थ:-कलियुग में न कर्म है, न भक्ति है और न ज्ञान ही है, राम नाम ही एक आधार है। कपट की खान कलियुग रूपी कालनेमि के (मारने के) लिए राम नाम ही बुद्धिमान और समर्थ श्री हनुमान्‌जी हैं॥

जिसका अर्थ है की कलयुग में मोक्ष प्राप्त करने का एक ही लक्ष्य है वो है भगवान का नाम लेना। तुलसीदास ने अपने पूरे जीवन में कोई भी ऐसी बात नहीं लिखी जो गलत हो। उन्होंने अध्यात्म जगत को बहुत सुन्दर रचनाएँ दी हैं।

ऐसा माना जाता है कि कलयुग में हनुमान जी सबसे जल्दी प्रसन्न हो जाने वाले भगवान हैं। उन्होंने हनुमान जी की स्तुति में कई रचनाएँ रची जिनमें हनुमान बाहुक, हनुमानाष्टक और हनुमान चालीसा प्रमुख हैं।

हनुमान चालीसा की रचना के पीछे एक बहुत जी रोचक कहानी है जिसकी जानकारी शायद ही किसी को हो। आइये जानते हैं हनुमान चालीसा की रचना की कहानी :-

ये बात उस समय की है जब भारत पर मुग़ल सम्राट अकबर का राज्य था। सुबह का समय था एक महिला ने पूजा से लौटते हुए तुलसीदास जी के पैर छुए। तुलसीदास जी ने नियमानुसार उसे सौभाग्यशाली होने का आशीर्वाद दिया।

आशीर्वाद मिलते ही वो महिला फूट-फूट कर रोने लगी और रोते हुए उसने बताया कि अभी-अभी उसके पति की मृत्यु हो गई है। इस बात का पता चलने पर भी तुलसीदास जी जरा भी विचलित न हुए और वे अपने आशीर्वाद को लेकर पूरी तरह से आश्वस्त थे।

क्योंकि उन्हें इस बात का ज्ञान भली भाँति था कि भगवान राम बिगड़ी बात संभाल लेंगे और उनका आशीर्वाद खाली नहीं जाएगा। उन्होंने उस औरत सहित सभी को राम नाम का जाप करने को कहा। वहां उपस्थित सभी लोगों ने ऐसा ही किया और वह मरा हुआ व्यक्ति राम नाम के जाप आरंभ होते ही जीवित हो उठा।

यह बात पूरे राज्य में जंगल की आग की तरह फैल गयी। जब यह बात बादशाह अकबर के कानों तक पहुंची तो उसने अपने महल में तुलसीदास को बुलाया और भरी सभा में उनकी परीक्षा लेने के लिए कहा कि कोई चमत्कार दिखाएँ। ये सब सुन कर तुलसीदास जी ने अकबर से बिना डरे उसे बताया की वो कोई चमत्कारी बाबा नहीं हैं, सिर्फ श्री राम जी के भक्त हैं।

अकबर इतना सुनते ही क्रोध में आ गया और उसने उसी समय सिपाहियों से कह कर तुलसीदास जी को कारागार में डलवा दिया। तुलसीदास जी ने तनिक भी प्रतिक्रिया नहीं दी और राम का नाम जपते हुए कारागार में चले गए। उन्होंने कारागार में भी अपनी आस्था बनाए रखी और वहां रह कर ही हनुमान चालीसा की रचना की और लगातार 40 दिन तक उसका निरंतर पाठ किया।

चालीसवें दिन एक चमत्कार हुआ। हजारों बंदरों ने एक साथ अकबर के राज्य पर हमला बोल दिया। अचानक हुए इस हमले से सब अचंभित हो गए। अकबर एक सूझवान बादशाह था इसलिए इसका कारण समझते देर न लगी। उसे भक्ति की महिमा समझ में आ गई। उसने उसी क्षण तुलसीदास जी से क्षमा मांग कर कारागार से मुक्त किया और आदर सहित उन्हें विदा किया। इतना ही नहीं अकबर ने उस दिन के बाद तुलसीदास जी से जीवनभर मित्रता निभाई।

इस तरह तुलसीदास जी ने एक व्यक्ति को कठिनाई की घड़ी से निकलने के लिए हनुमान चालीसा के रूप में एक ऐसा रास्ता दिया है। जिस पर चल कर हम किसी भी मंजिल को प्राप्त कर सकते हैं।

इस तरह हमें भी भगवान में अपनी आस्था को बरक़रार रखना चाहिए। ये दुनिया एक उम्मीद पर टिकी है। अगर विश्वास ही न हो तो हम दुनिया का कोई भी काम नहीं कर सकते।

* बिनु बिस्वास भगति नहिं तेहि बिनु द्रवहिं न रामु।

राम कृपा बिनु सपनेहुँ जीव न लह बिश्रामु॥

भावार्थ:-बिना विश्वास के भक्ति नहीं होती, भक्ति के बिना श्री रामजी पिघलते (ढरते) नहीं और श्री रामजी की कृपा के बिना जीव स्वप्न में भी शांति नहीं पाता॥

प्रभु शरणागति को हानि सोचना भीअपराध है।

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जब श्रीराम जी बाली को वाण मारे तो वह एक प्रश्न किया –

हे प्रभु! आपका धर्म की रक्षा हेतु अवतार हुआ है ,

और आपने तो मुझे एक ब्याधा जैसे छिपकर मारे ?

आप समदर्शी हैं फिर किस कारण से मैं आपका वैरी और ये सुग्रीव प्यारा हो गया ??

प्रभु ! मेरा अपराध क्या है???

श्रीराम जी बोले – मम बुज बल आश्रित तेहि जानी ?

बाली ! तुम यह जानते थे कि नहीं कि सुग्रीव मेरे शरण में आ गया है ?

बाली – हाँ! प्रभु वो तारा बोली थी – सुनु पति जेहिं मिलेउ सुग्रीवा…कोसलेस सुत लछिमन रामा…कालहु जिति सकहिं…हे पतिदेव! सुग्रीव प्रभु श्रीराम लखन से मैत्री कर ली है और वे स्वयं काल को भी जीत सकते हैं। परंतु हे प्रभु! मैं आपको समदर्शी जाना ।

श्रीराम जी तो…तदपि करऊँ सम बिसम …भगत अभगत..अनुसारा…जो अपराध भगत पर करई।राम रोष पावक सो जरई..यह सुधि जानत दुर्वासा..।

यह जानकर कि यह मेरे राम शरणागति है,

उसे मारने की चेष्टा करना अपराध है कि नहीं?

मेरे संरक्षण में हो और वह असुरक्षित रहे क्या उचित है??

और एक बात ,श्रीराम जी बाली को वाण मार कर केवल गिराए थे,जान नहीं मारे थे।

वे बोले भी – अचल करौं तनु राखहु प्राना- बाली मैं तुझे स्वस्थ कर देता हूँ,

तुम जीवित रहो ।

बाली के सिर पर हाथ भी रख दिए ,

किन्तु बाली प्रभु को पहचान कर,

दोबारा यह संयोग असंभव जान स्वयं मृत्यु वरण किया।

अंगद को श्रीराम शरणागति में दे दिया,

तारा प्रभु भक्ति प्राप्त की

और स्वयं प्रभु श्रीराम जी के परम धाम साकेत चला गया।

जौं कदाच मोहिं मारहिं तौ पुनि होब सनाथ…समझिए कि वह दोनों तरफ फायदा में था -दुहुँ हाथ मुद मोदक..।

किन्तु ध्यान देने वाली बात है कि भूल कर भी श्रीराम आश्रित,

भक्त पर कभी भी अपराध न करें…

रुचिर रूप धरि प्रभु पहिं जाई। बोली बचन बहुत मुसुकाई॥

तुम्ह सम पुरुष न मो सम नारी। यह सँजोग बिधि रचा बिचारी॥4॥

अर्थ:-वह सुन्दर रूप धरकर प्रभु के पास जाकर और बहुत मुस्कुराकर वचन बोली- न तो तुम्हारे समान कोई पुरुष है, न मेरे समान स्त्री। विधाता ने यह संयोग (जोड़ा) बहुत विचार कर रचा है॥4॥

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