pradeep mishra bhajan lyrics
बालू मिट्टी के बनाए भोलेनाथ
चढ़ाऊं लोटा जल भरके।
पहला वर जो मांगा सिया ने वर दीने
भगवान मिले मिले रे कौशल्या जैसी सास
ससुर राजा दशरथ से बालू मिट्टी के बनाए
भोलेनाथ चढ़ाऊं लोटा जल भरके।
दूजा वर जो मांगा सिया ने वर दीना
मिले मिले रे शिवशंकर जैसे जेठ जिठानी
गौरा पार्वती बालू मिट्टी के बनाए
भोलेनाथ चढ़ाऊं लोटा जल भरके।
तीजा वर जो मांगा सिया ने वर दीना
मिले मिले रे सुभद्रा जैसी नन्द
ननदोई राजा अर्जुन से बालू मिट्टी के बनाए
भोलेनाथ चढ़ाऊं लोटा जल भरके।
चौथा वर जो मांगा सिया ने वर दीना
भगवान मिले मिलेरे पति श्री राम देवर भैया
लक्ष्मण से बालू मिट्टी के बनाए
भोलेनाथ चढ़ाऊं लोटा जल भरके।
पांचवां वर मांगूं मैं भोलेनाथ से
मिले मिले रे चित्रकूट जैसा निवास
हनुमान लंका जलाए बालू मिट्टी के बनाए
भोलेनाथ चढ़ाऊं लोटा जल भरके।
pradeep mishra bhajan lyrics
एक शख्स सुबह सवेरे उठा साफ़ कपड़े पहने और सत्संग घर की तरफ चल दिया ताकि सतसंग का आनंद प्राप्त कर सके.
चलते चलते रास्ते में ठोकर खाकर गिर पड़ा.
कपड़े कीचड़ से सन गए वापस घर आया.
कपड़े बदलकर वापस सत्संग की तरफ रवाना हुआ फिर ठीक उसी जगह ठोकर खा कर गिर पड़ा और वापस घर आकर कपड़े बदले.
फिर सत्संग की तरफ रवाना हो गया.
जब तीसरी बार उस जगह पर पहुंचा तो क्या देखता है की एक शख्स चिराग हाथ में लिए खड़ा है और उसे अपने पीछे पीछे चलने को कह रहा है.
इस तरह वो शख्स उसे सत्संग घर के दरवाज़े तक ले आया. पहले वाले शख्स ने उससे कहा आप भी अंदर आकर सतसंग सुन लें.
लेकिन वो शख्स चिराग हाथ में थामे खड़ा रहा और सत्संग घर में दाखिल नही हुआ.
दो तीन बार इनकार करने पर उसने पूछा आप अंदर क्यों नही आ रहे है …?
दूसरे वाले शख्स ने जवाब दिया “इसलिए क्योंकि मैं काल हूँ,
ये सुनकर पहले वाले शख्स की हैरत का ठिकाना न रहा।
काल ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा मैं ही था जिसने आपको ज़मीन पर गिराया था.
जब आपने घर जाकर कपड़े बदले और दुबारा सत्संग घर की तरफ रवाना हुए तो भगवान ने आपके सारे पाप क्षमा कर दिए. जब मैंने आपको दूसरी बार गिराया और आपने घर जाकर फिर कपड़े बदले और फिर दुबारा जाने लगे तो भगवान ने आपके पूरे परिवार के गुनाह क्षमा कर दिए.
*मैं डर गया की अगर अबकी बार मैंने आपको गिराया और आप फिर कपड़े बदलकर चले गए तो कहीं ऐसा न हो वह आपके सारे गांव के लोगो के पाप क्षमा कर दे.* इसलिए मैं यहाँ तक आपको खुद पहुंचाने आया हूँ.
अब हम देखे कि उस शख्स ने दो बार गिरने के बाद भी हिम्मत नहीं हारी और तीसरी बार फिर पहुँच गया और एक हम हैं यदि हमारे घर पर कोई मेहमान आ जाए या हमें कोई काम आ जाए तो उसके लिए हम सत्संग छोड़ देते हैं, भजन जाप छोड़ देते हैं। क्यों….???
क्योंकि हम जीव अपने भगवान से ज्यादा दुनिया की चीजों और रिश्तेदारों से ज्यादा प्यार करते हैं।
उनसे ज्यादा मोह हैं। इसके विपरीत वह शख्स दो बार कीचड़ में गिरने के बाद भी तीसरी बार फिर घर जाकर कपड़े बदलकर सत्संग घर चला गया। क्यों…???
क्योंकि उसे अपने दिल में भगवान के लिए बहुत प्यार था। वह किसी कीमत पर भी अपनी बंदगीं का नियम टूटने नहीं देना चाहता था।
इसीलिए काल ने स्वयं उस शख्स को मंजिल तक पहुँचाया, जिसने कि उसे दो बार कीचड़ में गिराया और मालिक की बंदगी में रूकावट डाल रहा था, बाधा पहुँचा रहा था !
इसी तरह हम जीव भी जब हम भजन-सिमरन पर बैठे तब हमारा मन चाहे कितनी ही चालाकी करे या कितना ही बाधित करे, हमें हार नहीं माननी चाहिए और मन का डट कर मुकाबला करना चाहिए।
एक न एक दिन हमारा मन स्वयं हमें भजन सिमरन के लिए उठायेगा और उसमें रस भी लेगा।
बस हमें भी हिम्मत नहीं हारनी चाहिए और न ही किसी काम के लिए भजन सिमरन में ढील देनी हैं। वह मालिक आप ही हमारे काम सिद्ध और सफल करेगा।
इसीलिए हमें भी मन से हार नहीं माननी चाहिए और निरंतर अभ्यास करते रहना चाहिए जी…
ॐ श्री कृष्णः शरणं ममः दासोहम् कृष्णः तव अस्मि
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे
हनुमानजी की उपासना से आयु वृद्धि होती है: प्रेरक कहानी
काफी समय बाद हमारे एक मित्र से मिलना हुआ था तो कुछ देर एक ओर खड़े होकर बातें करने लगें। वो भगवान को मानते तो थे। परन्तु जो दृढ़ता होनी चाहिए वैसा विश्वास नहीं था।
वो आयु वृद्धि के विषय पर चर्चा कर रहे थे। अचानक हमारे मुख से निकल गया: अगर आयु वृद्धि करनी है तो हनुमानजी की उपासना करों।
वो कहने लगे हम इन बातों पर विश्वास नहीं करते। प्रमाणित करके बताओं तो मानें। हमनें सोचा प्रमाणित कैसे करें? फिर मन में विचार आया कि जब भगवत इच्छा से मुख से वाणी निकली है। तो ठाकुर जी प्रेरणा भी देंगे।
अभी हम सोच ही रहे थे कि हमारे सामने से एक मुर्गियों से भरा हुआ टैम्पो निकला। उसे देखते ही हमारा चेहरा खिल उठा। ठाकुर जी ने प्रेरणा दे दी थी।
मैंने तुरन्त उसकी ओर इशारा करते हुए कहा: उस टैम्पो में मुर्गियाँ देख रहे हो।
मित्र बोले: हाँ जी।
मैं बोला: तुम जानते हो हिन्दुस्तान में जितने भी हिन्दू जो कि मासाहारी हैं। उनमें से 95% लोग मंगलवार को माँस नहीं खाते हैं।
मित्र बोले: इस बात से हम सहमत हैं। परन्तु इस बात का आयुवृद्धि से क्या लेना-देना।
हमनें कहा: अभी हमारी बात समाप्त नहीं हुई।
अब वो चुप होकर हमारी बात सुनने लगें।
हमने फिर से अपनी बात दोहराई: 95% लोग मंगलवार को माँसाहार नहीं करते। इस बात का अर्थ यह है कि यदि मंगलवार नहीं होता तो इन जीवों की उसी दिन हत्या कर दी जाती। मंगलवार होने के कारण इन जीवों की एक दिन की आयु और बढ़ गई। अब आप सोचिए जब हनुमानजी के दिन अर्थात मंगलवार में इतनी शक्ति है कि उसने असंख्य जीवों की एक दिन की आयु बढ़ा दी। तो हनुमानजी में कितना सामर्थ होगा।
मेरी बात सुन उनके चहरे पर मुसकान आ गई। वो बोले: बाबा मैं आपके प्रमाण से बिल्कुल संतुष्ट हूँ। वाकई में हनुमान जी आयुवृद्धि करतें हैं।
मित्र जाने लगें तो मैंने कहा: आप तो इस ओर जा रहे थे। फिर रास्ता काहे बदल लिया।
मित्र बोले: इस ओर से घूमकर जाऊँगा। इस रास्ते में हनुमानजी का मंदिर पड़ता हैं। हनुमानजी को दंडवत करके ही जाऊँगा।
जयश्रीराम
. कर्मों की कहानी
एक ही घड़ी मुहूर्त में जन्म लेने पर भी सबके कर्म और भाग्य अलग अलग क्यों? -एक प्रेरक कथा
एक राजा था जो कि बहुत दयालु और शिव भक्त था और शिव भक्ति में हमेशा लीन रहता था
तो राजा ने राजदरबार में विद्दान ज्योतिषियों और ज्योतिष प्रेमियों की सभा बुलाकर प्रश्न किया कि-
“ मेरी जन्म पत्रिका के अनुसार मेरा राजा बनने का योग था मैं राजा बना , किन्तु उसी घड़ी मुहूर्त में अनेक जातकों ने जन्म लिया होगा जो राजा नहीं बन सके क्यों ? इसका क्या कारण है ?
राजा के इस प्रश्न से सब निरुत्तर हो गये ..क्या जबाब दें कि एक ही घड़ी मुहूर्त में जन्म लेने पर भी सबके भाग्य अलग अलग क्यों हैं ?
सब सोच में पड़ गये कि अचानक एक वृद्ध खड़े हुये और बोले – महाराज की जय हो ! आपके प्रश्न का उत्तर यहां भला कौन दे सकता है ? आप यहाँ से कुछ दूर घने जंगल में यदि जाएँ तो वहां पर आपको एक महात्मा मिलेंगे उनसे आपको उत्तर मिल सकता है ।
राजा की जिज्ञासा बढ़ी और घोर जंगल में जाकर देखा कि एक महात्मा आग के ढेर के पास बैठ कर अंगार ( गरमा गरम कोयला ) खाने में व्यस्त हैं , सहमे हुए राजा ने महात्मा से जैसे ही प्रश्न पूछा महात्मा ने क्रोधित होकर कहा “तेरे प्रश्न का उत्तर देने के लिए मेरे पास समय नहीं है ,मैं भूख से पीड़ित हूँ ।तेरे प्रश्न का उत्तर यहां से कुछ आगे पहाड़ियों के बीच एक और महात्मा हैं ,वे दे सकते हैं ।”
राजा की जिज्ञासा और बढ़ गयी, पुनः अंधकार और पहाड़ी मार्ग पार कर बड़ी कठिनाइयों से राजा दूसरे महात्मा के पास पहुंचा किन्तु यह क्या महात्मा को देखकर राजा हक्का बक्का रह गया ,दृश्य ही कुछ ऐसा था, वे महात्मा अपना ही माँस चिमटे से नोच नोच कर खा रहे थे ।
राजा को देखते ही महात्मा ने भी डांटते हुए कहा ” मैं भूख से बेचैन हूँ मेरे पास इतना समय नहीं है , आगे जाओ पहाड़ियों के उस पार एक आदिवासी गाँव में एक बालक जन्म लेने वाला है ,जो कुछ ही देर तक जिन्दा रहेगा सूर्योदय से पूर्व वहाँ पहुँचो वह बालक तेरे प्रश्न का उत्तर का दे सकता है ”
राजा पुनः कठिन मार्ग पार कर किसी तरह प्रातः होने तक उस गाँव में पहुंचा, गाँव में पता किया और उस दंपति के घर पहुंचकर सारी बात कही और *शीघ्रता से बच्चा लाने को कहा जैसे ही बच्चा हुआ दम्पत्ति ने बालक राजा के सम्मुख उपस्थित किया ।
राजा को देखते ही बालक ने हँसते हुए कहा राजन् ! मेरे पास भी समय नहीं है ,किन्तु अपना उत्तर सुन लो –
तुम,मैं और दोनों महात्मा सात जन्म पहले के चारों भाई व राजकुमार थे । एक बार शिकार खेलते खेलते हम जंगल में भटक गए। तीन दिन तक भूखे प्यासे भटकते रहे ।
अचानक हम चारों भाइयों को आटे की एक पोटली मिली ।जैसे-तैसे हमने चार बाटी सेंकी और
अपनी अपनी बाटी लेकर खाने बैठे ही थे कि भूख प्यास से तड़पते हुए एक महात्मा वहां आ गये । अंगार खाने वाले भइया से उन्होंने कहा –
“बेटा ,मैं दस दिन से भूखा हूँ ,अपनी बाटी में से मुझे भी कुछ दे दो , मुझ पर दया करो , जिससे मेरा भी जीवन बच जाय , इस घोर जंगल से पार निकलने की मुझमें भी कुछ सामर्थ्य आ जायेगी ।”
इतना सुनते ही भइया गुस्से से भड़क उठे और बोले तुम्हें दे दूंगा तो मैं क्या आग खाऊंगा ? चलो भागो यहां से ….।
वे महात्मा जी फिर मांस खाने वाले भइया के निकट आये उनसे भी अपनी बात कही किन्तु उन भईया ने भी महात्मा से गुस्से में आकर कहा कि “बड़ी मुश्किल से प्राप्त ये बाटी तुम्हें दे दूंगा तो मैं क्या अपना मांस नोचकर खाऊंगा ? ”
भूख से लाचार वे महात्मा मेरे पास भी आये , मुझसे भी बाटी मांगी… तथा दया करने को कहा किन्तु मैंने भी भूख में धैर्य खोकर कह दिया कि ” चलो आगे बढ़ो मैं क्या भूखा मरुँ …?”।
बालक बोला “अंतिम आशा लिये वो महात्मा , हे राजन !आपके पास भी आये,दया की याचना की, सुनते ही आपने उनकी दशा पर दया करते हुये ख़ुशी से अपनी बाटी में से आधी बाटी आदर सहित उन महात्मा को दे दी ।
बाटी पाकर महात्मा बड़े खुश हुए और जाते हुए बोले “तुम्हारा भविष्य तुम्हारे कर्म और व्यवहार से फलेगा । ”
बालक ने कहा “इस प्रकार हे राजन ! उस घटना के आधार पर हम अपना भोग, भोग रहे हैं ,धरती पर एक समय में अनेकों फूल खिलते हैं,किन्तु सबके फल रूप, गुण,आकार-प्रकार,स्वाद में भिन्न होते हैं।”
इतना कहकर वह बालक मर गया । राजा अपने महल में पहुंचा और माना कि शास्त्र भी तीन प्रकार के हॆ-ज्योतिष शास्त्र, कर्तव्य शास्त्र और व्यवहार शास्त्र । एक ही मुहूर्त में अनेकों जातक जन्मते हैं किन्तु सब अपना किया, दिया, लिया ही पाते हैं । जैसा भोग भोगना होगा वैसे ही योग बनेंगे । जैसा योग होगा वैसा ही भोग भोगना पड़ेगा यही है जीवन
*मिटाने से मिटते नहीं*
*ये “भाग्य के” लेख..।*
*कर्म “अच्छे” तू करता चल*
*फिर ईश्वर की महिमा देख..॥*
हरे राम हरे राम। राम राम हरे हरे।।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण। कृष्ण कृष्ण हरे हरे।