शिव आरती हिंदी में गौरां और शंकर
(कजरा मोहब्बत वाला)
शिव शंकर को पूजूं मैं,
होजाए बेड़ा पार ।
चरणों में मस्तक धरूं,
सिमरूं बारम्बार ।
गौरां और शंकर हैं ये,
भक्तों के प्यारे हैं ये
नाचो बराती बन के यार,
,हो जाएगा बेड़ा पार।
गौरां और—–
1,करने श्रृंगार लागे,जटाओं का मुकुट बना के
नागों के मोर सजाए,नागों के कुंडल साजे
तन पे भभूति रमा के,भोला बाघम्बर पहने
मस्तक पर चंदा प्यारा,सारे जग का उजियारा
नाचो—-
1
2,सिर पे गंगा शंकर के,सर्प जनेऊ इन के
गले में विष को है धारा,पहने मुंडों की माला
हाथ त्रिशूल विराजे, दूजे में डमरू साजे
नन्दी पे हो के हैं सवार,बोलो तुम सारे जय-जयकार।
गौरां—
3,ब्रह्मा भी बने बराती,विष्णु भी बने बराती
शिव के गण भी हैं संग में,भूतों प्रेतों के साथी
आए हैं गौरां द्वारे,नाना रूपों को धारे
करो स्वागत हिमवान,आए हैं द्वारे श्रीमान।
गौरां—–
4,गौरां शंकर की जय हो,आशा* गणपति की जय हो
ब्रह्मा विष्णु की जय हो,मैना हिमालय की जय हो
सारे देवों की जय हो,भूतों प्रेतों की जय हो
शिव के गणों की जय हो, प्यारे नंदी की जय हो
गौरां—-
शिव आरती हिंदी में गौरां और शंकर
धन्ना जाट जी की कथा
एक बार की बात है, एक गाँव था जहाँ भागवत कथा का आयोजन किया गया था। एक पंडित कथा सुनाने आया था जो पूरे एक सप्ताह तक चली। अंतिम अनुष्ठान के बाद, जब पंडित दान लेकर घोड़े पर सवार होकर जाने को तैयार हुआ, तो धन्ना जाट नामक एक सीधे-सादे और गरीब किसान ने उसे रोक लिया।
धन्ना ने कहा, “हे पंडित जी! आपने कहा था कि जो भगवान की सेवा करता है, उसका बेड़ा पार हो जाता है। लेकिन मेरे पास भगवान की मूर्ति नहीं है और न ही मैं ठीक से पूजा करना जानता हूँ। कृपया मुझे भगवान की एक मूर्ति दे दीजिए।”
पंडित ने उत्तर दिया, “आप स्वयं ही एक मूर्ति ले आइए।”
धन्ना ने कहा, “लेकिन मैंने तो भगवान को कभी देखा ही नहीं, मैं उन्हें कैसे लाऊँगा?”
उन्होंने पिण्ड छुडाने को अपना भंग घोटने का सिलबट्टा उसे दिया और बोले- “ये ठाकुरजी हैं ! इनकी सेवा पूजा करना।’
“सच्ची भक्ति: सेवा और करुणा का मार्ग”
एक समय की बात है, एक शहर में एक धनवान सेठ रहता था। उसके पास बहुत दौलत थी और वह कई फैक्ट्रियों का मालिक था।
एक शाम, अचानक उसे बेचैनी की अनुभूति होने लगी। डॉक्टरों ने उसकी जांच की, लेकिन कोई बीमारी नहीं मिली। फिर भी उसकी बेचैनी बढ़ती गई। रात को नींद की गोलियां लेने के बावजूद भी वह नींद नहीं पा रहा था।
आखिरकार, आधी रात को वह अपने बगीचे में घूमने निकल गया। बाहर आने पर उसे थोड़ा सुकून मिला, तो वह सड़क पर चलने लगा। चलते-चलते वह बहुत दूर निकल आया और थककर एक चबूतरे पर बैठ गया।
तभी वहां एक कुत्ता आया और उसकी एक चप्पल ले गया। सेठ ने दूसरी चप्पल उठाकर उसका पीछा किया। कुत्ता एक झुग्गी-झोपड़ी वाले इलाके में घुस गया। जब सेठ नजदीक पहुंचा, तो कुत्ते ने चप्पल छोड़ दी और भाग गया।
इसी बीच, सेठ ने किसी के रोने की आवाज सुनी। वह आवाज एक झोपड़ी से आ रही थी। अंदर झांककर उसने देखा कि एक गरीब औरत अपनी बीमार बच्ची के लिए रो रही है और भगवान से मदद मांग रही है।
शुरू में सेठ वहां से चला जाना चाहता था, लेकिन फिर उसने औरत की मदद करने का फैसला किया। जब उसने दरवाजा खटखटाया तो औरत डर गई। सेठ ने उसे आश्वस्त किया और उसकी समस्या