माता रानी के भजन लिखे हुए मुझे दर्शन
तर्ज
यूं ही कोई मिल गया था
मुझे दर्शन दे गई मां कल रात सोते-सोते 2
फिर बीती रात मेरी मां से बात होते होते 2
फिर बीती रात…
मुझे याद है अभी भी कल रात का नजारा 2
कल रात का नजारा
वह सामने खड़ी थी 2
आभास होते होते 2
वह सामने खड़ी थी आभास होते होते 2
मुझे दर्शन दे गई मां…
फिर बीती रात मेरी…
जैसी सामने है मूरत वैसे ही मैंने देखी 2
मैं तो चरणों में पड़ी थी 2
यू निहाल होते होते 2
मैं तो चरणों में पड़ी थी यूं निहाल होते-होते 2
मुझे….
मुझे गोद में बिठाया और प्यार से मां बोली 2
तू तो अब भी रो रहा है 2
मेरे पास होते होते 2
तू तो अभी रो रही है मेरे पास होते-होते 2
मुझे दर्शन दे गई मां कल रात सोते सोते….
फिर बीती रात मेरी मां से बात होते होते…
माता रानी के भजन लिखे हुए मुझे दर्शन
कलावे (मौली) से जुड़े रहस्य
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हिंदू धर्म में कई रीति-रिवाज तथा मान्यताएं हैं।इन रीति-रिवाजों तथा मान्यताओं का सिर्फ धार्मिक ही नहीं वैज्ञानिक पक्ष भी है, जो वर्तमान समय में भी एकदम सटीक बैठता है।हिंदू धर्म में प्रत्येक धार्मिक कर्म यानि पूजा-पाठ, यज्ञ, हवन आदि के पूर्व ब्राह्मण द्वारा यजमान के दाएं हाथ में कलावा/मौली (एक विशेष धार्मिक धागा) बांधी जाती है।
किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत करते समय या नई वस्तु खरीदने पर हम उसे कलावा/मौली बांधते है ताकि वह हमारे जीवन में शुभता प्रदान करे।कलावा/मौली कच्चे सूत के धागे से बनाई जाती है। यह लाल रंग, पीले रंग, या दो रंगों या पांच रंगों की होती है।इसे हाथ गले और कमर में बांधा जाता है।
शंकर भगवान के सिर पर चंद्रमा विराजमान है इसीलिए उन्हें चंद्रमौली भी कहा जाता है।कलावा/मौली बांधने की प्रथा तब से चली आ रही है जब दानवीर राजा बली की अमरता के लिए वामन भगवान ने उनकी कलाई पर रक्षा सूत्र बांधा था।शास्त्रों में भी इसका इस श्लोक के माध्यम से मिलता है 👇
येन बद्धो बलीराजा दानवेन्द्रो महाबल:।
तेन त्वामनुबध्नामि रक्षे माचल माचल।।
👉पूजन कर्म के समय हमारी कलाई पर लाल धागा बांधा जाता है। इसे रक्षासूत्र, कलेवा या मौली कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि यह धागा बांधने के बाद पूजन कर्म पूर्ण होते हैं। इस मान्यता का सिर्फ धार्मिक ही नहीं, बल्कि वैज्ञानिक पक्ष भी है।
👉प्रत्येक पूजा-पाठ, यज्ञ, हवन में पूजा करवाने वाले हमारी कलाई पर मौली (एक धार्मिक धागा) बांधते हैं। इस संबंध में शास्त्रों का मत है कि मौली बांधने से त्रिदेव – ब्रह्मा, विष्णु व महेश और तीनों देवियों – लक्ष्मी, पार्वती व सरस्वती की कृपा प्राप्त होती है।
👉ब्रह्मा की कृपा से कीर्ति, विष्णु की कृपा से बल मिलता है और शिवजी की कृपा से बुराइयों का अंत होता है। इसी प्रकार लक्ष्मी कृपा से धन, दुर्गा से शक्ति एवं सरस्वती की कृपा से बुद्धि प्राप्त होती है।
👉विज्ञान की दृष्टि से मौली बांधने से उत्तम स्वास्थ्य प्राप्त होता है। जब यह धागा बांधा जाता है तो इससे कलाई पर हल्का सा दबाव बनता है। इस दबाव से त्रिदोष – वात, पित्त तथा कफ को नियंत्रित होता है। रक्षा सूत्र बांधने की प्रथा तब से चली आ रही है, जब दानवीर राजा बलि की अमरता के लिए वामन भगवान ने उनकी कलाई पर रक्षा सूत्र बांधा था।
👉कलावा/मौली का शाब्दिक अर्थ है सबसे ऊपर, जिसका तात्पर्य सिर से भी है।
शरीर की संरचना का प्रमुख नियंत्रण हाथ की कलाई में होता है, अतः यहां कलावा/मौली बांधने से व्यक्ति स्वस्थ रहता है| ऐसी भी मान्यता है कि इसे बांधने से कोई भी बीमारी नहीं बढती है।पुराने वैद्य और घर परिवार के बुजुर्ग लोग हाथ, कमर, गले व पैर के अंगूठे में कलावा/मौली का उपयोग करते थे, जो शरीर के लिये लाभकारी था।ब्लड प्रेशर, हार्ट एटेक, डायबीटिज और लकवा जैसे रोगों से बचाव के लिये कलावा/मौली बांधना हितकर बताया गया है।कलावा/मौली शत प्रतिशत कच्चे धागे (सूत) की ही होनी चाहिये। आपने कई लोगों को हाथ में स्टील के बेल्ट बांधे देखा होगा
कहते है रक्तचाप के मरीज को यह बैल्ट बांधने से लाभ होता है।स्टील बेल्ट से कलावा/मौली अधिक लाभकारी है।
👉कलावा/मौली को पांच सात बार घुमा कर के हाथ में बांधना चाहिये कलावा/मौली को किसी भी दिन बांध सकते है, परन्तु हर मंगलवार और शनिवार को पुरानी मौली को उतारकर नई मौली बांधना उचित माना गया है।उतारी हुई पुरानी मौली को पीपल के पेड की जड में डालना चाहिये ।
। जय श्री सूर्यपुत्र शनिदेव ।।
हिंदू धर्म में प्रत्येक दिन का अपना महत्व होता है। सप्ताह का प्रत्येक दिन किसी न किसी देवी-देवता को समर्पित होता है। उसी क्रम में शनिवार का दिन न्यायप्रिय देवता शनि को समर्पित है। इस दिन विधि-विधान से शनि देव की पूजा अर्चना की जाती है।
मान्यता है यदि शनि देव किसी पर प्रसन्न होते हैं तो उनके सभी कष्टों को दूर कर देते हैं। शनिवार के दिन शनि देव की विधि-विधान से पूजा करने से शनि देव की विशेष कृपा प्राप्त होती है। यदि किसी जातक की कुंडली में शनि दोष उत्पन्न हो जाता है तो उसे समस्याओं से गुजरना पड़ता है। लेकिन शनि के शुभ प्रभावों से व्यक्ति को जीवन में सभी तरह के सुखों की प्राप्ति होती है।
ऐसे में शनि देव को प्रसन्न करने के लिए और उनकी कृपा पाने के लिए प्रत्येक शनिवार को पूजन के साथ शनिदेव की आरती स्तोत्र और मंत्रों का जाप करना चाहिए। इससे घर में सुख शांति बनी रहती है। प्रस्तुत है शनिदेव की आरती, और शनि स्तोत्र-
।। शनिदेव की आरती ।।
जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी।
सूर्य पुत्र प्रभु छाया महतारी।।
जय जय श्री शनि देव….
श्याम अंग वक्र-दृष्टि चतुर्भुजा धारी।
नी लाम्बर धार नाथ गज की असवारी।।
जय जय श्री शनि देव….
क्रीट मुकुट शीश राजित दिपत है लिलारी।
मुक्तन की माला गले शोभित बलिहारी।।
जय जय श्री शनि देव….
मोदक मिष्ठान पान चढ़त हैं सुपारी।
लोहा तिल तेल उड़द महिषी अति प्यारी।।
जय जय श्री शनि देव….
देव दनुज ऋषि मुनि सुमिरत नर नारी।
विश्वनाथ धरत ध्यान शरण हैं तुम्हारी।।
जय जय श्री शनि देव भक्तन हितकारी।।
।। श्रीदशरथकृत शनि स्तोत्र ।।
नम: कृष्णाय नीलाय शितिकण्ठनिभाय च।
नम: कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नम:।।
नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च।
नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते।।
नम: पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णेऽथ वै नम:।
नमो दीर्घायशुष्काय कालदष्ट्र नमोऽस्तुते।।
नमस्ते कोटराक्षाय दुर्निरीक्ष्याय वै नम:।
नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने।।
नमस्ते सर्वभक्षाय वलीमुखायनमोऽस्तुते।
सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करे भयदाय च।।
अधोदृष्टे: नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तुते।
नमो मन्दगते तुभ्यं निरिस्त्रणाय नमोऽस्तुते।।
तपसा दग्धदेहाय नित्यं योगरताय च।
नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नम:।।
ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मज सूनवे।
तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात्।।
देवासुरमनुष्याश्च सिद्घविद्याधरोरगा:।
त्वया विलोकिता: सर्वे नाशंयान्ति समूलत:।।
प्रसाद कुरु मे देव वाराहोऽहमुपागत।
एवं स्तुतस्तद सौरिग्र्रहराजो महाबल:।।
।। शनिदेव के प्रमुख मंत्र ।।
शनिदेव की पूजा करते वक्त निम्न मंत्रों का जाप करना शुभ माना जाता है-
शनि गायत्री मंत्र-
ॐ शनैश्चराय विद्महे, छायापुत्राय धीमहि। तन्नो मन्दः प्रचोदयात।।
शनि बीज मंत्र-
ॐ प्रां प्रीं प्रों स: शनैश्चराय नमः।।
शनि स्तोत्र-
ॐ नीलांजन समाभासं रवि पुत्रं यमाग्रजम।
छायामार्तंड संभूतं तं नमामि शनैश्चरम।।
शनि पीड़ाहर स्तोत्र-
सुर्यपुत्रो दीर्घदेहो विशालाक्ष: शिवप्रिय:।
दीर्घचार: प्रसन्नात्मा पीडां हरतु मे शनि:।।
शनिदेव के सरल मंत्र-
“ॐ शं शनैश्चराय नमः।”
“ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः।”
।। ॐ शं शनैश्चराय नमः ।।