फूलों से सजाया दरबार गजानन आ जाना

गौरी पुत्र गणेश भजन lyrics

गौरी पुत्र गणेश भजन lyrics

फूलों से सजाया दरबार गजानन आ जाना

आ जाना महाराज गजानन आ जाना

घर के अंदर भवन बनाया

आओ विराजो महाराज गजानन आ जाना

फूलों से सजाया दरबार गजानन आ जाना.

हाथ में लोटा गंगाजल पानी

चरण धुलाऊं महाराज गजानन आ जाना

फूलों से सजाया दरबार गजानन आ जाना.

चुन-चुन कलियां मैं फुल ले आई

सोणां बनाया मैं हार गजानन आ जाना

फूलों से सजाया दरबार गजानन आ जाना.

हाथ कटोरी केसर रोली

तिलक लगाऊं महाराज गजानन आ जाना

फूलों से सजाया दरबार गजानन आ जाना.

मोदक का मैंने भोग बनाया

लडुअन के भर थाल गजानन आ जाना

फूलों से सजाया दरबार गजानन आ जाना.

हाथ में जोती जगमग होती

आरती उताऊं महाराज गजानन आ जाना

फूलों से सजाया दरबार गजानन आ जाना.

सब भक्तों की एक अर्ज है

दर्शन दो महाराज गजानन आ जाना

फूलों से सजाया दरबार गजानन आ जाना.

फूलों से सजाया दरबार गजानन आ जाना

आ जाना महाराज गजानन आ जाना

गौरी पुत्र गणेश भजन lyrics

क्या भगवान महागणपति और भगवान गणेश (पार्वती के पुत्र) दोनों एक ही हैं?

नही दोनो अलग अलग हैं । महागणपति आदि देव राम चरित्र मानस में लिखा है कि जब शंकर पार्वती का विवाह हो रहा था , तब महागणपति की पूजा हुई थी तो तो उस समय महागणपति थे । महागणपति की पूजा आदि काल से जो रही है । आदि काल में 5 देव की पूजा होती थी ।

गणेश , दुर्गा , सूर्य , शिव, विष्णु जी की होती थी इसका मतलब ये हुआ कि महागणपति पंच देव में आते है। महागणपति पार्वती के पुत्र नही है । क्योंकि जब पार्वती का विवाह के समय गणपति की पूजा हुई थी इसका मतलब गणेश पहले से थे तभी पार्वती के विवाह ज समय गणेश की पूजा हुई थी , शुरू से गणेश शुभ के देवता रहे । बाद में पार्वती के पुत्र गणेश में सुभ के साथ सुख समृद्धि भी जुड़ गया ।

तांत्रिक गणेश मंत्र-

ॐ ग्लौम गौरी पुत्र, वक्रतुंड, गणपति गुरू गणेश।

ग्लौम गणपति, ऋदि्ध पति, सिदि्ध पति। मेरे कर दूर क्लेश।

गणेश कुबेर मंत्र-

ॐ नमो गणपतये कुबेर येकद्रिको फट् स्वाहा।

गायत्री गणेश मंत्र –

ॐ एकदन्ताय विद्महे वक्रतुंडाय धीमहि तन्नो बुदि्ध प्रचोदयात।

महाकर्णाय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात्।।

गजाननाय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात्।।

ध्यान मंत्र

ओम सिन्दूर-वर्णं द्वि-भुजं गणेशं लम्बोदरं पद्म-दले निविष्टम्।
ब्रह्मादि-देवैः परि-सेव्यमानं सिद्धैर्युतं तं प्रणामि देवम्।।

मूल-पाठ

सृष्ट्यादौ ब्रह्मणा सम्यक् पूजित: फल-सिद्धए।
सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे।।

त्रिपुरस्य वधात् पूर्वं शम्भुना सम्यगर्चित:।
सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे।।

हिरण्य-कश्यप्वादीनां वधार्थे विष्णुनार्चित:।
सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे।।

महिषस्य वधे देव्या गण-नाथ: प्रपुजित:।
सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे।।

ॐ गं गणपतये नमः

षडाक्षर मंत्र-  वक्रतुंडाय हुम्‌

उच्छिष्ट गणपति का मंत्र – ॐ हस्ति पिशाचि लिखे स्वाहा

गं क्षिप्रप्रसादनाय नम:

ॐ गं नमः

ॐ श्रीं गं सौभ्याय गणपतये वर वरद सर्वजनं मे वशमानय स्वाहा।

ॐ वक्रतुण्डैक दंष्ट्राय क्लीं ह्रीं श्रीं गं गणपते वर वरद सर्वजनं मे वशमानय स्वाहा।

वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ। निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥

More mantra:—

  • गणपतिर्विघ्नराजो लम्बतुण्डो गजाननः।
    द्वैमातुरश्च हेरम्ब एकदन्तो गणाधिपः॥
    विनायकश्चारुकर्णः पशुपालो भवात्मजः।
    द्वादशैतानि नामानि प्रातरुत्थाय यः पठेत्‌॥
    विश्वं तस्य भवेद्वश्यं न च विघ्नं भवेत्‌ क्वचित्‌।
  • साज्यं च वर्तिसंयुक्तं वह्निना योजितं मया |
    दीपं गृहाण देवेश त्रैलोक्यतिमिरापहम् |
    भक्त्या दीपं प्रयच्छामि देवाय परमात्मने |
    त्राहि मां निरयाद् घोरद्दीपज्योत
  • सिन्दूरं शोभनं रक्तं सौभाग्यं सुखवर्धनम् |
    शुभदं कामदं चैव सिन्दूरं प्रतिगृह्यताम् ||
  • नैवेद्यं गृह्यतां देव भक्तिं मे ह्यचलां कुरू |
    ईप्सितं मे वरं देहि परत्र च परां गरतिम् ||
    शर्कराखण्डखाद्यानि दधिक्षीरघृतानि च |
    आहारं भक्ष्यभोज्यं च नैवेद
  • माल्यादीनि सुगन्धीनि मालत्यादीनि वै प्रभो |
    मयाहृतानि पुष्पाणि गृह्यन्तां पूजनाय भोः ||
  • नवभिस्तन्तुभिर्युक्तं त्रिगुणं देवतामयम् | उपवीतं मया दत्तं गृहाण परमेश्वर ||
  • नि षु सीड गणपते गणेषु त्वामाहुर्विप्रतमं कवीनाम् |
    न ऋते त्वत् क्रियते किंचनारे महामर्कं मघवन्चित्रमर्च ||
  • विघ्नेश्वराय वरदाय सुरप्रियाय लम्बोदराय सकलाय जगद्धिताय |
    नागाननाय श्रुतियज्ञविभूषिताय गौरीसुताय गणनाथ नमो नमस्ते ||
  • गणानां त्वा गणपतिं हवामहे प्रियाणां त्वा प्रियपतिं हवामहे |
    निधीनां त्वा निधिपतिं हवामहे वसो मम आहमजानि गर्भधमा त्वमजासि गर्भधम् ||
  • प्रातर्नमामि चतुराननवन्द्यमानमिच्छानुकूलमखिलं च वरं ददानम् |
    तं तुन्दिलं द्विरसनाधिपयज्ञसूत्रं पुत्रं विलासचतुरं शिवयोः शिवाय ||
  • खर्व स्थूलतनुं गजेन्द्रवदनं लम्बोदरं सुन्दरं प्रस्यन्दन्मदगन्धलुब्धमधुपव्यालोलगण्डस्थलम |
    दंताघातविदारितारिरूधिरैः सिन्दूरशोभाकरं वन्दे शलसुतासुतं गणपतिं सिद्धिप्रदं कामदम् ||

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Ganesh stotra

प्रणम्यं शिरसा देव गौरीपुत्रं विनायकम।

भक्तावासं: स्मरैनित्यंमायु:कामार्थसिद्धये।।1।।

प्रथमं वक्रतुंडंच एकदंतं द्वितीयकम।

तृतीयं कृष्णं पिङा्क्षं गजवक्त्रं चतुर्थकम।।2।।

लम्बोदरं पंचमं च षष्ठं विकटमेव च।

सप्तमं विघ्नराजेन्द्रं धूम्रवर्ण तथाष्टकम् ।।3।।

नवमं भालचन्द्रं च दशमं तु विनायकम।

एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजाननम।।4।।

द्वादशैतानि नामानि त्रिसंध्य य: पठेन्नर:।

न च विघ्नभयं तस्य सर्वासिद्धिकरं प्रभो।।5।।

विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी लभते धनम्।

पुत्रार्थी लभते पुत्रान् मोक्षार्थी लभते गतिम् ।।6।।

जपेद्वगणपतिस्तोत्रं षड्भिर्मासै: फलं लभेत्।

संवत्सरेण सिद्धिं च लभते नात्र संशय: ।।7।।

अष्टभ्यो ब्राह्मणेभ्यश्च लिखित्वां य: समर्पयेत।

तस्य विद्या भवेत्सर्वा गणेशस्य प्रसादत:।।8।।

Ganesh Stotra Meaning:

The learned one, who wishes,

For more life, wealth and love,

Should salute with his head,

Lord Ganapathi who is the son of Goddess Parvathi

Think him first as god with broken tusk,

Second as the Lord with one tusk,

Third as the one with reddish black eyes,

Fourth as the one who has the face of an elephant

Fifth as the one who has a very broad paunch,

Sixth as the one who is cruel to his enemies,

Seventh as the one who is the remover of obstacles,

Eighth as the one who is of the color of smoke.

Ninth as the one who crescent in his forehead,

Tenth as the one, who is the leader of remover of obstacles,

Eleventh as the leader of the army of Lord Shiva,

And twelfth as the one who has the face of an elephant.

Any one reading these twelve names,

At dawn, noon and dusk,

Will never have fear of defeat,

And would always achieve whatever he wants.

One who pursues education will get knowledge,

One who wants to earn money will get money,

One who wishes for a son, will get a son,

And one who wants salvation will get salvation.

Results of chanting this prayer,

Of Ganapati will be got within six months,

And within a year, he would get all wishes fulfilled,

And there is no doubt about this.

One who gives this prayer,

In writing to Eight wise people,

And offers it to Lord Ganesha,

Will become knowledgeable,

And would be blessed with all stellar qualities,

By the grace of Lord Ganesh.

Thus ends the prayer from Narada Purana to Ganesh which would destroy all sorrows.

।।श्री गणपति अथर्वशीर्ष।।

ॐ नमस्ते गणपतये।
त्वमेव प्रत्यक्षं तत्वमसि
त्वमेव केवलं कर्ताऽसि
त्वमेव केवलं धर्ताऽसि
त्वमेव केवलं हर्ताऽसि
त्वमेव सर्वं खल्विदं ब्रह्मासि
त्व साक्षादात्माऽसि नित्यम्।।1।।
ऋतं वच्मि। सत्यं वच्मि।।2।।
अव त्व मां। अव वक्तारं।
अव श्रोतारं। अव दातारं।
अव धातारं। अवानूचानमव शिष्यं।
अव पश्चातात। अव पुरस्तात।
अवोत्तरात्तात। अव दक्षिणात्तात्।
अवचोर्ध्वात्तात्।। अवाधरात्तात्।।
सर्वतो मां पाहि-पाहि समंतात्।।3।।
त्वं वाङ्‍मयस्त्वं चिन्मय:।
त्वमानंदमसयस्त्वं ब्रह्ममय:।
त्वं सच्चिदानंदाद्वितीयोऽसि।
त्वं प्रत्यक्षं ब्रह्मासि।
त्वं ज्ञानमयो विज्ञानमयोऽसि।।4।।
सर्वं जगदिदं त्वत्तो जायते।
सर्वं जगदिदं त्वत्तस्तिष्ठति।
सर्वं जगदिदं त्वयि लयमेष्यति।
सर्वं जगदिदं त्वयि प्रत्येति।
त्वं भूमिरापोऽनलोऽनिलो नभ:।
त्वं चत्वारिवाक्पदानि।।5।।
त्वं गुणत्रयातीत: त्वमवस्थात्रयातीत:।
त्वं देहत्रयातीत:। त्वं कालत्रयातीत:।
त्वं मूलाधारस्थितोऽसि नित्यं।
त्वं शक्तित्रयात्मक:।
त्वां योगिनो ध्यायंति नित्यं।
त्वं ब्रह्मा त्वं विष्णुस्त्वं
रूद्रस्त्वं इंद्रस्त्वं अग्निस्त्वं
वायुस्त्वं सूर्यस्त्वं चंद्रमास्त्वं
ब्रह्मभूर्भुव:स्वरोम्।।6।।
गणादि पूर्वमुच्चार्य वर्णादिं तदनंतरं।
अनुस्वार: परतर:। अर्धेन्दुलसितं।
तारेण ऋद्धं। एतत्तव मनुस्वरूपं।
गकार: पूर्वरूपं। अकारो मध्यमरूपं।
अनुस्वारश्चान्त्यरूपं। बिन्दुरूत्तररूपं।
नाद: संधानं। सं हितासंधि:
सैषा गणेश विद्या। गणकऋषि:
निचृद्गायत्रीच्छंद:। गणपतिर्देवता।
ॐ गं गणपतये नम:।।7।।
एकदंताय विद्‍महे।
वक्रतुण्डाय धीमहि।
तन्नो दंती प्रचोदयात।।8।।
एकदंतं चतुर्हस्तं पाशमंकुशधारिणम्।
रदं च वरदं हस्तैर्विभ्राणं मूषकध्वजम्।
रक्तं लंबोदरं शूर्पकर्णकं रक्तवाससम्।
रक्तगंधाऽनुलिप्तांगं रक्तपुष्पै: सुपुजितम्।।
भक्तानुकंपिनं देवं जगत्कारणमच्युतम्।
आविर्भूतं च सृष्टयादौ प्रकृ‍ते पुरुषात्परम्।
एवं ध्यायति यो नित्यं स योगी योगिनां वर:।।9।।
नमो व्रातपतये। नमो गणपतये।
नम: प्रमथपतये।
नमस्तेऽस्तु लंबोदरायैकदंताय।
विघ्ननाशिने शिवसुताय।
श्रीवरदमूर्तये नमो नम:।।10।।
एतदथर्वशीर्ष योऽधीते।
स ब्रह्मभूयाय कल्पते।
स सर्व विघ्नैर्नबाध्यते।
स सर्वत: सुखमेधते।
स पञ्चमहापापात्प्रमुच्यते।।11।।
सायमधीयानो दिवसकृतं पापं नाशयति।
प्रातरधीयानो रात्रिकृतं पापं नाशयति।
सायंप्रात: प्रयुंजानोऽपापो भवति।
सर्वत्राधीयानोऽपविघ्नो भवति।
धर्मार्थकाममोक्षं च विंदति।।12।।
इदमथर्वशीर्षमशिष्याय न देयम्।
यो यदि मोहाद्‍दास्यति स पापीयान् भवति।
सहस्रावर्तनात् यं यं काममधीते तं तमनेन साधयेत्।13।।
अनेन गणपतिमभिषिंचति
स वाग्मी भवति
चतुर्थ्यामनश्र्नन जपति
स विद्यावान भवति।
इत्यथर्वणवाक्यं।
ब्रह्माद्यावरणं विद्यात्
न बिभेति कदाचनेति।।14।।
यो दूर्वांकुरैंर्यजति
स वैश्रवणोपमो भवति।
यो लाजैर्यजति स यशोवान भवति
स मेधावान भवति।
यो मोदकसहस्रेण यजति
स वाञ्छित फलमवाप्रोति।
य: साज्यसमिद्भिर्यजति
स सर्वं लभते स सर्वं लभते।।15।।
अष्टौ ब्राह्मणान् सम्यग्ग्राहयित्वा
सूर्यवर्चस्वी भवति।
सूर्यग्रहे महानद्यां प्रतिमासंनिधौ
वा जप्त्वा सिद्धमंत्रों भवति।
महाविघ्नात्प्रमुच्यते।
महादोषात्प्रमुच्यते।
महापापात् प्रमुच्यते।
स सर्वविद्भवति से सर्वविद्भवति।
य एवं वेद इत्युपनिषद्‍।।16।।

अथर्ववेदीय गणपतिउपनिषद समाप्त।।

  • गणपति अथर्वशीर्ष (संस्कृत: गणपतिथर्वशीर्ष, गणपत्यथर्वशीर्ष) एक संस्कृत पाठ और हिंदू धर्म का एक लघु उपनिषद है।
  • श्रीगणेश अथरशीर्ष एक दिवंगत उपनिषद पाठ है जो बुद्धि और विद्या का प्रतिनिधित्व करने वाले देवता गणेश को समर्पित है।
  • यह दावा करता है कि गणेश शाश्वत अंतर्निहित वास्तविकता, ब्रह्म के समान हैं।