निधिवन का रहस्य : जहाँ सुनाई देती पायल की आवाज

Nidhivan timing in summer?

Nidhivan timing in summer?

“वृन्दावन के वृक्ष को
मर्म न जाने कोय
यहाँ डाल डाल और पात पे
राधे राधे होय।”

वृन्दावन की एक ऐसी जगह जहाँ रात में जाना हे सख्त मना , जहाँ रात में पशु – पक्षी भी नहीं रुकते।बन्दर जो वृन्दावन के गली गली में मि जाते हैं वो भी शाम होते होते यहाँ से चल देते हैं , कई लोगो का कहना है की जो कोई भी यहाँ रात में रुकता है , वो या तो जीवित नहीं रहता या बताने योग्य नहीं रहता उसने रात में क्या देखा। किसी किसी का कहना है की यहाँ रात में नूपुर की आवाज सुनाई देती है तो किसी की कोई पायल गिरा हुआ मिलता है। यहाँ के पुजारियों के अपने ही अलग अनुभव होते हैं , जी हाँ हम बात कर रहे हैं वृन्दावन के निधिवन के इस blog में आपको निधिवन की संपूर्ण जानकारी देंगे। इसके साथ हम ये भी बताएँगे की गर्मियों में निधिवन कितने बजे तक खुला रहता है (Nidhivan timing in summer?)

What happens in Nidhivan at night? निधिवन के पीछे की कहानी क्या है?

What happens in Nidhivan at night?

सुबह से शाम तक निधिवन में सामान्य परिवेश रहता है जैसा वृन्दावन के अन्य क्षेत्र का रहता है, किन्तु शाम की आरती होते -होते यहाँ के पशु -पक्षी यहाँ से जाने लगते हैं और सभी लोगो को भी यहाँ से बाहर जाने का आदेश दिया जाता है , अँधेरा होते होते पूरा निधिवन शांत और खाली हो जाता है। पुजारी लोग जाने से पहले भगवान राधा कृष्णा के लिए सुन्दर शय्या सजा के जाते हैं जिसमे सुगन्धित पुष्प और सुन्दर इत्र छिड़का जाता है। भगवान राधा कृष्ण की शय्या चन्दन के लकड़ी की बनाई जाती है, इसके साथ साथ भगवान के लिए बिस्तर के बगल में एक पात्र में जल रखा जाता है और उसके साथ साथ नीम की दातुन और पान रखा जाता है। सबसे मजे की बात यह है की सुबह जब द्वार खोले जाते हैं तो पुजारियों को अद्धभुत घटना दिखाई देती है। बिस्तर अस्त-व्यस्त पड़ा होता है , पानी उसमे आधा पड़ा मिलता है , पान चबाई हुई मिलती है और दातुन भीगी हुई मिलती है, जिससे ये कयास लगाया जाता है की रात को यहाँ भगवान राधा कृष्ण आये थे और उन्होंने यहाँ विश्राम किया होगा।

Nidhivan timing in summer?
श्री राधा रानी का श्रृंगार घर (रंग महल)

Can we go inside Nidhivan? क्या हम निधिवन के अंदर जा सकते हैं ?

निधिवन के अंदर सूर्यास्त से पहले कोई भी जा सकता है , अनेक श्रद्धालु जो वृन्दावन आते हैं उनमे से ज्यादातर यहाँ भी आते हैं। निधिवन रंगमहल के अंदर स्तिथ है, आश्चर्य की बात यह है की यहाँ के वृक्ष , गुल्म , लता , पता अन्य क्षेत्रों से अलग हैं। यहाँ के वृक्ष आपस में लिपटे हुए मिलते हैं उन्हें देख कर ऐसा लगता है मानो राधा कृष्ण अथवा गोपी कृष्ण आपस में गले मिल रहें हो। यहाँ के वृक्ष जमीन की ओर झूखे होते हैं मानो वृन्दावन की रज लेना चाहते हो।

Nidhivan timing in summer?

What are the mysterious facts about Nidhivan?

लगभग ढाई एकड़ में फैला निधिवन श्री हरीदास जी की जीवित समाधी, रंग महल , बांके बिहारी जी का प्राकट्य स्थल, राधारानी बंशी चोर आदि का दर्शनीय स्थान है। आपने तानसेन का नाम तो सुना होगा जी हाँ अकबर के दरबारी तानसेन अपने मधुर गायन के विश्वप्रसिद्ध है , उन्ही के गुरु जी श्री हरीदास जी की भजन स्थली है निधिवन। यहीं पे ठाकुर जी हरिदास जी को स्वप्न आदेश दिया था की इसी जमीन के नीचे मेरा विग्रह है उसे निकालो और उसे प्रतिष्टि करो, यही विग्रह आज बांके-बिहारी जी में पूजे जाते हैं।

Nidhivan timing in summer?

Nidhivan timing in summer?

निधिवन में गर्मी के समय प्रातः 5 बजे से शाम 8 बजे तक दर्शन किये जाते हैं , और दोपहर के समय सभी मंदिर बंद होते हैं।

Nidhivan timing in summer?

निधिवन के दर्शनीय स्थल

निधिवन के मुख्यतः 5 दर्शनीय स्थल है –

  1. ललिता कुंड
  2. श्री बांके बिहारी का प्राकृट्या स्थल
Nidhivan timing in summer?

3. श्री राधा रानी का श्रृंगार घर (रंग महल)

Nidhivan timing in summer?

4 .वंशी चोरी राधारानी

5 .श्री स्वामी हरिदास जी की समाधी स्थली

Nidhivan timing in summer?

निधिवन कैसे पहुँचे

Nidhivan timing in summer?

निधिवन वृन्दावन में बांके बिहारी से 1 किलोमीटर की दूरी पर है , निधिवन आने के लिए सबसे पहले मथुरा से वृन्दावन आ जाएं , वहां से कोई भी ऑटो वाला आपको निधिवन तक छोड़ देगा।

FAQ ‘s

What is Tulsi tree in Nidhivan?

माना जाता है की गोपियाँ ही यहाँ तुलसी के रूप में विराजमान है।

निधिवन में रात में क्या होता है?

निधिवन ठाकुर जी की नित्य विहार स्थली है ,रात के समय में निधिवन में भगवन श्री कृष्णा गोपियों संग रास खेलते हैं

What is mysterious about Nidhivan?

निधिवन में रात के समय कोई रुक नहीं सकता यहाँ तक की कोई पशु पक्षी भी नहीं।

Who stayed in Nidhivan at night?

रात के समय निधिवन में ठाकुर जी गोपियों के संग विहार करते हैं।

What is inside Nidhivan?

निधिवन के अंदर ढाई एकड़ का कुञ्ज है जहाँ सघन लताओं और तुलसी का बना कुञ्ज है। यहाँ मुख्यतः पांच चीजें हैं :

  1. ललिता कुंड
  2. श्री बांके बिहारी का प्राकृट्या स्थल
  3. श्री राधा रानी का श्रृंगार घर (रंग महल)
  4. .वंशी चोरी राधारानी
  5. श्री स्वामी हरिदास जी की समाधी स्थली

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हमने हर एक ब्लॉग के साथ रामचरितमानस की कुछ चौपाइयाँ दी हैं और मुख्य चौपाइयों को हाईलाइट किया है ,आप चाहें तो उन्हें भी पढ़ सकते हैँ

1.58

चौपाई
हृदयँ सोचु समुझत निज करनी। चिंता अमित जाइ नहि बरनी।।
कृपासिंधु सिव परम अगाधा। प्रगट न कहेउ मोर अपराधा।।
संकर रुख अवलोकि भवानी। प्रभु मोहि तजेउ हृदयँ अकुलानी।।
निज अघ समुझि न कछु कहि जाई। तपइ अवाँ इव उर अधिकाई।।
सतिहि ससोच जानि बृषकेतू। कहीं कथा सुंदर सुख हेतू।।
बरनत पंथ बिबिध इतिहासा। बिस्वनाथ पहुँचे कैलासा।।
तहँ पुनि संभु समुझि पन आपन। बैठे बट तर करि कमलासन।।
संकर सहज सरुप सम्हारा। लागि समाधि अखंड अपारा।।

दोहा/सोरठा
सती बसहि कैलास तब अधिक सोचु मन माहिं।
मरमु न कोऊ जान कछु जुग सम दिवस सिराहिं।।58।।

1.59

चौपाई
नित नव सोचु सतीं उर भारा। कब जैहउँ दुख सागर पारा।।
मैं जो कीन्ह रघुपति अपमाना। पुनिपति बचनु मृषा करि जाना।।
सो फलु मोहि बिधाताँ दीन्हा। जो कछु उचित रहा सोइ कीन्हा।।
अब बिधि अस बूझिअ नहि तोही। संकर बिमुख जिआवसि मोही।।
कहि न जाई कछु हृदय गलानी। मन महुँ रामाहि सुमिर सयानी।।
जौ प्रभु दीनदयालु कहावा। आरती हरन बेद जसु गावा।।
तौ मैं बिनय करउँ कर जोरी। छूटउ बेगि देह यह मोरी।।
जौं मोरे सिव चरन सनेहू। मन क्रम बचन सत्य ब्रतु एहू।।

दोहा/सोरठा
तौ सबदरसी सुनिअ प्रभु करउ सो बेगि उपाइ।
होइ मरनु जेही बिनहिं श्रम दुसह बिपत्ति बिहाइ।।59।।

1.60

चौपाई
एहि बिधि दुखित प्रजेसकुमारी। अकथनीय दारुन दुखु भारी।।
बीतें संबत सहस सतासी। तजी समाधि संभु अबिनासी।।
राम नाम सिव सुमिरन लागे। जानेउ सतीं जगतपति जागे।।
जाइ संभु पद बंदनु कीन्ही। सनमुख संकर आसनु दीन्हा।।
लगे कहन हरिकथा रसाला। दच्छ प्रजेस भए तेहि काला।।
देखा बिधि बिचारि सब लायक। दच्छहि कीन्ह प्रजापति नायक।।
बड़ अधिकार दच्छ जब पावा। अति अभिमानु हृदयँ तब आवा।।
नहिं कोउ अस जनमा जग माहीं। प्रभुता पाइ जाहि मद नाहीं।।

दोहा/सोरठा
दच्छ लिए मुनि बोलि सब करन लगे बड़ जाग।
नेवते सादर सकल सुर जे पावत मख भाग।।60।।

1.61

चौपाई
किंनर नाग सिद्ध गंधर्बा। बधुन्ह समेत चले सुर सर्बा।।
बिष्नु बिरंचि महेसु बिहाई। चले सकल सुर जान बनाई।।
सतीं बिलोके ब्योम बिमाना। जात चले सुंदर बिधि नाना।।
सुर सुंदरी करहिं कल गाना। सुनत श्रवन छूटहिं मुनि ध्याना।।
पूछेउ तब सिवँ कहेउ बखानी। पिता जग्य सुनि कछु हरषानी।।
जौं महेसु मोहि आयसु देहीं। कुछ दिन जाइ रहौं मिस एहीं।।
पति परित्याग हृदय दुखु भारी। कहइ न निज अपराध बिचारी।।
बोली सती मनोहर बानी। भय संकोच प्रेम रस सानी।।

दोहा/सोरठा
पिता भवन उत्सव परम जौं प्रभु आयसु होइ।
तौ मै जाउँ कृपायतन सादर देखन सोइ।।61।।

1.62

चौपाई
कहेहु नीक मोरेहुँ मन भावा। यह अनुचित नहिं नेवत पठावा।। 
दच्छ सकल निज सुता बोलाई। हमरें बयर तुम्हउ बिसराई।।
ब्रह्मसभाँ हम सन दुखु माना। तेहि तें अजहुँ करहिं अपमाना।। 
जौं बिनु बोलें जाहु भवानी। रहइ न सीलु सनेहु न कानी।।
जदपि मित्र प्रभु पितु गुर गेहा। जाइअ बिनु बोलेहुँ न सँदेहा।। 
तदपि बिरोध मान जहँ कोई। तहाँ गएँ कल्यानु न होई।।
भाँति अनेक संभु समुझावा। भावी बस न ग्यानु उर आवा।।
कह प्रभु जाहु जो बिनहिं बोलाएँ। नहिं भलि बात हमारे भाएँ।।

दोहा/सोरठा
कहि देखा हर जतन बहु रहइ न दच्छकुमारि।
दिए मुख्य गन संग तब बिदा कीन्ह त्रिपुरारि।।62।।

1.63

चौपाई
पिता भवन जब गई भवानी। दच्छ त्रास काहुँ न सनमानी।।
सादर भलेहिं मिली एक माता। भगिनीं मिलीं बहुत मुसुकाता।।
दच्छ न कछु पूछी कुसलाता। सतिहि बिलोकि जरे सब गाता।।
सतीं जाइ देखेउ तब जागा। कतहुँ न दीख संभु कर भागा।।
तब चित चढ़ेउ जो संकर कहेऊ। प्रभु अपमानु समुझि उर दहेऊ।।
पाछिल दुखु न हृदयँ अस ब्यापा। जस यह भयउ महा परितापा।।
जद्यपि जग दारुन दुख नाना। सब तें कठिन जाति अवमाना।।
समुझि सो सतिहि भयउ अति क्रोधा। बहु बिधि जननीं कीन्ह प्रबोधा।।

दोहा/सोरठा
सिव अपमानु न जाइ सहि हृदयँ न होइ प्रबोध।
सकल सभहि हठि हटकि तब बोलीं बचन सक्रोध।।63।।

1.64

चौपाई
सुनहु सभासद सकल मुनिंदा। कही सुनी जिन्ह संकर निंदा।।
सो फलु तुरत लहब सब काहूँ। भली भाँति पछिताब पिताहूँ।।
संत संभु श्रीपति अपबादा। सुनिअ जहाँ तहँ असि मरजादा।।
काटिअ तासु जीभ जो बसाई। श्रवन मूदि न त चलिअ पराई।।
जगदातमा महेसु पुरारी। जगत जनक सब के हितकारी।।
पिता मंदमति निंदत तेही। दच्छ सुक्र संभव यह देही।।
तजिहउँ तुरत देह तेहि हेतू। उर धरि चंद्रमौलि बृषकेतू।।
अस कहि जोग अगिनि तनु जारा। भयउ सकल मख हाहाकारा।।

दोहा/सोरठा
सती मरनु सुनि संभु गन लगे करन मख खीस।
जग्य बिधंस बिलोकि भृगु रच्छा कीन्हि मुनीस।।64।।

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