देवों के देव महादेव की कहानी
एक बार की बात है, एक ब्राह्मण था जिसका नाम गुणनिधि था। किन्तु उसमे ब्राह्मण जैसे कोई भी गुण न थे, कोई ऐसा पाप न था जो उसने न किया हो। इसी कारण उसके पिता ने उसे घर से निकल दिया। अब वो दिनभर इधर से उधर भटकने लगा और अपने पेट के भरण पोषण के लिए उसने चोरी करना शुरू कर दिया। एक रोज वह चोरी करने के इरादे से भगवान शंकर के मंदिर में गया, चूँकि मंदिर में बहुत अँधेरा था उसने अपना कपडा फाड़कर मंदिर में रोशनी की और उसने देखा की भगवान शंकर के शिव लिंग के ऊप्पर पे एक बड़ी घंटी है उसने उसे चोरी करने का मन बनाया और भगवान शंकर के पिंडी पे चढ़ गया। पिंडी में चढ़ते ही तत्काल भगवान शंकर प्रकट हो गए और कहा मागो वत्स वर मांगो। चोर को बहुत आश्चर्य हुआ मैं तो यहाँ चोरी करने आया और ये बोल रहे हैं वर मांगो। उसने भगवान से पूछा भगवन न मैने आपकी कभी पूजा की न मैने जीवन में कोई श्रेष्ट कर्म किया आप किस कारण से मुझ पापी पर रीझे हैं। भगवान बोले कोई मुझे पानी चढ़ाता है तो कोई पत्ता, तुमने तो स्वयं को मुझे चढ़ा दिया है, इसी कारण से मैं तुम पर प्रसन्न हूँ मांगो कोई वर मांगो। चोर बोला भगवन इस जन्म में मुझे अब कोई पाप कर्म न करना पड़े यही वर दीजिए। भगवान शिव उसकी सरलता पर अत्यधिक प्रसन्न हुए और उसे अगले जन्म में कुबेर बनने का वरदान दिया। वही चोर गुणनिधि अगले जन्म में कुबेर के पद पर आरूढ़ हुआ।
भ्राता पिता पुत्र उरगारी। पुरुष मनोहर निरखत नारी॥
होइ बिकल सक मनहि न रोकी। जिमि रबिमनि द्रव रबिहि बिलोकी॥3॥
अर्थ:-(काकभुशुण्डिजी कहते हैं-) हे गरुड़जी! (शूर्पणखा- जैसी राक्षसी, धर्मज्ञान शून्य कामान्ध) स्त्री मनोहर पुरुष को देखकर, चाहे वह भाई, पिता, पुत्र ही हो, विकल हो जाती है और मन को नहीं रोक सकती। जैसे सूर्यकान्तमणि सूर्य को देखकर द्रवित हो जाती है (ज्वाला से पिघल जाती है)॥3॥