राधा रानी का तोता

छोटी कहानी इन हिंदी

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किसी गाँव में एक भक्त रहते थे, जो सच्ची कृष्ण भक्ति में डूबे रहते थे। उनका नाम राघव था। राघव हर दिन राधा रानी और कृष्ण की पूजा करते थे और उनके भजन गाते थे। उनकी भक्ति इतनी प्रबल थी कि राधा रानी ने उन्हें अपना विशेष आशीर्वाद दिया। राधा रानी के पास एक तोता था, जो वृंदावन और बरसाने में घूमता था और राधा रानी को वहां आने वाले भक्तों की खबरें सुनाता था। यह तोता और कोई नहीं, शुकदेव जी थे। राधा रानी ने उन्हें भागवत और कृष्ण कथा का प्रचार करने का कार्य सौंप रखा था।

एक बार, माता पार्वती ने भगवान शिव से अमरता का रहस्य जानने का आग्रह किया। उन्होंने महादेव से पूछा, “महादेव, आप तो अजर-अमर हैं, परंतु मेरा बार-बार जन्म और मृत्यु होता है। मैं भी अमर हो जाऊं, ऐसा कोई उपाय बताइए।” बार-बार आग्रह करने पर भगवान शिव ने कहा, “मैं तुम्हें अमर कथा सुनाता हूं, जिसे सुनकर तुम अजर-अमर हो जाओगी।”

महादेव माता पार्वती को लेकर अमरनाथ की गुफाओं में पहुंचे और वहां अपनी त्रिशूल से गुफा को बंद कर दिया ताकि कोई और अमर कथा न सुन सके। भोलेनाथ माता पार्वती को अमर कथा सुनाने लगे। कथा सुनते-सुनते माता पार्वती को नींद आ गई। वहीं पास में एक तोते का बच्चा था, जो पूरी कथा सुन रहा था। वह तोता हर बार हुंकारे देता रहा ताकि भगवान शिव को लगे कि माता पार्वती जाग रही हैं।

जब कथा समाप्त हुई और माता पार्वती जागीं, तो भोलेनाथ समझ गए कि किसी और ने यह कथा सुनी है। उन्होंने देखा कि एक तोता उड़ रहा है और उन्होंने उसे मारने के लिए त्रिशूल चलाया। तोता भागते-भागते व्यास देव जी की पत्नी के मुंह में प्रवेश कर गया। अब तोता 12 साल तक उनके गर्भ में रहा। तब कृष्ण भगवान स्वयं प्रकट हुए और उसे बाहर आने का आग्रह किया। कृष्ण भगवान ने कहा, “तुम्हें मेरी माया का कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा, क्योंकि तुमने अमर कथा सुन ली है।”

तोता बाहर आ गया और राधा रानी के पास जाकर रहने लगा। राधा रानी ने उसे भागवत और कृष्ण कथा का प्रचार करने का कार्य सौंप दिया। अब वह तोता भक्तों को भागवत कथा सुनाता और कृष्ण की महिमा का प्रचार करता है।

भागवत का श्रवण करने से भक्ति का भाव हृदय में प्रकट होता है और भगवान के प्रति प्रेम और नाम जप की रुचि बढ़ती है। शास्त्रों में कहा गया है, “सदा सेवियं सदा सेवियं भागवतं सदा सेवियं।” अर्थात, भागवत का श्रवण और पठन हमेशा करते रहो, क्योंकि यह भवसागर से पार उतरने का प्रथम साधन है।

शिक्षा:
सच्चे भक्त को हमेशा भगवान की भक्ति और कथा का श्रवण करना चाहिए। भागवत कथा से भक्ति का उदय होता है और भगवान के प्रति प्रेम और श्रद्धा बढ़ती है। यह कथा हमें यह भी सिखाती है कि भक्ति से जीवन में अमरता और शांति प्राप्त होती है।

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श्रीमद भागवतम से शिक्षाएं:

  1. भक्ति का महत्व: सच्ची भक्ति से ही भगवान की कृपा प्राप्त होती है। “भक्ति योगेन मनसि सम्यक् प्रणिहितेऽमले। अपश्यत् पुरुषं पूर्णं मायां च तदपाश्रयाम्।।” (भागवत पुराण 1.7.4) – भक्ति योग से मन शुद्ध होकर भगवान की शरण में पहुंचता है।
  2. अमरता का रहस्य: आत्मा अमर है और भक्ति से हमें मोक्ष की प्राप्ति होती है। “देहिनोऽस्मिन्यथा देहे कौमारं यौवनं जरा। तथा देहान्तरप्राप्तिर्धीरस्तत्र न मुह्यति।।” (भागवत गीता 2.13) – आत्मा अनश्वर है और शरीर केवल एक वस्त्र है।
  3. सच्चे ज्ञान की महिमा: ज्ञान और भक्ति से ही हम संसार के बंधनों से मुक्त हो सकते हैं। “तत् श्रद्दधाना मुनयो ज्ञानवैराग्ययुक्तया। पश्यन्त्यात्मनि चात्मानं भक्त्या श्रुतगृहातया।।” (भागवत पुराण 1.2.12) – श्रद्धालु मुनि ज्ञान और वैराग्य से आत्मा में परमात्मा का दर्शन करते हैं।
  4. प्रेम और विश्वास: भगवान के प्रति सच्चा प्रेम और विश्वास ही भक्ति का आधार है। “सर्वे भवंतु सुखिनः, सर्वे संतु निरामयाः। सर्वे भद्राणि पश्यंतु, मा कश्चित् दुःख भाग्भवेत्।।” – भगवान के प्रति प्रेम और विश्वास हमें सच्ची शांति और सुख देता है।
  5. भागवत कथा का श्रवण: भागवत कथा सुनने से हृदय शुद्ध होता है और भगवान की कृपा प्राप्त होती है। “श्रवणं कीर्तनं विष्णोः स्मरणं पादसेवनम्। अर्चनं वन्दनं दास्यं साख्यमात्मनिवेदनम्।।” (भागवत पुराण 7.5.23) – भगवान के नाम का श्रवण, कीर्तन और स्मरण भक्ति का सर्वोत्तम मार्ग है।
  6. भगवान की महिमा का प्रचार: भागवत कथा और भगवान की महिमा का प्रचार करना महत्वपूर्ण है। “यस्यां वै श्रूयमाणायां कृष्णे परमपुरुषे। भक्तिरुत्पद्यते पुंसः शोकमोहभयापहा।।” (भागवत पुराण 1.7.7) – भागवत कथा सुनने से भगवान कृष्ण के प्रति भक्ति उत्पन्न होती है और शोक, मोह, भय समाप्त हो जाते हैं।
  7. सच्ची साधना: भक्ति और साधना में निरंतरता बनाए रखना जरूरी है। “नैषाां मतिस्तवदुरुक्क्रमाङ्घ्रिं स्पृशत्यनर्थापगमो यदर्थः। महीयसां पादरजोऽभिषेकं निश्किञ्चनाां न वृणीत यावत्।।” (भागवत पुराण 7.5.32) – भगवान की चरण धूलि का आभिषेक ही सच्ची साधना है।
  8. भगवान की कृपा: भगवान की कृपा से ही सच्ची भक्ति और ज्ञान प्राप्त होता है। “तेषां सततयुक्तानां भजतां प्रीतिपूर्वकम्। ददामि बुद्धियोगं तं येन मामुपयान्ति ते।।” (भागवत गीता 10.10) – जो निरंतर भक्ति करते हैं, उन्हें भगवान ज्ञान प्रदान करते हैं जिससे वे उन्हें प्राप्त कर सकते हैं।

महाभारत से शिक्षाएं:

  1. धर्म और कर्तव्य: धर्म और कर्तव्य का पालन हर स्थिति में करना चाहिए। “धर्मेणैव हतो हन्ति धर्मो रक्षति रक्षितः। तस्माद्धर्मो न हन्तव्यो मा नो धर्मो हतोऽवधीत्।।” – धर्म द्वारा संरक्षित व्यक्ति स्वयं धर्म का रक्षण करता है।
  2. भक्ति की शक्ति: सच्ची भक्ति से ही भगवान की कृपा प्राप्त होती है। “यथा यथा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत। अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।।” (भगवद गीता 4.7) – जब-जब धर्म की हानि होती है, भगवान धरती पर अवतरित होते हैं।
  3. ज्ञान और विवेक: सही ज्ञान और विवेक से ही जीवन में सफलता प्राप्त होती है। “विद्या विवादाय धनं मदाय, शक्तिः परेषां परिपीडनाय। खलस्य साधोर्विपरीतमेतद्, ज्ञानाय दानाय च रक्षणाय।।” – विद्या विवाद के लिए, धन अभिमान के लिए, और शक्ति दूसरों को पीड़ा देने के लिए नहीं होनी चाहिए।
  4. सच्चा प्रेम और विश्वास: भगवान के प्रति सच्चा प्रेम और विश्वास ही भक्ति का आधार है। “अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते। तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम्।।” (भगवद गीता 9.22) – जो अनन्य भाव से मेरी भक्ति करते हैं, उनके योगक्षेम का वहन मैं स्वयं करता हूँ।
  5. सच्ची साधना: निरंतर साधना और तपस्या से ही भगवान की कृपा प्राप्त होती है। “तपसा ह्येव दुर्वारं तपसा ह्येव दुर्जयम्। तपसा ह्येव दुष्प्रापं त्रिभुवनं सुदुर्लभम्।।” – तपस्या से ही दुर्लभ वस्तुएं प्राप्त होती हैं और कठिनाईयों पर विजय पाई जा सकती है।
  6. भक्ति और ज्ञान का प्रसार: भगवान की कथा और ज्ञान का प्रसार करना महत्वपूर्ण है। “श्रद्धावाँल्लभते ज्ञानं तत्परः संयतेन्द्रियः। ज्ञानं लब्ध्वा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति।।” (भगवद गीता 4.39) – श्रद्धालु और इंद्रियों को संयमित करने वाला व्यक्ति ज्ञान प्राप्त कर शीघ्र ही परम शांति प्राप्त करता है।
  7. विवेक और संकल्प: विवेक और संकल्प से ही हम संसार के बंधनों से मुक्त हो सकते हैं। “संशयात्मा विनश्यति। नायं लोकोऽस्ति न परो न सुखं संशयात्मनः।।” (भगवद गीता 4.40) – संदेहशील व्यक्ति का न तो यह लोक है, न परलोक, न ही उसे कोई सुख प्राप्त होता है।
  8. भगवान की कृपा: भगवान की कृपा से ही सच्ची भक्ति और ज्ञान प्राप्त होता है। “तस्मादसक्तः सततं कार्यं कर्म समाचर। असक्तो ह्याचरन्कर्म परमाप्नोति पूरुषः।।” (भगवद गीता 3.19) – इसलिए निरंतर बिना आसक्ति के अपना कर्तव्य करते रहो, क्योंकि निष्काम कर्म से ही व्यक्ति परम सिद्धि प्राप्त करता है।

🙏 जय श्री राधे 🙏

श्रीमद्भगवद्गीता से श्लोक और उनकी शिक्षाएं:

  1. धर्म और कर्तव्य:
  • “धर्मेणैव हतो हन्ति धर्मो रक्षति रक्षितः। तस्माद्धर्मो न हन्तव्यो मा नो धर्मो हतोऽवधीत्।।” (महाभारत)
  • श्रीमद्भगवद्गीता 3.35:
    • “श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात्।
      स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः।।”
    • “अपने धर्म में मृत्यु भी श्रेयस्कर है, परधर्म तो भय ही देने वाला है।”
  1. भक्ति की शक्ति:
  • “अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते। तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम्।।” (गीता 9.22)
  • श्रीमद्भगवद्गीता 9.22:
    • “अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते।
      तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम्।।”
    • “जो अनन्यभाव से मेरी भक्ति करते हैं, उनके योगक्षेम का वहन मैं स्वयं करता हूँ।”
  1. ज्ञान और विवेक:
  • “विद्या विवादाय धनं मदाय, शक्तिः परेषां परिपीडनाय। खलस्य साधोर्विपरीतमेतद्, ज्ञानाय दानाय च रक्षणाय।।” (महाभारत)
  • श्रीमद्भगवद्गीता 4.39:
    • “श्रद्धावाँल्लभते ज्ञानं तत्परः संयतेन्द्रियः।
      ज्ञानं लब्ध्वा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति।।”
    • “श्रद्धालु और इंद्रियों को संयमित करने वाला व्यक्ति ज्ञान प्राप्त कर शीघ्र ही परम शांति प्राप्त करता है।”
  1. सच्चा प्रेम और विश्वास:
  • “यथा यथा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत। अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।।” (गीता 4.7)
  • श्रीमद्भगवद्गीता 9.26:
    • “पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो मे भक्त्या प्रयच्छति।
      तदहं भक्त्युपहृतमश्नामि प्रयतात्मनः।।”
    • “जो कोई प्रेमपूर्वक पत्र, पुष्प, फल, जल मुझे अर्पित करता है, उसे मैं प्रेमपूर्वक स्वीकार करता हूँ।”
  1. सच्ची साधना:
  • “तपसा ह्येव दुर्वारं तपसा ह्येव दुर्जयम्। तपसा ह्येव दुष्प्रापं त्रिभुवनं सुदुर्लभम्।।” (महाभारत)
  • श्रीमद्भगवद्गीता 6.5:
    • “उद्धरेदात्मनाऽत्मानं नात्मानमवसादयेत्।
      आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः।।”
    • “मनुष्य को स्वयं अपने द्वारा उद्धार करना चाहिए, स्वयं को पतन में नहीं डालना चाहिए। क्योंकि आत्मा ही आत्मा का मित्र है और आत्मा ही आत्मा का शत्रु है।”
  1. भक्ति और ज्ञान का प्रसार:
  • “श्रद्धावाँल्लभते ज्ञानं तत्परः संयतेन्द्रियः। ज्ञानं लब्ध्वा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति।।” (गीता 4.39)
  • श्रीमद्भगवद्गीता 18.66:
    • “सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।
      अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः।।”
    • “सभी धर्मों को त्याग कर केवल मेरी शरण में आओ। मैं तुम्हें सभी पापों से मुक्त कर दूँगा, शोक मत करो।”
  1. विवेक और संकल्प:
  • “संशयात्मा विनश्यति। नायं लोकोऽस्ति न परो न सुखं संशयात्मनः।।” (गीता 4.40)
  • श्रीमद्भगवद्गीता 4.40:
    • “अज्ञश्चाश्रद्दधानश्च संशयात्मा विनश्यति।
      नायं लोकोऽस्ति न परो न सुखं संशयात्मनः।।”
    • “अज्ञानी और अश्रद्धालु व्यक्ति संशययुक्त होता है, वह न इस लोक में सुख पाता है, न परलोक में।”
  1. भगवान की कृपा:
  • “तस्मादसक्तः सततं कार्यं कर्म समाचर। असक्तो ह्याचरन्कर्म परमाप्नोति पूरुषः।।” (गीता 3.19)
  • श्रीमद्भगवद्गीता 18.58:
    • “मच्चित्तः सर्वदुर्गाणि मत्प्रसादात्तरिष्यसि।
      अथ चेत्वमहंकारान्न श्रोष्यसि विनङ्क्ष्यसि।।”
    • “यदि तुम मुझमें चित्तवृत्ति रखकर मेरी कृपा से सब बाधाओं को पार कर जाओगे, अन्यथा यदि अहंकार के कारण नहीं सुनोगे तो नष्ट हो जाओगे।”

🙏 जय श्री राधे 🙏