प्रेम मंदिर वृन्दावन ( Prem Mandir Vrindavan )

प्रेम-मंदिर-किसने-बनवाया-है

यूँ तो वृन्दावन में इतने मंदिर हैं यदि कोई पूरे जीवन भी दर्शन करें तो भी वह हर मंदिर के दर्शन नहीं कर सकता, किन्तु यदि कोई वृन्दावन जाए और प्रेम मंदिर न जाए ऐसा हो ही नहीं सकता। आज मैं आपको प्रेम मंदिर के बारे में पूरी जानकारी दूंगा। इसी ब्लॉग में आपको आपके सवाल “प्रेम मंदिर किसने बनवाया है ” का जवाब भी मिलेगा।

प्रेम मंदिर किसने बनवाया है?

प्रेम मंदिर जिसका शाब्दिक तात्पर्य meaning Temple of Divine  Love से है, वह प्रेम जो अपने प्रेमास्पद के सुख में सुखी रहने से सम्बंधित है जिसमे किंचित भी स्वार्थ की गंध भी नहीं होती। जो प्रेम ब्रजवासियों का भगवान श्री कृष्ण के प्रति था, वृन्दावन के लता पत्ता, गाय बछड़ो से लेकर नर नारी का भगवान श्री कृष्ण से कहीं ऐसा प्रेम ब्रजभूमि के अलावा और कहीं नहीं दिखता , इसी प्रेम का द्योतक है प्रेम मंदिर जिसे जगतगुरु कृपालुजी महाराज जी ने बनवाया था। यह मंदिर 55 एकड़ में फैला है। इस मंदिर की वास्तुकला, शिल्पकला भी बहुत ही अनोखी है , यही कारण है की अक्सर लोग इस मंदिर में आते रहते हैं और इस मंदिर की तारीफ किये बिना नहीं रहते।

प्रेम मंदिर की खूबसूरती

मंदिर का प्रांगण रंग बिरंगे खूबसूरत फूलों के बगीचों से सुशोभित है, मंदिर की बाहरी दीवारों पर उकेरी गयी भगवान की विविध लीलाएं द्वापर युग के उस स्वर्णिम काल की स्मृति दिलाता है। । मंदिर प्रांगण पर एक परिक्रमा मार्ग का निर्माण किया गया है, जिससे आगंतुक मंदिर की बाहरी दीवारों पर उकेरे गए 84 पैनलों को देख सकते हैं, जो श्री राधा कृष्ण की लीलाओं को खूबसूरती से चित्रित करते हैं।

प्रेम मंदिर किसने बनवाया है?

इसके साथ मंदिर के अंदर भी परिक्रमा मार्ग के द्वारा दूसरी मंजिल तक जाया जाता है और दर्शक दीवारों पर उकेरी गयी विविध प्रकार की राधा कृष्ण की लीलाओं को देख सकते हैं जो की 48 पैनलों पर हैं। मुख्य मंदिर के चारों ओर भगवान कृष्ण और उनके भक्तों की विभिन्न मूर्तियों के साथ सुंदर बगीचे और फव्वारे हैं, जो श्री कृष्ण की चार लीलाओं झूलन लीला, गोवर्धन लीला, रास लीला को दर्शाते हैं।

मंदिर के बाहर कृष्ण विविध प्रकार की लीलाओं को करते हुए नजर आते हैं। यहाँ विविध प्रकार की जीवंत कृष्ण लीलाएं देखने को मिलती हैं जैसे कालिया नाग लीला जब भगवान् श्री कृष्णा यमुना को विषैला करने वाले कालिया नाग के फणों पैर नृत्य करने लगते हैं , दूसरी भगवान कृष्ण द्वारा राक्षसी पूतना का वध करने की झांकी है। तीसरी नंदलाल की झांकी है जो भगवान कृष्ण को सिर पर बिठाकर यमुना नदी पार कर रहे हैं ,चौथी झांकी है नटखट भगवान कृष्ण के पीछे दौड़ती यशोदा मैया की पांचवी झांकी है यह भगवान कृष्ण के साथ उनकी प्रेममयी राधा झूलन लीला करते हुए की झांकी है, छठी झांकी है भगवान कृष्ण अपनी प्रेमिका राधा जी की सेवा करते हुए सातवीं भगवान कृष्ण और रास-लीला करते गोपियों की झांकी है आठवीं भगवान श्रीकृष्ण की गोवर्धन पर्वत उठाए हुए की झांकी है। यह विशाल कालिया नाग पर नृत्य करते हुए भगवान कृष्ण की झांकी है। यह भगवान राम और वानर सेना की शिव लिंग की पूजा करते हुए झांकी है, मुख्य मंदिर के बगल में, 73,000 वर्ग फुट, स्तंभ रहित, गुंबद के आकार का एक मंदिर है।

प्रेम मंदिर किसने बनवाया है?

सत्संग हॉल जिसमें प्रार्थना और सभा के लिए एक समय में 25,000 लोग बैठ सकते हैं। खाने के लिए एक रेस्तरां और भगवान कृष्ण की सुंदर कलाकृतियाँ और मूर्तियाँ खरीदने के लिए एक दुकान भी है। रात में, मंदिर की रोशनी इसकी सुंदर वास्तुकला से मेल खाती है और इस धार्मिक स्थल के सबसे दिलचस्प आकर्षणों में से एक है।

प्रेम मंदिर के बारे में क्या खास है?

यहां एक आश्चर्यजनक संगीत फव्वारा भी है, जहां शाम को मनभावन ध्वनि और प्रकाश शो होता है। मंदिर परिसर में बजाए जा रहे राधे कृष्ण के कीर्तन और भजनों के संगीत के साथ रंगीन पानी घूम-घूम कर आगंतुकों के लिए एक आनंददायक ऑडियो-विजुअल बनाता है। कैसे पहुंचें यह मंदिर परिसर वृन्दावन के बाहरी इलाके में स्थित है।

मथुरा रेलवे स्टेशन से प्रेम मंदिर वृंदावन कैसे पहुंचे?

मथुरा से प्रेम मंदिर जाने का सबसे अच्छा तरीका है यहाँ चलने वाली ऑटो जो 30-40 रुपए में वृन्दावन पहुंचा देती है। आप ऑटो वाले भैया को बता दीजिए वो आपको सीधे प्रेम मंदिर छोड़ देंगे। दूसरा तरीका है A.C. बस जो आपको बस स्टेशन से मिलेगी।

वृन्दावन सड़क मार्ग द्वारा हरिद्वार, आगरा, जयपुर, कोलकाता और भारत के अन्य प्रमुख शहरों से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। टैक्सी से वृन्दावन पहुँचने में लगभग साढ़े तीन घंटे लगेंगे। निकटतम रेलवे जंक्शन मथुरा जंक्शन है, जो वृन्दावन से 14 किलोमीटर दूर स्थित है। मथुरा से वृन्दावन तक टैक्सी, बसें और शेयरिंग ऑटो-रिक्शा आसानी से उपलब्ध हैं। मथुरा से वृन्दावन के बीच एक स्थानीय उपनगरीय रेलगाड़ी भी है।

आगरा का खेरिया हवाई अड्डा 53 किमी की दूरी पर निकटतम घरेलू हवाई अड्डा है। 150 किलोमीटर दूर स्थित दिल्ली का इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा निकटतम अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा है।

प्रेम मंदिर किसने बनवाया है?

F.A.Qs

क्या प्रेम मंदिर वृंदावन में मोबाइल की अनुमति है?

प्रेम मंदिर वृन्दावन में मोबाइल की अनुमति है किन्तु वहां अंदर की फोटो खींचना मना है।

प्रेम मंदिर के लिए प्रवेश का समय क्या है?

यह सप्ताह के सभी दिनों में सुबह 8:30 बजे से दोपहर 12:30 बजे तक और फिर शाम 4:30 बजे से रात 8:30 बजे तक खुला रहता है।

दिल्ली से प्रेम मंदिर वृंदावन कैसे जाए?

दिल्ली से मथुरा बस,रेल अथवा टैक्सी से आ जाएं उसके बाद मथुरा से ऑटो अथवा बस से वृन्दावन आ जाएं।

वृंदावन जाने के लिए कौन से स्टेशन पर उतरना पड़ेगा?

वृन्दावन जाने के लिए मथुरा में उतरना पड़ता है। मथुरा केंट में न उतरें उसके 3 K.M . बाद मथुरा जंक्शन पर उतरें।

प्रेम मंदिर वृंदावन जाने में कितना खर्च होता है?

प्रेम मंदिर निःशुल्क है। यहाँ प्रवेश में कोई शुल्क नहीं लिया जाता है।

प्रेम मंदिर किसने बनवाया है?

जगतगुरु कृपालु जी महाराज ने इस मंदिर का निर्माण करवाया। 14 जनवरी 2001 को कृपालु जी महाराज ने हजारों भक्तों के साथ मिलकर इस मंदिर की नींव रखी थी।

 प्रेम मंदिर का मालिक कौन है?

प्रेम मंदिर को जगतगुरु कृपालु परिषत् (जो की अंतराष्ट्रीय संस्था है) के द्वारा संचालित किया जाता है। यह अंतराष्ट्रीय, शैक्षणिक, आध्यात्मिक और धर्मार्थ न्यास और गैर लाभकारी संस्था है।

प्रेम मंदिर कितना पुराना है?

14 जनवरी को इसकी नींव रखी गयी और 15 फ़रवरी 2012 को इस मंदिर का उद्धघाटन किया गया।

प्रेम मंदिर की लागत क्या है?

प्रेम मंदिर के निर्माण में लगभग पचास करोड़ रुपये (50 crore rupees. ($23 million)  ) खर्च हुए।

प्रेम मंदिर में क्या खास है?

प्रेम मंदिर का निर्माण इटालियन मार्बल के द्वारा किया गया है जिसे बनाने के लिए 1000 कुशल कारीगर लगाए गए और इसका निर्माण लगभग 12 वर्ष में पूर्ण हुआ। मंदिर की ऊंचाई 125 फीट, लंबाई 190 फीट, 128 फीट चौड़ी है। मंदिर के गर्भ गृह के दीवारों की मोटाई 8 फीट है , जो अपने ऊप्पर शिखर, गर्भगृह , और स्वर्ण कलश धारण किये हुए है।

प्रेम मंदिर में किसकी मूर्ति है?

ग्राउंड फ्लोर में भगवान राधा कृष्ण की मूर्ति मुख्य रूप से विराजित है और फर्स्ट फ्लोर में भगवान सीता राम की मूर्ति है।

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हमने हर एक ब्लॉग के साथ रामचरितमानस की कुछ चौपाइयाँ दी हैं और मुख्य चौपाइयों को हाईलाइट किया है ,आप चाहें तो उन्हें भी पढ़ सकते हैँ

1.22

चौपाई
नाम जीहँ जपि जागहिं जोगी। बिरति बिरंचि प्रपंच बियोगी।।
ब्रह्मसुखहि अनुभवहिं अनूपा। अकथ अनामय नाम न रूपा।।
जाना चहहिं गूढ़ गति जेऊ। नाम जीहँ जपि जानहिं तेऊ।।
साधक नाम जपहिं लय लाएँ। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएँ।।
जपहिं नामु जन आरत भारी। मिटहिं कुसंकट होहिं सुखारी।।
राम भगत जग चारि प्रकारा। सुकृती चारिउ अनघ उदारा।।
चहू चतुर कहुँ नाम अधारा। ग्यानी प्रभुहि बिसेषि पिआरा।।
चहुँ जुग चहुँ श्रुति ना प्रभाऊ। कलि बिसेषि नहिं आन उपाऊ।।

दोहा/सोरठा
सकल कामना हीन जे राम भगति रस लीन।
नाम सुप्रेम पियूष हद तिन्हहुँ किए मन मीन।।22।।

श्लोक :

* वर्णानामर्थसंघानां रसानां छन्दसामपि।
मंगलानां च कर्त्तारौ वन्दे वाणीविनायकौ॥1॥

भावार्थ:-अक्षरों, अर्थ समूहों, रसों, छन्दों और मंगलों को करने वाली सरस्वतीजी और गणेशजी की मैं वंदना करता हूँ॥1॥

* भवानीशंकरौ वन्दे श्रद्धाविश्वासरूपिणौ।
याभ्यां विना न पश्यन्ति सिद्धाः स्वान्तःस्थमीश्वरम्‌॥2॥

भावार्थ:-श्रद्धा और विश्वास के स्वरूप श्री पार्वतीजी और श्री शंकरजी की मैं वंदना करता हूँ, जिनके बिना सिद्धजन अपने अन्तःकरण में स्थित ईश्वर को नहीं देख सकते॥2॥

* वन्दे बोधमयं नित्यं गुरुं शंकररूपिणम्‌।
यमाश्रितो हि वक्रोऽपि चन्द्रः सर्वत्र वन्द्यते॥3॥

भावार्थ:-ज्ञानमय, नित्य, शंकर रूपी गुरु की मैं वन्दना करता हूँ, जिनके आश्रित होने से ही टेढ़ा चन्द्रमा भी सर्वत्र वन्दित होता है॥3॥

* सीतारामगुणग्रामपुण्यारण्यविहारिणौ।
वन्दे विशुद्धविज्ञानौ कवीश्वरकपीश्वरौ॥4॥

भावार्थ:-श्री सीतारामजी के गुणसमूह रूपी पवित्र वन में विहार करने वाले, विशुद्ध विज्ञान सम्पन्न कवीश्वर श्री वाल्मीकिजी और कपीश्वर श्री हनुमानजी की मैं वन्दना करता हूँ॥4॥

* उद्भवस्थितिसंहारकारिणीं क्लेशहारिणीम्‌।
सर्वश्रेयस्करीं सीतां नतोऽहं रामवल्लभाम्‌॥5॥

भावार्थ:-उत्पत्ति, स्थिति (पालन) और संहार करने वाली, क्लेशों को हरने वाली तथा सम्पूर्ण कल्याणों को करने वाली श्री रामचन्द्रजी की प्रियतमा श्री सीताजी को मैं नमस्कार करता हूँ॥5॥

* यन्मायावशवर्ति विश्वमखिलं ब्रह्मादिदेवासुरा
यत्सत्त्वादमृषैव भाति सकलं रज्जौ यथाहेर्भ्रमः।
यत्पादप्लवमेकमेव हि भवाम्भोधेस्तितीर्षावतां
वन्देऽहं तमशेषकारणपरं रामाख्यमीशं हरिम्‌॥6॥

भावार्थ:-जिनकी माया के वशीभूत सम्पूर्ण विश्व, ब्रह्मादि देवता और असुर हैं, जिनकी सत्ता से रस्सी में सर्प के भ्रम की भाँति यह सारा दृश्य जगत्‌ सत्य ही प्रतीत होता है और जिनके केवल चरण ही भवसागर से तरने की इच्छा वालों के लिए एकमात्र नौका हैं, उन समस्त कारणों से पर (सब कारणों के कारण और सबसे श्रेष्ठ) राम कहलाने वाले भगवान हरि की मैं वंदना करता हूँ॥6॥

* नानापुराणनिगमागमसम्मतं यद्
रामायणे निगदितं क्वचिदन्यतोऽपि।
स्वान्तःसुखाय तुलसी रघुनाथगाथा
भाषानिबन्धमतिमंजुलमातनोति॥7॥

भावार्थ:-अनेक पुराण, वेद और (तंत्र) शास्त्र से सम्मत तथा जो रामायण में वर्णित है और कुछ अन्यत्र से भी उपलब्ध श्री रघुनाथजी की कथा को तुलसीदास अपने अन्तःकरण के सुख के लिए अत्यन्त मनोहर भाषा रचना में विस्तृत करता है॥7॥

सोरठा :

* जो सुमिरत सिधि होइ गन नायक करिबर बदन।
करउ अनुग्रह सोइ बुद्धि रासि सुभ गुन सदन॥1॥

भावार्थ:-जिन्हें स्मरण करने से सब कार्य सिद्ध होते हैं, जो गणों के स्वामी और सुंदर हाथी के मुख वाले हैं, वे ही बुद्धि के राशि और शुभ गुणों के धाम (श्री गणेशजी) मुझ पर कृपा करें॥1॥

* मूक होइ बाचाल पंगु चढ़इ गिरिबर गहन।
जासु कृपाँ सो दयाल द्रवउ सकल कलिमल दहन॥2॥

भावार्थ:-जिनकी कृपा से गूँगा बहुत सुंदर बोलने वाला हो जाता है और लँगड़ा-लूला दुर्गम पहाड़ पर चढ़ जाता है, वे कलियुग के सब पापों को जला डालने वाले दयालु (भगवान) मुझ पर द्रवित हों (दया करें)॥2॥

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