एक ब्राह्मण और पारस पत्थर

छोटी कहानी इन हिंदी एक ब्राह्मण और पारस पत्थर

एक समय की बात है, एक ब्राह्मण निर्धनता के कारण बहुत दुखी था। जहां भी वह सहायता मांगने जाता, वहां उसे तिरस्कार मिलता था। वह शास्त्रों को जानने वाला और स्वाभिमानी था।

उसने संकल्प किया कि जिस थोड़े से धन और स्वर्ण के कारण धनी लोग उसका तिरस्कार करते हैं, वह उस स्वर्ण को मूल्यहीन कर देगा। वह अपने तप से पारस प्राप्त करेगा और सोने की ढेरियां लगा देगा।

लेकिन उसे एक चिंता सताने लगी कि पारस कहां से मिलेगा? ढूंढने से तो वह मिलने से रहा। कौन देगा उसे पारस? देवता तो स्वयं लक्ष्मी के दास हैं, वे उसे क्या पारस देंगे?

अंत में ब्राह्मण ने भगवान शिव की शरण लेने का निश्चय किया। उसने निरंतर भगवान शिव की आराधना, रुद्राक्षमाला का जप और कठिन व्रतों का पालन करना शुरू कर दिया।

बारह वर्षों की तपस्या के बाद भगवान शिव प्रसन्न हुए और उन्होंने स्वप्न में दर्शन देकर कहा कि वृंदावन में श्रीसनातन गोस्वामी के पास पारस है और वे उसे दे देंगे।

ब्राह्मण खुशी के मारे वृंदावन की ओर चल पड़ा। वहां पहुंचकर उसने सनातन गोस्वामी को देखा, जो वृक्ष के नीचे बैठे थे और फटी लंगोटी पहने हुए थे। उनके पास गुदड़ी और कमंडल था।

जब ब्राह्मण ने उनसे पारस के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि उनके पास वह पारस नहीं है। एक दिन उन्होंने पारस को यमुना की रेत में गाड़ दिया था ताकि वह छू न जाए और उन्हें स्नान न करना पड़े।

सनातन गोस्वामी ने उस स्थान का पता बता दिया जहां पारस दबा हुआ था। रेत में खोदकर ब्राह्मण को पारस मिल गया। उसने उसकी परीक्षा की और पारस सच्चा निकला।

लेकिन अब उसके मन में एक प्रश्न आया कि जिस संत के पास पारस था, उसने उसे क्यों नहीं रखा? शायद उसके पास पारस से भी अधिक मूल्यवान कोई वस्तु है।

जब उसने सनातन गोस्वामी से इस बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि उनके पास पारस से भी अधिक मूल्यवान ‘श्रीकृष्णनाम’ रूपी कल्पवृक्ष है। उन्होंने कहा कि श्रीकृष्णनाम से सब कुछ प्राप्त किया जा सकता है – मुक्ति, परमानंद, व्रजरस। यह नाम सभी पापों को नष्ट करता है और भक्ति का उदय करता है।

ब्राह्मण ने उनसे श्रीकृष्णनाम की दीक्षा लेने की विनती की। सनातन गोस्वामी ने कहा कि इसके लिए उसे पारस को यमुना में फेंक देना होगा। ब्राह्मण ने पारस को नदी में दूर फेंक दिया।

संतों के दर्शन और भगवान शिव की कृपा से ब्राह्मण का मन और चित्त निर्मल हो गया था। उसका धन का मोह समाप्त हो गया था। सनातन गोस्वामी ने उसे श्रीकृष्णनाम की दीक्षा दी, जो सभी वस्तुओं से अधिक मूल्यवान है।

इस कथा से निम्नलिखित पाठ मिलते हैं:

  1. धन और सामग्री संपत्ति असली खुशी नहीं दे सकती: ब्राह्मण को धन और सोने की चाह थी, लेकिन अंत में उसे समझ आया कि श्रीकृष्णनाम ही सच्ची खुशी और संतोष देने वाला है।
  2. संतों की कृपा का महत्व: ब्राह्मण को भगवान शिव और संत सनातन गोस्वामी की कृपा से ही श्रीकृष्णनाम रूपी असली खजाना मिला। संतों की शरण और उनकी कृपा मनुष्य को सच्चा ज्ञान और मोक्ष दिला सकती है।
  3. परमात्मा की भक्ति ही सर्वोपरि है: कथा में सनातन गोस्वामी ने बताया कि श्रीकृष्णनाम से ही सब कुछ मिल सकता है – मुक्ति, आनंद, भक्ति आदि। भगवान की भक्ति और नाम स्मरण ही सबसे बड़ा धन है।
  4. मोह और आसक्ति से मुक्ति: ब्राह्मण को पारस त्यागना पड़ा ताकि उसका धन का मोह दूर हो और वह श्रीकृष्णनाम का अधिकारी बन सके। मनुष्य को मोह और आसक्तियों से मुक्त होना चाहिए।
  5. सरलता और विनम्रता का महत्व: संत सनातन गोस्वामी का सादा और विनम्र जीवन भी एक सबक देता है कि सच्चे आध्यात्मिक जीवन में सरलता और विनम्रता महत्वपूर्ण है।

इस प्रकार यह कथा धन, भगवान की भक्ति, संतों की महिमा और मोह से मुक्ति जैसे महत्वपूर्ण जीवन मूल्यों की शिक्षा देती है।

निम्नलिखित 20 शिक्षाएं भगवद्गीता से इस कथा से मेल खाती हैं:

  1. मनुष्य को धन-सम्पत्ति में नहीं, परमात्मा में ही संतोष और आनंद खोजना चाहिए (गीता 2.59)
  2. परमात्मा की भक्ति ही जीवन का सर्वोच्च लक्ष्य होना चाहिए (गीता 7.16)
  3. नाम स्मरण और भगवान की भक्ति से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं (गीता 18.66)
  4. ज्ञानी संत सदा विनम्र और अहंकाररहित रहते हैं (गीता 13.8-12)
  5. संसार के मोह और आसक्तियों से मुक्त होकर ही परमात्मा की प्राप्ति संभव है (गीता 2.71)
  6. किसी वस्तु या व्यक्ति से मोह न करके सब कुछ परमात्मा को ही अर्पित करना चाहिए (गीता 9.27-28)
  7. विवेक और बुद्धि से काम लेना चाहिए न कि मोह और आसक्ति से (गीता 3.41)
  8. गुरु और संत महात्माओं की शरण में जाकर ज्ञान प्राप्त करना चाहिए (गीता 4.34)
  9. सभी कामनाओं, विकारों और मोहों से मुक्त होना ही सच्ची मुक्ति है (गीता 2.71)
  10. भौतिक वस्तुओं की तृष्णा मनुष्य को बार-बार दुःख देती है (गीता 2.59)
  11. मन को हर परिस्थिति में स्थिर और संतुलित रखना चाहिए (गीता 2.48)
  12. धनादि सांसारिक वस्तुएं क्षणभंगुर हैं, केवल परमात्मा ही शाश्वत है (गीता 2.16-17)
  13. अज्ञान से ही वासनाएं, आसक्तियां और दु:ख उत्पन्न होते हैं (गीता 3.39)
  14. संतोग को तत्काल ध्यान में लेकर कर्तव्य करते रहना चाहिए (गीता 2.47)
  15. परमात्मा के प्रति भक्ति और समर्पण से ही आनंद और शांति मिलती है (गीता 18.54-55)
  16. सांसारिक अभिलाषाओं से मुक्त होकर एकाग्रचित्त से भगवान की उपासना करनी चाहिए (गीता 6.24-25)
  17. सदा शरीर से परे आत्मा को देखना चाहिए (गीता 2.59)
  18. शास्त्रों का गहरा अध्ययन करके विवेकपूर्वक आचरण करना चाहिए (गीता 16.23-24)
  19. हर क्रिया में परमात्मा को ही अर्पित कर देना चाहिए (गीता 12.6-7)
  20. संतों की शरण से विवेक बुद्धि का विकास होता है (गीता 4.34)

इस प्रकार भगवद्गीता के ये सिद्धांत इस कथा से सहज रूप से जुड़ते हैं।

निश्चित रूप से, इन शिक्षाओं के साथ संबंधित कुछ महत्वपूर्ण श्लोक भी दे रहा हूं:

  1. धन-सम्पत्ति में संतोष नहीं मिलता: “विषयानिन्द्रियैरारात विमूढात्मा नित्यतृप्तो भूतानामकृत्स्नवित्” (गीता 2.59)
  2. भगवान की भक्ति सर्वोच्च लक्ष्य: “मामेवैषस्यदुर्गं गतिं भक्तिरशनायाम्” (गीता 7.16)
  3. नाम स्मरण से पाप नाश:
    “सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज | अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः” (गीता 18.66)
  4. ज्ञानी संत विनीत और अहंकाररहित: “अमानित्वमदम्भित्वमहिंसा क्षान्तिरार्जवम् | आचार्योपासनं शौचं स्थैर्यमात्मविनिग्रहः” (गीता 13.8)
  5. संसार के मोह से मुक्त होना: “विहाय कामान्यः सर्वान्पुमांश्चरति निःस्पृहः। निर्ममो निरहंकारः स शान्तिमधिगच्छति।” (गीता 2.71)
  6. मोहरहित होकर भगवान को अर्पण: “अनन्याश्चिन्तयन्तों मां ये जनाः पर्युपासते। तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम्।।” (गीता 9.22)
  7. विवेक बुद्धि से कार्य करना: “इन्द्रियाणि मनो बुद्धिरस्याधिष्ठानमुच्यते। बुद्ध्या युक्तो यया पार्थ कर्मबन्धं प्रहास्यसि।।” (गीता 3.41)
  8. गुरु की शरण और ज्ञान प्राप्त करना: “तद्विद्धि प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया। उपदेक्ष्यन्ति ते ज्ञानं ज्ञानिनस्तत्त्वदर्शिनः।।” (गीता 4.34)
  9. कामना और आसक्तियों से मुक्ति: “विहाय कामान् यः सर्वान् पुमांश्चरति निःस्पृहः। निर्ममो निरहंकारः स शान्तिमधिगच्छति।।” (गीता 2.71)
  10. तृष्णा ही दुःख की जड़: “यावानर्थ उदपाने सर्वतः सम्प्लुतोदके। तावान् सर्वेषु वेदेषु ब्राह्मणस्य विजानतः।।” (गीता 2.46)

इन श्लोकों के माध्यम से भगवद्गीता की अमूल्य शिक्षाएं इस कथा में समाहित हैं।

छोटी कहानी इन हिंदी एक ब्राह्मण और पारस पत्थर

बच्चों की रात की कहानियां

एक राजा ने प्रसन्न मन से अपने मंत्री से उसकी सबसे बड़ी इच्छा के बारे में पूछा। मंत्री ने शरमाते हुए राज्य का एक छोटा सा हिस्सा देने की इच्छा जताई। राजा ने मंत्री को आश्चर्यचकित करते हुए आधा राज्य देने की पेशकश की, लेकिन साथ ही यह भी घोषणा की कि अगर मंत्री तीस दिनों में तीन सवालों के जवाब नहीं दे पाया तो उसे मौत के घाट उतार दिया जाएगा। सवाल थे:

मानव जीवन का सबसे बड़ा सच क्या है?
मानव जीवन का सबसे बड़ा धोखा क्या है?
मानव जीवन की सबसे बड़ी कमजोरी क्या है?

मंत्री ने हर जगह जवाब ढूँढ़ा लेकिन कोई भी जवाब उसे संतुष्ट करने वाला नहीं मिला। आखिरी दिन उसकी मुलाक़ात एक भूतपूर्व मंत्री से हुई जो एक गरीब आदमी की तरह रह रहा था। इस आदमी ने जवाब दिया:

श्रीकृष्ण की माया: सुदामा की कहानी

एक दिन श्रीकृष्ण ने कहा, “सुदामा, आओ, हम गोमती में स्नान करने चलें।” दोनों गोमती के किनारे गए, अपने कपड़े उतारे और नदी में प्रवेश किया। श्रीकृष्ण स्नान करके किनारे लौट आए और अपने पीले वस्त्र पहनने लगे। सुदामा ने एक और डुबकी लगाई, तभी श्रीकृष्ण ने उन्हें अपनी माया दिखाई।

सुदामा को लगा कि नदी में बाढ़ आ गई है। वह बहता जा रहा था, किसी तरह किनारे पर रुका। गंगा घाट पर चढ़कर वह चलने लगा। चलते-चलते वह एक गाँव के पास पहुँचा, जहाँ एक मादा हाथी ने उसे फूलों की माला पहनाई। बहुत से लोग इकट्ठा हो गए और बोले, “हमारे देश के राजा का निधन हो गया है। यहाँ की परंपरा है कि राजा की मृत्यु के बाद जिस किसी को मादा हाथी माला पहनाएगी, वही हमारा नया राजा बनेगा। मादा हाथी ने तुम्हें माला पहनाई है, इसलिए अब तुम हमारे राजा हो।”

सुदामा हैरान रह गया, लेकिन वह राजा बन गया और एक राजकुमारी से विवाह भी कर लिया। उनके दो बेटे भी हुए और उनका जीवन खुशी से बीतने लगा। एक दिन सुदामा की पत्नी बीमार हो गई और मर गई। पत्नी की मृत्यु के शोक में सुदामा रोने लगे। राज्य के लोग भी वहाँ पहुँचे और बोले, “राजा जी, मत रोइए। यह तो माया नगरी का नियम है। आपकी पत्नी की चिता में आपको भी प्रवेश करना होगा।”

लंका के शासक रावण की माँग

यह कहानी महार्षि कंबन द्वारा तमिल भाषा में लिखित “इरामा-अवतारम” से ली गई है, जो वाल्मीकि रामायण और तुलसी रामायण में नहीं मिलती।

श्रीराम ने समुद्र पर पुल बनाने के बाद, महेश्वर-लिंग-विग्रह की स्थापना के लिए रावण को आचार्य के रूप में आमंत्रित करने के लिए जामवंत को भेजा। जामवंत ने रावण को यह संदेश दिया कि श्रीराम ने उन्हें आचार्य के रूप में नियुक्त करने का निर्णय लिया है। रावण ने इसे सम्मानपूर्वक स्वीकार किया।

रावण ने सीता को पुष्पक विमान में बैठाकर श्रीराम के पास ले गया और खुद आचार्य के रूप में अनुष्ठान का संचालन किया। अनुष्ठान के दौरान, रावण ने श्रीराम से उनकी पत्नी के बिना अनुष्ठान पूरा नहीं होने की बात कही। तब श्रीराम ने सीता को अनुष्ठान में शामिल होने का आदेश दिया।

धन्ना जाट जी की कथा

एक बार की बात है, एक गाँव था जहाँ भागवत कथा का आयोजन किया गया था। एक पंडित कथा सुनाने आया था जो पूरे एक सप्ताह तक चली। अंतिम अनुष्ठान के बाद, जब पंडित दान लेकर घोड़े पर सवार होकर जाने को तैयार हुआ, तो धन्ना जाट नामक एक सीधे-सादे और गरीब किसान ने उसे रोक लिया।

धन्ना ने कहा, “हे पंडित जी! आपने कहा था कि जो भगवान की सेवा करता है, उसका बेड़ा पार हो जाता है। लेकिन मेरे पास भगवान की मूर्ति नहीं है और न ही मैं ठीक से पूजा करना जानता हूँ। कृपया मुझे भगवान की एक मूर्ति दे दीजिए।”

पंडित ने उत्तर दिया, “आप स्वयं ही एक मूर्ति ले आइए।”

धन्ना ने कहा, “लेकिन मैंने तो भगवान को कभी देखा ही नहीं, मैं उन्हें कैसे लाऊँगा?”

उन्होंने पिण्ड छुडाने को अपना भंग घोटने का सिलबट्टा उसे दिया और बोले- “ये ठाकुरजी हैं ! इनकी सेवा पूजा करना।’

“सच्ची भक्ति: सेवा और करुणा का मार्ग”

एक समय की बात है, एक शहर में एक धनवान सेठ रहता था। उसके पास बहुत दौलत थी और वह कई फैक्ट्रियों का मालिक था।

एक शाम, अचानक उसे बेचैनी की अनुभूति होने लगी। डॉक्टरों ने उसकी जांच की, लेकिन कोई बीमारी नहीं मिली। फिर भी उसकी बेचैनी बढ़ती गई। रात को नींद की गोलियां लेने के बावजूद भी वह नींद नहीं पा रहा था।

आखिरकार, आधी रात को वह अपने बगीचे में घूमने निकल गया। बाहर आने पर उसे थोड़ा सुकून मिला, तो वह सड़क पर चलने लगा। चलते-चलते वह बहुत दूर निकल आया और थककर एक चबूतरे पर बैठ गया।

तभी वहां एक कुत्ता आया और उसकी एक चप्पल ले गया। सेठ ने दूसरी चप्पल उठाकर उसका पीछा किया। कुत्ता एक झुग्गी-झोपड़ी वाले इलाके में घुस गया। जब सेठ नजदीक पहुंचा, तो कुत्ते ने चप्पल छोड़ दी और भाग गया।

इसी बीच, सेठ ने किसी के रोने की आवाज सुनी। वह आवाज एक झोपड़ी से आ रही थी। अंदर झांककर उसने देखा कि एक गरीब औरत अपनी बीमार बच्ची के लिए रो रही है और भगवान से मदद मांग रही है।

शुरू में सेठ वहां से चला जाना चाहता था, लेकिन फिर उसने औरत की मदद करने का फैसला किया। जब उसने दरवाजा खटखटाया तो औरत डर गई। सेठ ने उसे आश्वस्त किया और उसकी समस्या

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