पाप का फल भोगना ही पड़ता है

छोटी कहानी इन हिंदी पाप का फल भोगना ही पड़ता है

परिचय

मनुष्य को यह समझना चाहिए कि उसके पापों का फल उसे किसी न किसी रूप में अवश्य भुगतना पड़ता है। इस कहानी के माध्यम से यह समझाया गया है कि भगवान का न्याय अचूक और निष्पक्ष होता है।

गाँव के सज्जन और सुनार की हत्या

किसी गाँव में एक सज्जन रहते थे। उनके घर के सामने एक सुनार का घर था। सुनार अपने काम से सोना गढ़कर पैसे कमाता था। एक दिन उसके पास अधिक सोना जमा हो गया। रात्रि में पहरा लगाने वाले सिपाही को इस बात का पता लग गया। उसने रात में सुनार को मार दिया और सोने से भरा बक्सा लेकर चल दिया।

सज्जन का पकड़ा जाना

उसी समय सज्जन लघुशंका के लिए बाहर निकले और उन्होंने सिपाही को बक्सा लेकर जाते हुए देखा। सज्जन ने सिपाही को रोक लिया और पूछा कि वह बक्सा कैसे ले जा रहा है। सिपाही ने उन्हें चुप रहने और बक्से का कुछ हिस्सा लेने की सलाह दी, पर सज्जन ने यह कहते हुए मना कर दिया कि वे चोर नहीं हैं। तब सिपाही ने जोर से सीटी बजा दी, जिससे अन्य सिपाही वहाँ आ गए। उसने सभी को बताया कि सज्जन बक्सा लेकर जा रहे थे और उसने उन्हें पकड़ा।

सज्जन पर मुकदमा और सजा

सिपाहियों ने सुनार के घर में जाकर देखा कि सुनार मरा पड़ा है। उन्होंने सज्जन को पकड़कर राजकीय अधिकारियों के हवाले कर दिया। जज के सामने बहस हुई और सज्जन ने कहा कि सिपाही ने हत्या की है। लेकिन सिपाही आपस में मिले हुए थे और उन्होंने सज्जन पर आरोप लगा दिया। मुकदमा चला और अंत में सज्जन के लिए फाँसी का हुक्म हुआ।

न्याय का आह्वान

फाँसी का हुक्म सुनकर सज्जन ने कहा कि यह अन्याय हो रहा है। जज पर उसके वचनों का असर हुआ और उन्होंने मामले की जाँच का निर्णय लिया। सुबह एक आदमी रोता-चिल्लाता हुआ आया और बोला कि उसके भाई की हत्या हो गई है। जज ने सिपाही और सज्जन को लाश लाने के लिए भेजा।

सच्चाई का उजागर होना

रास्ते में सिपाही ने सज्जन से कहा कि अगर उसने उसकी बात मान ली होती तो फाँसी नहीं होती। सज्जन ने जवाब दिया कि उसने सच्चाई का पालन किया, परन्तु भगवान के न्याय पर सवाल उठाया। खाट पर लेटा हुआ आदमी इन दोनों की बातें सुन रहा था। जज के सामने उसने सारी बात बता दी। सिपाही को गिरफ्तार कर लिया गया।

पुराने पाप का फल

जज ने सज्जन से पूछा कि उसने कभी हत्या की है क्या। सज्जन ने स्वीकार किया कि उसने पहले एक दुष्ट व्यक्ति की हत्या की थी। जज ने कहा कि उसे उसी पाप का फल भुगतना होगा। सिपाही को भी फाँसी की सजा मिली।

निष्कर्ष

इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि मनुष्य को अपने पापों का फल किसी न किसी रूप में अवश्य भुगतना पड़ता है। पुराने पापों का फल तब मिलता है जब पिछले पुण्य समाप्त हो जाते हैं। भगवान का न्याय अचूक है और उसे किसी भी तरह से टाला नहीं जा सकता। इसलिए मनुष्य को सदैव सत्कर्मों की ओर अग्रसर होना चाहिए और पापों से बचना चाहिए।

छोटी कहानी इन हिंदी पाप का फल भोगना ही पड़ता है

एक राजा ने प्रसन्न मन से अपने मंत्री से उसकी सबसे बड़ी इच्छा के बारे में पूछा। मंत्री ने शरमाते हुए राज्य का एक छोटा सा हिस्सा देने की इच्छा जताई। राजा ने मंत्री को आश्चर्यचकित करते हुए आधा राज्य देने की पेशकश की, लेकिन साथ ही यह भी घोषणा की कि अगर मंत्री तीस दिनों में तीन सवालों के जवाब नहीं दे पाया तो उसे मौत के घाट उतार दिया जाएगा। सवाल थे:

मानव जीवन का सबसे बड़ा सच क्या है?
मानव जीवन का सबसे बड़ा धोखा क्या है?
मानव जीवन की सबसे बड़ी कमजोरी क्या है?

मंत्री ने हर जगह जवाब ढूँढ़ा लेकिन कोई भी जवाब उसे संतुष्ट करने वाला नहीं मिला। आखिरी दिन उसकी मुलाक़ात एक भूतपूर्व मंत्री से हुई जो एक गरीब आदमी की तरह रह रहा था। इस आदमी ने जवाब दिया:

श्रीकृष्ण की माया: सुदामा की कहानी

एक दिन श्रीकृष्ण ने कहा, “सुदामा, आओ, हम गोमती में स्नान करने चलें।” दोनों गोमती के किनारे गए, अपने कपड़े उतारे और नदी में प्रवेश किया। श्रीकृष्ण स्नान करके किनारे लौट आए और अपने पीले वस्त्र पहनने लगे। सुदामा ने एक और डुबकी लगाई, तभी श्रीकृष्ण ने उन्हें अपनी माया दिखाई।

सुदामा को लगा कि नदी में बाढ़ आ गई है। वह बहता जा रहा था, किसी तरह किनारे पर रुका। गंगा घाट पर चढ़कर वह चलने लगा। चलते-चलते वह एक गाँव के पास पहुँचा, जहाँ एक मादा हाथी ने उसे फूलों की माला पहनाई। बहुत से लोग इकट्ठा हो गए और बोले, “हमारे देश के राजा का निधन हो गया है। यहाँ की परंपरा है कि राजा की मृत्यु के बाद जिस किसी को मादा हाथी माला पहनाएगी, वही हमारा नया राजा बनेगा। मादा हाथी ने तुम्हें माला पहनाई है, इसलिए अब तुम हमारे राजा हो।”

सुदामा हैरान रह गया, लेकिन वह राजा बन गया और एक राजकुमारी से विवाह भी कर लिया। उनके दो बेटे भी हुए और उनका जीवन खुशी से बीतने लगा। एक दिन सुदामा की पत्नी बीमार हो गई और मर गई। पत्नी की मृत्यु के शोक में सुदामा रोने लगे। राज्य के लोग भी वहाँ पहुँचे और बोले, “राजा जी, मत रोइए। यह तो माया नगरी का नियम है। आपकी पत्नी की चिता में आपको भी प्रवेश करना होगा।”

लंका के शासक रावण की माँग

यह कहानी महार्षि कंबन द्वारा तमिल भाषा में लिखित “इरामा-अवतारम” से ली गई है, जो वाल्मीकि रामायण और तुलसी रामायण में नहीं मिलती।

श्रीराम ने समुद्र पर पुल बनाने के बाद, महेश्वर-लिंग-विग्रह की स्थापना के लिए रावण को आचार्य के रूप में आमंत्रित करने के लिए जामवंत को भेजा। जामवंत ने रावण को यह संदेश दिया कि श्रीराम ने उन्हें आचार्य के रूप में नियुक्त करने का निर्णय लिया है। रावण ने इसे सम्मानपूर्वक स्वीकार किया।

रावण ने सीता को पुष्पक विमान में बैठाकर श्रीराम के पास ले गया और खुद आचार्य के रूप में अनुष्ठान का संचालन किया। अनुष्ठान के दौरान, रावण ने श्रीराम से उनकी पत्नी के बिना अनुष्ठान पूरा नहीं होने की बात कही। तब श्रीराम ने सीता को अनुष्ठान में शामिल होने का आदेश दिया।

धन्ना जाट जी की कथा

एक बार की बात है, एक गाँव था जहाँ भागवत कथा का आयोजन किया गया था। एक पंडित कथा सुनाने आया था जो पूरे एक सप्ताह तक चली। अंतिम अनुष्ठान के बाद, जब पंडित दान लेकर घोड़े पर सवार होकर जाने को तैयार हुआ, तो धन्ना जाट नामक एक सीधे-सादे और गरीब किसान ने उसे रोक लिया।

धन्ना ने कहा, “हे पंडित जी! आपने कहा था कि जो भगवान की सेवा करता है, उसका बेड़ा पार हो जाता है। लेकिन मेरे पास भगवान की मूर्ति नहीं है और न ही मैं ठीक से पूजा करना जानता हूँ। कृपया मुझे भगवान की एक मूर्ति दे दीजिए।”

पंडित ने उत्तर दिया, “आप स्वयं ही एक मूर्ति ले आइए।”

धन्ना ने कहा, “लेकिन मैंने तो भगवान को कभी देखा ही नहीं, मैं उन्हें कैसे लाऊँगा?”

उन्होंने पिण्ड छुडाने को अपना भंग घोटने का सिलबट्टा उसे दिया और बोले- “ये ठाकुरजी हैं ! इनकी सेवा पूजा करना।’

“सच्ची भक्ति: सेवा और करुणा का मार्ग”

एक समय की बात है, एक शहर में एक धनवान सेठ रहता था। उसके पास बहुत दौलत थी और वह कई फैक्ट्रियों का मालिक था।

एक शाम, अचानक उसे बेचैनी की अनुभूति होने लगी। डॉक्टरों ने उसकी जांच की, लेकिन कोई बीमारी नहीं मिली। फिर भी उसकी बेचैनी बढ़ती गई। रात को नींद की गोलियां लेने के बावजूद भी वह नींद नहीं पा रहा था।

आखिरकार, आधी रात को वह अपने बगीचे में घूमने निकल गया। बाहर आने पर उसे थोड़ा सुकून मिला, तो वह सड़क पर चलने लगा। चलते-चलते वह बहुत दूर निकल आया और थककर एक चबूतरे पर बैठ गया।

तभी वहां एक कुत्ता आया और उसकी एक चप्पल ले गया। सेठ ने दूसरी चप्पल उठाकर उसका पीछा किया। कुत्ता एक झुग्गी-झोपड़ी वाले इलाके में घुस गया। जब सेठ नजदीक पहुंचा, तो कुत्ते ने चप्पल छोड़ दी और भाग गया।

इसी बीच, सेठ ने किसी के रोने की आवाज सुनी। वह आवाज एक झोपड़ी से आ रही थी। अंदर झांककर उसने देखा कि एक गरीब औरत अपनी बीमार बच्ची के लिए रो रही है और भगवान से मदद मांग रही है।

शुरू में सेठ वहां से चला जाना चाहता था, लेकिन फिर उसने औरत की मदद करने का फैसला किया। जब उसने दरवाजा खटखटाया तो औरत डर गई। सेठ ने उसे आश्वस्त किया और उसकी समस्या

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