प्रेरक प्रसंग विद्यार्थियों के लिए 2023

प्रेरक प्रसंग विद्यार्थियों के लिए 2023

किसी नगर में एक बूढ़ा व्यक्ति रहता था जिसकी सात बहुएँ थीं। कार्तिक का महीना आया तो उसने बहुओं से पूछा कि क्या वे कार्तिक स्नान में उसकी मदद कर सकती हैं। छ: बहुओं ने मना कर दिया, लेकिन बड़ी बहू ने कहा कि वह मदद करेगी। बूढ़ा रोज सुबह नदी पर स्नान करने जाता और वापस आकर गीली धोती बड़ी बहू के आँगन में सुखाता। धोती से गिरती पानी की बूँदें हीरे-मोतियों में बदल जाती थीं।

धोती से हीरे-मोती गिरते देख बाकी छह बहुएँ जलन महसूस करने लगीं और उन्होंने भी बूढ़े को अपने यहाँ नहाने का निमंत्रण दिया। उन्होंने कहा, “पिताजी, आप कल से हमारे यहाँ कार्तिक स्नान कर लें।” बूढ़े ने कहा कि वह उनके यहाँ नहा लेगा। अगली सुबह, बूढ़ा स्नान कर लौटा और धोती दूसरी बहू के आँगन में सुखाने के लिए डाल दी, लेकिन वहाँ हीरे-मोतियों की जगह कीचड़ टपकने लगा। यह देख बहुओं ने कहा, “आप हमारे यहाँ पाप का स्नान कर रहे हैं, इसलिए यहाँ से चले जाएँ और बड़ी बहू के यहाँ ही स्नान करें।”

बूढ़ा वापस बड़ी बहू के यहाँ गया और कार्तिक स्नान करने लगा। स्नान के बाद उसने फिर धोती सुखाई, तो फिर से हीरे-मोती गिरने लगे। कार्तिक का महीना समाप्त होने को था, जिससे बूढ़ा चिंता में पड़ गया। बड़ी बहू ने कारण पूछा तो उसने बताया कि वह सारे परिवार को एक दिन खाने का न्यौता देना चाहता है। बड़ी बहू ने कहा कि इसमें चिंता की क्या बात है, वह सबको बुला ले, वह खाना बना देगी। बूढ़ा सभी को निमंत्रण देने गया, लेकिन बाकी बहुओं ने कहा कि जब तक बड़ी बहू घर पर रहेगी, वे खाने पर नहीं आएंगी।

बूढ़ा चिंता में पड़ गया और सूखने लगा। यह देख बड़ी बहू ने पूछा कि अब क्या चिंता है। बूढ़े ने बाकी बहुओं की बात बता दी। बड़ी बहू ने कहा कि वह खाना बनाकर रख जाएगी और वैसा ही किया। खाना बनाकर रख दिया और चार रोटियाँ लेकर खेत पर चली गई। उधर, छ: बहुएँ खाना खा गईं और बचे खाने में कंकड़-पत्थर डाल गईं, ताकि बड़ी बहू परेशान हो।

खेत में बड़ी बहू ने कहा, “राम जी की चिड़िया, राम जी का खेत। चुग लो चिड़िया भर-भर पेट। मेरे ससुर ने घर में जगह दी है और मैंने खेत में।” चिड़िया को बाजरा डालकर वह घर आ गई। घर आई तो बूढ़ा फिर उदास बैठा था। उसने पूछा कि उदासी क्यों है। बूढ़ा बोला कि सब ठीक निपट गया, लेकिन उसकी देवरानियाँ बाकी बचे खाने में कंकड़-पत्थर डाल गईं। बड़ी बहू ने कहा कि कोई बात नहीं, वह अपने लिए चार रोटियाँ फिर बना लेगी।

बड़ी बहू ने घर के भीतर जाकर देखा कि कंकड़-पत्थर वाले खाने में हीरे-मोती बन गए हैं। घर की जगह महल खड़ा हो गया है और धन-दौलत से भर गया है। अन्न के भंडार भर गए हैं। उसने बूढ़े को बुलाकर कहा कि पिताजी ने कहा था कि उसके लिए कुछ नहीं बचा है, लेकिन यहाँ तो हीरे-मोतियों के भंडार हो गए हैं। साधारण घर महल में बदल गया है।

बूढ़ा बोला कि बड़ी बहू ने सच्चे मन से कार्तिक स्नान किया, जबकि बाकी बहुओं ने पापी मन से इसे निभाया। इसलिए कार्तिक देवता बड़ी बहू से प्रसन्न हुए और यह फल दिया। हे कार्तिक देवता, जैसे आपने बड़ी बहू की सुनी, वैसे ही सभी की सुनना।

प्रेरक प्रसंग विद्यार्थियों के लिए 2023

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इस कहानी से हमें कई महत्वपूर्ण सबक मिलते हैं:

  1. सच्ची निष्ठा और समर्पण: बड़ी बहू ने सच्चे मन से अपने ससुर की सेवा की और कार्तिक स्नान की परंपरा निभाई। उसकी निष्ठा और समर्पण ने उसे धन और सुख का फल दिया। इससे यह सिखने को मिलता है कि सच्चे मन से किए गए कार्यों का हमेशा अच्छा परिणाम मिलता है।
  2. ईर्ष्या और द्वेष का परिणाम: बाकी बहुओं ने बड़ी बहू की सफलता से जलन महसूस की और उसके कार्य की नकल करने की कोशिश की, लेकिन वे अपनी नीयत में सच्ची नहीं थीं। इस कारण उन्हें नकारात्मक परिणाम मिले। यह सिखाता है कि ईर्ष्या और द्वेष से कुछ हासिल नहीं होता, बल्कि स्थिति और बिगड़ सकती है।
  3. धैर्य और संयम: बड़ी बहू ने सभी परिस्थितियों में धैर्य और संयम बनाए रखा। जब बाकी बहुओं ने उसके खाने में कंकड़-पत्थर डाले, तो उसने शांतिपूर्वक और समझदारी से काम लिया। धैर्य और संयम से समस्याओं का समाधान हो सकता है।
  4. परिवार और एकता: बूढ़े ने परिवार को एकजुट करने की कोशिश की, लेकिन बाकी बहुओं के नकारात्मक रवैये के कारण यह संभव नहीं हो सका। इससे पता चलता है कि परिवार की एकता और सहयोग ही सुख और समृद्धि का मार्ग है।
  5. कर्म का महत्व: कहानी इस बात पर जोर देती है कि हमारे कर्म और नीयत का फल हमें अवश्य मिलता है। जो कार्य सच्चे मन और ईमानदारी से किए जाते हैं, वे हमेशा सकारात्मक परिणाम देते हैं।

ये सबक हमें जीवन में सही दिशा में काम करने और अच्छे परिणाम प्राप्त करने में मदद कर सकते हैं।

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एक राजा ने प्रसन्न मन से अपने मंत्री से उसकी सबसे बड़ी इच्छा के बारे में पूछा। मंत्री ने शरमाते हुए राज्य का एक छोटा सा हिस्सा देने की इच्छा जताई। राजा ने मंत्री को आश्चर्यचकित करते हुए आधा राज्य देने की पेशकश की, लेकिन साथ ही यह भी घोषणा की कि अगर मंत्री तीस दिनों में तीन सवालों के जवाब नहीं दे पाया तो उसे मौत के घाट उतार दिया जाएगा। सवाल थे:

मानव जीवन का सबसे बड़ा सच क्या है?
मानव जीवन का सबसे बड़ा धोखा क्या है?
मानव जीवन की सबसे बड़ी कमजोरी क्या है?

मंत्री ने हर जगह जवाब ढूँढ़ा लेकिन कोई भी जवाब उसे संतुष्ट करने वाला नहीं मिला। आखिरी दिन उसकी मुलाक़ात एक भूतपूर्व मंत्री से हुई जो एक गरीब आदमी की तरह रह रहा था। इस आदमी ने जवाब दिया:

श्रीकृष्ण की माया: सुदामा की कहानी

एक दिन श्रीकृष्ण ने कहा, “सुदामा, आओ, हम गोमती में स्नान करने चलें।” दोनों गोमती के किनारे गए, अपने कपड़े उतारे और नदी में प्रवेश किया। श्रीकृष्ण स्नान करके किनारे लौट आए और अपने पीले वस्त्र पहनने लगे। सुदामा ने एक और डुबकी लगाई, तभी श्रीकृष्ण ने उन्हें अपनी माया दिखाई।

सुदामा को लगा कि नदी में बाढ़ आ गई है। वह बहता जा रहा था, किसी तरह किनारे पर रुका। गंगा घाट पर चढ़कर वह चलने लगा। चलते-चलते वह एक गाँव के पास पहुँचा, जहाँ एक मादा हाथी ने उसे फूलों की माला पहनाई। बहुत से लोग इकट्ठा हो गए और बोले, “हमारे देश के राजा का निधन हो गया है। यहाँ की परंपरा है कि राजा की मृत्यु के बाद जिस किसी को मादा हाथी माला पहनाएगी, वही हमारा नया राजा बनेगा। मादा हाथी ने तुम्हें माला पहनाई है, इसलिए अब तुम हमारे राजा हो।”

सुदामा हैरान रह गया, लेकिन वह राजा बन गया और एक राजकुमारी से विवाह भी कर लिया। उनके दो बेटे भी हुए और उनका जीवन खुशी से बीतने लगा। एक दिन सुदामा की पत्नी बीमार हो गई और मर गई। पत्नी की मृत्यु के शोक में सुदामा रोने लगे। राज्य के लोग भी वहाँ पहुँचे और बोले, “राजा जी, मत रोइए। यह तो माया नगरी का नियम है। आपकी पत्नी की चिता में आपको भी प्रवेश करना होगा।”

लंका के शासक रावण की माँग

यह कहानी महार्षि कंबन द्वारा तमिल भाषा में लिखित “इरामा-अवतारम” से ली गई है, जो वाल्मीकि रामायण और तुलसी रामायण में नहीं मिलती।

श्रीराम ने समुद्र पर पुल बनाने के बाद, महेश्वर-लिंग-विग्रह की स्थापना के लिए रावण को आचार्य के रूप में आमंत्रित करने के लिए जामवंत को भेजा। जामवंत ने रावण को यह संदेश दिया कि श्रीराम ने उन्हें आचार्य के रूप में नियुक्त करने का निर्णय लिया है। रावण ने इसे सम्मानपूर्वक स्वीकार किया।

रावण ने सीता को पुष्पक विमान में बैठाकर श्रीराम के पास ले गया और खुद आचार्य के रूप में अनुष्ठान का संचालन किया। अनुष्ठान के दौरान, रावण ने श्रीराम से उनकी पत्नी के बिना अनुष्ठान पूरा नहीं होने की बात कही। तब श्रीराम ने सीता को अनुष्ठान में शामिल होने का आदेश दिया।

धन्ना जाट जी की कथा

एक बार की बात है, एक गाँव था जहाँ भागवत कथा का आयोजन किया गया था। एक पंडित कथा सुनाने आया था जो पूरे एक सप्ताह तक चली। अंतिम अनुष्ठान के बाद, जब पंडित दान लेकर घोड़े पर सवार होकर जाने को तैयार हुआ, तो धन्ना जाट नामक एक सीधे-सादे और गरीब किसान ने उसे रोक लिया।

धन्ना ने कहा, “हे पंडित जी! आपने कहा था कि जो भगवान की सेवा करता है, उसका बेड़ा पार हो जाता है। लेकिन मेरे पास भगवान की मूर्ति नहीं है और न ही मैं ठीक से पूजा करना जानता हूँ। कृपया मुझे भगवान की एक मूर्ति दे दीजिए।”

पंडित ने उत्तर दिया, “आप स्वयं ही एक मूर्ति ले आइए।”

धन्ना ने कहा, “लेकिन मैंने तो भगवान को कभी देखा ही नहीं, मैं उन्हें कैसे लाऊँगा?”

उन्होंने पिण्ड छुडाने को अपना भंग घोटने का सिलबट्टा उसे दिया और बोले- “ये ठाकुरजी हैं ! इनकी सेवा पूजा करना।’

“सच्ची भक्ति: सेवा और करुणा का मार्ग”

एक समय की बात है, एक शहर में एक धनवान सेठ रहता था। उसके पास बहुत दौलत थी और वह कई फैक्ट्रियों का मालिक था।

एक शाम, अचानक उसे बेचैनी की अनुभूति होने लगी। डॉक्टरों ने उसकी जांच की, लेकिन कोई बीमारी नहीं मिली। फिर भी उसकी बेचैनी बढ़ती गई। रात को नींद की गोलियां लेने के बावजूद भी वह नींद नहीं पा रहा था।

आखिरकार, आधी रात को वह अपने बगीचे में घूमने निकल गया। बाहर आने पर उसे थोड़ा सुकून मिला, तो वह सड़क पर चलने लगा। चलते-चलते वह बहुत दूर निकल आया और थककर एक चबूतरे पर बैठ गया।

तभी वहां एक कुत्ता आया और उसकी एक चप्पल ले गया। सेठ ने दूसरी चप्पल उठाकर उसका पीछा किया। कुत्ता एक झुग्गी-झोपड़ी वाले इलाके में घुस गया। जब सेठ नजदीक पहुंचा, तो कुत्ते ने चप्पल छोड़ दी और भाग गया।

इसी बीच, सेठ ने किसी के रोने की आवाज सुनी। वह आवाज एक झोपड़ी से आ रही थी। अंदर झांककर उसने देखा कि एक गरीब औरत अपनी बीमार बच्ची के लिए रो रही है और भगवान से मदद मांग रही है।

शुरू में सेठ वहां से चला जाना चाहता था, लेकिन फिर उसने औरत की मदद करने का फैसला किया। जब उसने दरवाजा खटखटाया तो औरत डर गई। सेठ ने उसे आश्वस्त किया और उसकी समस्या जानी।