भगवन शिव को करें इस उपाय से प्रसन्न

प्रेरक प्रसंग विद्यार्थियों के लिए शिवजी को प्रसन्न कैसे करें

प्रेरक प्रसंग विद्यार्थियों के लिए शिवजी को प्रसन्न कैसे करें

भगवान शिव तुरंत और तत्काल प्रसन्न होने वाले देवता हैं। इसीलिए उन्हें आशुतोष कहा जाता है। आइए जानते हैं भगवान शिव को प्रिय ऐसी सामग्री जो अर्पित करने से भोलेनाथ हर कामना पूरी करते हैं। यह 11 सामग्री हैं : जल, बिल्वपत्र, आंकड़ा, धतूरा, भांग, कर्पूर, दूध, चावल, चंदन, भस्म, रुद्राक्ष !

जल : शिव पुराण में कहा गया है कि भगवान शिव ही स्वयं जल हैं शिव पर जल चढ़ाने का महत्व भी समुद्र मंथन की कथा से जुड़ा है। अग्नि के समान विष पीने के बाद शिव का कंठ एकदम नीला पड़ गया था। विष की ऊष्णता को शांत करके शिव को शीतलता प्रदान करने के लिए समस्त देवी-देवताओं ने उन्हें जल अर्पित किया। इसलिए शिव पूजा में जल का विशेष महत्व है।

बिल्वपत्र : भगवान के तीन नेत्रों का प्रतीक है बिल्वपत्र। अत: तीन पत्तियों वाला बिल्वपत्र शिव जी को अत्यंत प्रिय है। प्रभु आशुतोष के पूजन में अभिषेक व बिल्वपत्र का प्रथम स्थान है। ऋषियों ने कहा है कि बिल्वपत्र भोले-भंडारी को चढ़ाना एवं 1 करोड़ कन्याओं के कन्यादान का फल एक समान है। भगवान के तीन नेत्रों का प्रतीक है बिल्वपत्र।

आंकड़ा : शास्त्रों के मुताबिक शिव पूजा में एक आंकड़े का फूल चढ़ाना सोने के दान के बराबर फल देता है।

धतूरा : भगवान शिव को धतूरा भी अत्यंत प्रिय है। इसके पीछे पुराणों मे जहां धार्मिक कारण बताया गया है वहीं इसका वैज्ञानिक आधार भी है। भगवान शिव को कैलाश पर्वत पर रहते हैं। यह अत्यंत ठंडा क्षेत्र है जहां ऐसे आहार और औषधि की जरुरत होती है जो शरीर को ऊष्मा प्रदान करे। वैज्ञानिक दृष्टि से धतूरा सीमित मात्रा में लिया जाए तो औषधि का काम करता है और शरीर को अंदर से गर्म रखता है।

जबकि धार्मिक दृष्टि से इसका कारण देवी भागवत‍ पुराण में बतया गया है। इस पुराण के अनुसार शिव जी ने जब सागर मंथन से निकले हलाहल विष को पी लिया तब वह व्याकुल होने लगे। तब अश्विनी कुमारों ने भांग, धतूरा, बेल आदि औषधियों से शिव जी की व्याकुलता दूर की।

उस समय से ही शिव जी को भांग धतूरा प्रिय है। शिवलिंग पर केवल धतूरा ही न चढ़ाएं बल्कि अपने मन और विचारों की कड़वाहट भी अर्पित करें।

भांग : समुद्र मंथन में निकले विष का सेवन महादेव ने संसार की सुरक्षा के लिए अपने गले में उतार लिया। भगवान को औषधि स्वरूप भांग दी गई लेकिन प्रभु ने हर कड़वाहट और नकारात्मकता को आत्मसात किया इसलिए भांग भी उन्हें प्रिय है। भगवान् शिव को इस बात के लिए भी जाना जाता हैं कि इस संसार में व्याप्त हर बुराई और हर नकारात्मक चीज़ को अपने भीतर ग्रहण कर लेते हैं और अपने भक्तों की विष से रक्षा करते हैं।

कर्पूर : भगवान शिव का प्रिय मंत्र है कर्पूरगौरं करूणावतारं…. यानी जो कर्पूर के समान उज्जवल हैं। कर्पूर की सुगंध वातावरण को शुद्ध और पवित्र बनाती है। भगवान भोलेनाथ को इस महक से प्यार है अत: कर्पूर शिव पूजन में अनिवार्य है।

दूध: श्रावण मास में दूध का सेवन निषेध है। दूध इस मास में स्वास्थ्य के लिए गुणकारी के बजाय हानिकारक हो जाता है। इसीलिए सावन मास में दूध का सेवन न करते हुए उसे शिव को अर्पित करने का विधान बनाया गया है।

चावल : चावल को अक्षत भी कहा जाता है और अक्षत का अर्थ होता है जो टूटा न हो। इसका रंग सफेद होता है। पूजन में अक्षत का उपयोग अनिवार्य है। किसी भी पूजन के समय गुलाल, हल्दी, अबीर और कुंकुम अर्पित करने के बाद अक्षत चढ़ाए जाते हैं। अक्षत न हो तो शिव पूजा पूर्ण नहीं मानी जाती। यहां तक कि पूजा में आवश्यक कोई सामग्री अनुप्लब्ध हो तो उसके एवज में भी चावल चढ़ाए जाते हैं।

चंदन : चंदन का संबंध शीतलता से है। भगवान शिव मस्तक पर चंदन का त्रिपुंड लगाते हैं। चंदन का प्रयोग अक्सर हवन में किया जाता है और इसकी खुशबू से वातावरण और खिल जाता है। यदि शिव जी को चंदन चढ़ाया जाए तो इससे समाज में मान सम्मान यश बढ़ता है।

भस्म : इसका अर्थ पवित्रता में छिपा है, वह पवित्रता जिसे भगवान शिव ने एक मृत व्यक्ति की जली हुई चिता में खोजा है। जिसे अपने तन पर लगाकर वे उस पवित्रता को सम्मान देते हैं। कहते हैं शरीर पर भस्म लगाकर भगवान शिव खुद को मृत आत्मा से जोड़ते हैं। उनके अनुसार मरने के बाद मृत व्यक्ति को जलाने के पश्चात बची हुई राख में उसके जीवन का कोई कण शेष नहीं रहता। ना उसके दुख, ना सुख, ना कोई बुराई और ना ही उसकी कोई अच्छाई बचती है। इसलिए वह राख पवित्र है, उसमें किसी प्रकार का गुण-अवगुण नहीं है, ऐसी राख को भगवान शिव अपने तन पर लगाकर सम्मानित करते हैं। एक कथा यह भी है कि पत्नी सती ने जब स्वयं को अग्नि के हवाले कर दिया तो क्रोधित शिव ने उनकी भस्म को अपनी पत्नी की आखिरी निशानी मानते हुए तन पर लगा लिया, ताकि सती भस्म के कणों के जरिए हमेशा उनके साथ ही रहे।

रुद्राक्ष : भगवान शिव ने रुद्राक्ष उत्पत्ति की कथा पार्वती जी से कही है। एक समय भगवान शिवजी ने एक हजार वर्ष तक समाधि लगाई। समाधि पूर्ण होने पर जब उनका मन बाहरी जगत में आया, तब जगत के कल्याण की कामना वाले महादेव ने अपनी आंख बंद कीं। तभी उनके नेत्र से जल के बिंदु पृथ्वी पर गिरे। उन्हीं से रुद्राक्ष के वृक्ष उत्पन्न हुए और वे शिव की इच्छा से भक्तों के हित के लिए समग्र देश में फैल गए। उन वृक्षों पर जो फल लगे वे ही रुद्राक्ष हैं।

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श्रावन माह में शिवजी सोमवार और शिवलिंग का महत्त्व

क्यों है सावन में शिवजी सोमवार और शिवलिंग का महत्त्व सावन मास, सोमवार तथा शिवलिंग ये तीनों भगवान शिवजी को अत्यन्त प्रिय है। इस माह में भगवान शिव की आराधना का विशेष महत्त्व है। इस माह के प्रथम सोमवार से सोमवारी व्रत प्रारम्भ हो जाता है। इस दिन स्त्री, पुरुष तथा विशेषतौर से कुंवारी युवतियां भगवान शिव जी को प्रसन्न करने के लिए व्रत रखती है। भक्त लोग सावन मास में आने वाले सभी सोमवार के दिन व्रत रखती है।

श्रद्धालु इस पूरे मास शिवजी के निमित्त व्रत और प्रतिदिन उनकी विशेष पूजा आराधना करते हैं। शिवजी की पूजा में गंगाजल के उपयोग को विशिष्ट माना जाता है। शिवजी की पूजा आराधना करते समय उनके पूरे परिवार अर्थात् शिवलिंग, माता पार्वती, कार्तिकेयजी, गणेशजी और उनके वाहन नन्दी की संयुक्त रूप से पूजा की जानी चाहिए। क्यों करते है शिवलिंग की पूजा ? वस्तुतः व्यवहार में लिंग का अर्थ शिश्न या योनि के रूप में किया जाता है परन्तु यह अर्थ केवल अज्ञानतावश ही किया जाता है। संस्कृत में तीन लिंग पुरुषलिंग, स्त्रीलिंग और नपुंसकलिंग होता है। वस्तुतः यहाँ पर लिंग शब्द का अर्थ प्रतीक के रूप में है। अर्थात लिंग पुरुष,स्त्री था नपुंसकता का प्रतीक है। उसी प्रकार शिवलिंग में लिंग शब्द शिवत्व का प्रतीक है।

न्याय दर्शन में भी कहा गया है — इच्छाद्वेषप्रयत्नसुखदुःखज्ञानान्यात्मनो लिंगमिति -न्याय० अ ० १ । आ ० १ । सू ० १ ०

अर्थात जिसमे (इच्छा) राग, (द्वेष) वैर, (प्रयत्न) पुरुषार्थ, सुख, दुःख जानने आदि गुण विदयमान हो, वह जीवात्मा है और, ये सभी राग-द्वेष आदि जीवात्मा के लिंग अर्थात कर्म व् गुण ही तो है । भगवान शिव स्वयं शून्य, आकाश, अनन्त, ब्रह्माण्ड और निराकार परमपुरुष है इसलिए शिवलिंग तो शून्याकाश आदि का ही प्रतीक है न की अज्ञानी पुरुष का लिंग। स्कन्दपुराण के अनुसार आकाश स्वयं लिंग ही है, पृथ्वी उसका पृष्ठ या आधार है तथा ब्रह्माण्ड का हर पदार्थ अनन्त शून्य से उत्पन्न होकर अंततः उसी में लय हो जाने के कारण इसे लिंग कहा है| यही कारण है की प्राचीन काल से ही शिवलिंग की पूजा अनवरत अविरल रूप से चली आ रही है। अतः स्पष्ट है की शिव ही शिवलिंग है और शिवलिंग ही शिव हैं। सोमवार और शिव जी का सम्बन्ध सोमवार दिन का प्रतिनिधि ग्रह चन्द्रमा है। चन्द्रमा मन का कारक है ( चंद्रमा मनसो जात: )। मन के नियंत्रण और नियमण में उसका (चंद्रमा का) महत्त्वपूर्ण योगदान है। चन्द्रमा भगवान शिव जी के मस्तक पर विराजमान है। भगवान शिव स्वयं साधक व भक्त के चंद्रमा अर्थात मन को नियंत्रित करते हैं। इस प्रकार भक्त के मन को वश में तथा एकाग्रचित कर अज्ञानता के भाव सागर से बाहर निकालते है।

महादेव की कृपा से भक्त त्रिविध ताप आध्यात्मिक, आधिभौतिक तथा आधिदैविक ( 1 आध्यात्मिक :- जो आत्मिक देह में अविद्या,राग, द्वेष, मुर्खता 2. अधिभौतिक :- शत्रु या व्याघ्र से दुःख 3 अधिदैविक :- अतिवृष्टि, अतिशीत, अति उष्णता आदि से मन और इन्द्रियों को दुःख पहुंचना ) से शीघ्र ही मुक्ति पाते है। यही कारण है की सोमवार दिन शिवजी के लिए बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। क्यों है शिव जी को सावन मास प्रिय ? सावन मास में सबसे अधिक वर्षा होती है जो शिव जी के गर्म शरीर को ठंडक प्रदान करती है। महादेव ने सावन मास की महिमा बताते हुए कहते है कि मेरे तीनों नेत्रों में सूर्य दाहिने, बांये चन्द्र और अग्नि मध्य नेत्र है। जब सूर्य कर्क राशि में गोचर करता है, तब सावन महीने की शुरुआत होती है। सूर्य (Sun) गर्म है जो उष्मा देता है जबकि चंद्रमा ठंडा है जो शीतलता प्रदान करता है। इसलिए सूर्य के कर्क राशि में आने से खूब बरसात होती है। जिससे लोक कल्याण के लिए विष को पीने वाले भोले को ठंडक व सुकून मिलता है। प्रजनन की दृष्टि से भी यह मास बहुत ही अनुकूल है। इसी कारण शिव को सावन प्रिय हैं। शिव पूजन के लिए सामग्री शिवजी की पूजा में मुख्य रूप से निम्न सामग्री का प्रयोग किया जाता है। गंगाजल, जल, दूध, दही, घी, शहद,चीनी, पंचामृत, कलावा, जनेऊ, वस्त्र, चन्दन, रोली, चावल, बिल्वपत्र, दूर्वा, फूल,फल, विजिया, आक, धूतूरा, कमल−गट्टा, पान, सुपारी, लौंग, इलायची, पंचमेवा, धूप, दीप तथा नैवेद्य का इस्तेमाल किया जाता है। सोमवारी व्रत नियम तथा महत्त्व ‘शिवपुराण’ के अनुसार भगवान शिव स्वयं ही जल हैं। इस व्रत में फलाहार या पारण का कोई विशेष नियम नहीं है। वैसे दिन−रात में केवल एक ही बार खाना फलदायक होता है। सोमवार के व्रत में शिव−पार्वती गणेश तथा नंदी की पूजा करना चाहिए। दिन शिव मंदिर में सुबह से ही श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ने लगती है तथा बम-बम भोले,हर हर महादेव से मंदिर गुंजायमान होने लगता हैं। सावन मास में शिव जी को बेल पत्र ( बिल्वपत्र ) जाने अनजाने में किये गए पाप का शीघ्र ही नाश हो जाता है। अखंड बिल्वपत्र चढाने का विशेष महत्त्व है। कहा जाता है कि अखण्ड बेलपत्र चढाने से सभी बुरे कर्मों से मुक्ति तथा अनेक प्रकार के कष्ट दूर हो जाते है। सावन में शिवालय अर्थात शिव मंदिर के अभाव में पार्थिव शिवलिंग अर्थात मिट्टी से शिवलिंग स्थापित कर उन पर विधिवत पूजा करने का विशेष महत्व है। इसलिए प्रतिदिन या प्रत्येक सोमवार को शिव पूजा या पार्थिव शिवलिंग की पूजा ( मिट्टी से बनी हुई शिवलिंग ) अवश्य करनी चाहिए। इस मास में यथासम्भव रुद्राभिषेक पूजन किया जाए तो शुभ फल की प्राप्ति होती है। इस व्रत में सावन माहात्म्य और शिव महापुराण की कथा सुनने का विशेष महत्व है।

ऐसी मान्यता है कि पवित्र गंगा नदी से सीधे जल लेकर जलाभिषेक करने से शिव जी शीघ्र प्रसन्न होकर भक्तों की मनोकामना पूर्ण करते हैं। इसी कारण श्रद्धालु कावड़िए के रूप में पवित्र नदियों से जल लाकर शिवलिंग पर चढ़ाते हैं। श्रीराम जी ने भी भगवान शिव जी को कांवड चढ़ाई थी। सावन मास में ही भगवान शिव जी इस पृथ्वी पर अवतरित होकर अपनी ससुराल गए थे और वहां उनका स्वागत र्घ्य और जलाभिषेक से किया गया था। यह भी मान्यता है कि शिवजी प्रत्येक वर्ष सावन माह में अपनी ससुराल आते हैं। इसी सावन मास में समुद्र मंथन भी किया गया था। समुद्र मथने के बाद जो विष निकला था उस विष को पीकर तथा कंठ में धारण कर सृष्टि की रक्षा किये थे। यही कारण है कि विषपान से शिवजी का कंठ नीला हो गया है। इसी कारण ‘नीलकंठ” के नाम से जाने जाते हैं। देवी-देवताओं ने शिवजी के विषपान के प्रभाव को कम करने के लिए जल अर्पित किये थे। इसी कारण शिवलिंग पर जल चढ़ाने का खास महत्व है। यही वजह है कि श्रावण मास में भोलेनाथ को जल चढ़ाने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। शिव पूजन से लाभ सोमवारी व्रत सावन महीना के प्रथम सोमवार से शुरू हो जाता है। प्रत्येक सोमवार को शिवजी, पार्वतीजी तथा गणेशजी की पूजा की जाती है। कहा जाता है कि सावन में शिवजी की आराधना तथा सोमवार व्रत करने से शिव जी शीघ्र ही प्रसंन्न हो जाते है। प्रसंन्न होकर भक्त के इच्छानुकूल मनोकामनाएं पूरा करते है। व्रत और शिवजी की पूजा करने से पुत्र की इच्छा करने वाले को पुत्र, विद्यार्थी को विद्या, धनार्थी को धन, मोक्ष चाहने वालो को मोक्ष तथा कुंवारी कन्या को मनोनुकूल पति की प्राप्ति होती है।

सावन मास में व्रत का विशेष महत्व है। ऐसी मान्यता है कि कुंवारी कन्या यदि इस पूरे महीने व्रत रखती हैं तो उन्हें मनपसंद जीवनसाथी मिलता है। एक प्रचलित कथा जो शिव जी और पार्वती से जुड़ी है। पिता दक्ष द्वारा अपने पति का अपमान होता देख सती ने आत्मदाह कर लिया था। सती ने पार्वती के रूप में पुनर्जन्म लिया और शिव को अपना बनाने के लिए सावन मास के सभी सोमवार का व्रत रखा। परिणामस्वरूप उन्हें पति रूप में भगवान शिव की प्राप्ति हुई।

ॐ नमः शिवाय | ॐ नमः शिवाय | ॐ नमः शिवाय | ॐ नमः शिवाय | ॐ नमः शिवाय

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