पायो जी मैने राम रतन धन पायो

payo ji maine ram ratan dhan payo sonu nigam

हर तिनके में हैं राम बसे

कण कण का मन जापे है उसे

जिस रूप में पूजो मिल जाए

मिले राम में जो मिले राम उसे

हर क्षण जापूँ मैं राम जो है शबरी के बेर से भायो

पायो जी मैने राम रतन धन पायो

तोरण से द्वार सजाऊँ मैं रस्ते पर फूल बिछाऊँ

चन्दन से तन महकाकर अपना राम से मन महकाऊँ

कौन संग नहीं हो तो दुःख कैसा संसार जो मन में समायो

पायो जी मैने राम रतन धन पायो

नैनो को सुख दे रघुवर मिलने की अर्ज़ी लगाऊं

हो जाए पुलकित रोम रोम जब मन की बात सुनाऊँ

जप नाम जो जग तर जाए सब वो राम नाम है कमायो

पायो जी मैने राम रतन धन पायो

payo ji maine ram ratan dhan payo sonu nigam

Audio Credits:
Singer- Sonu Nigam & Jaya Kishori
Music- Raaj Aashoo
Lyrics- Seepi Jha & Traditional
Music Production- Aakash Rijia
Assistant Music Producer-Yash Bhardwaaj
Sitar- Aakash Rijia
Jaya Kishori Vocals Recorded at 504 Studio
Sonu Nigam vocals Recorded at Krishna Studio
Mix and mastered by Himanshu Shirlekar
Music Label – T-Series

आए जानते हैं बाबा विश्वकर्मा पुजन कि शास्त्री प्रमाण और लौकिक प्रमाण
विश्वकर्मा पूजा को लेकर कई धारणाएं हैं, जिनमें से एक मान्यता ये है कि सूर्य के कन्या राशि में प्रवेश करने के आधार पर ही इस त्योहार को मनाया जाता है. इसीलिए हर साल 17 सितंबर को विश्वकर्मा पूजा मनाई जाती है.

विश्वकर्मा पूजा से जुड़ी कुछ और मान्यताएं:

विश्वकर्मा को सृष्टि का पहला वास्तुकार और शिल्पकार माना जाता है.

मान्यता है कि भगवान विश्वकर्मा ने ब्रह्मा जी के सातवें पुत्र के रूप में जन्म लिया था.

भगवान विश्वकर्मा ने द्वारका का निर्माण किया था.

भगवान विश्वकर्मा ने पांडवों की माया सभा और देवताओं के लिए कई हथियार बनाए थे.

भगवान विश्वकर्मा को लुहार भी कहा जाता है.

भगवान विश्वकर्मा की पूजा करने से करियर में सफलता मिलती है और मनोकामनाएं पूरी होती हैं.

विश्वकर्मा पूजा के दिन कारखाने, इंजीनियरिंग संस्थान, कार्यशालाएं, और श्रमिक समूह मशीनों, औज़ारों, और हथियारों की पूजा करते हैं.

विश्वकर्मा पूजा के दुसरे दिन लोग भगवान विश्वकर्मा की मूर्ति को विसर्जित करते हैं.
विश्वकर्मा पूजा 17 सितंबर क्यों मनाया जाता है

उत्तरः- विश्वकर्मा जी का पूजन हर दिवस प्रत्येक धार्मिक कार्य में होना अथवा किया जाना आवश्यक हैं। किन्तु अन्य संक्रान्ति की अपेक्षा कन्या संक्रान्ति को मुख्य माना जाता है, क्योंकि यह वातयुक्ति युक्त है तथा प्रमाणों और तर्क के आधार पर शरद ऋतु से सृष्टि की रचना प्रारम्भ हुई। प्रलय के समय जब पंच भूत अग्नि, वायु, जल, पृथ्वी तथा आकाश आदि परमेश्वर में लीन हो जाते हैं और सूर्य का प्रकाश भी समाप्त हो जाता है, तब जगत् शरद ठंडा होकर प्रलय को प्राप्त होता है। उसी शरद में परमेश्वर फिर से सृष्टि की रचना करता है। वेद मंत्र भी यही कहता है जिसकी हम नित्य प्रति संन्ध्या में प्रातः सायं पाठ करते हैं।

ओं-तच्चक्षुर्देवहितं पुरस्ताच्छुक्रमुच्चरत्। पश्येम शरदःशतं जीवेम शरदः शतशृणुयाम शरदः शतं प्रब्रवाम,

शरदः शतमदीनाः स्याम शरदः शतं भूयश्च शरदः शतात्।।(यजुर्वेद अ॰ ३६, मं॰२४)

अर्थ-तच्चक्षुर्देवहितं जो ब्रह्म सबका द्रष्टा, धार्मिक विद्वानों का परम हितकारक तथा (पुरस्ताच्छुकमुच्चरत्) सृष्टि के पूर्व, पश्चात और मध्म में सत्य स्वरूप से वर्तमान रहता और सब जगत् का उत्पन्न करने वाला है। (पश्येम शरदः शतम्) उसी ब्रह्म को हम लोग सौ वर्ष पर्यन्त देखें। (जीवेम शरदः शतम्) और जीवें (श्रृणुयाम शरदः शतम) सौ वर्ष तक सुने (प्रब्रवाम शरदः) और उसी ब्रह्म का उपदेश करें (शतमदीनाः स्याम शरदः शतम्) तथा उसकी कृपा से किसी के अधीन न रहें (भूयश्च शरदः शतात) उसी परमेश्वर की आज्ञा पालन और कृपा से सौ वर्षों के उपरान्त भी जीवें, सुनें, सुनावें और स्वतन्त्र रहे अर्थात आरोग्य शरीर, दृढ़ इन्द्रिय, शुद्ध मन और आनन्द सहित हमारी आत्मा सदा रहें । परमानन्द को प्राप्त करें।

विश्वकर्मा दिवस क्यों मनाया जाता है?
विश्वकर्मा पूजा के पीछे छिपे क्या कहानी है?

प्रलय के पश्चात परमेश्वर शीत में ही सृष्टि की फिर से रचना करता है और वह ऋतु शरद ऋतु कहलाती है। सूर्य का प्रकाश होने से जगत में गर्मी उत्पन्न होती है, उसे ग्रीष्म ऋतु कहते है। उस ग्रीष्मऋतु से जल की भाप से (ज्वार भाटा बनकर) वर्षा होकर वर्षा ऋतु कहलाती है। यह क्रम सदा से चल रहा है, व सदा चलता रहेगा। वेद मंत्रों के आधार पर अन्य संक्रान्तियों की अपेक्षा कन्या की संक्रान्ति को श्रेष्ठ माना है।

विश्वकर्मा पूजा का रहस्य क्या है?

सृष्टियारम्भ नववर्ष का स्वागत करते हुए शिल्प के प्रवत्र्तक आदि विश्वकर्मा जी का आह्वान् पूजन दिवस के रुप में 17 सितम्बर (कन्या संक्रान्ति) को प्राचीन काल से मनाते चले आ रहें हैं। इस प्रकार कन्या संक्रांति सृष्टि सृजन दिवस के रुप में भी मनाना उचित ही होगा।

विश्वकर्मा जयन्ती नहीं विश्वकर्मा पूजन दिवस अथवा सृष्टि सृजन दिवस मनाया जाए

दुःख का विषय है कि बहुत से लोगों तथा संस्थाओं द्वारा १७ सितम्बर को विश्वकर्मा पूजन दिवस के स्थान पर विश्वकर्मा जयन्ती लिख दिया जाता है। जो एक अज्ञानता का ही परिचायक है।

कन्या की संक्रान्ति शिल्प के प्रवत्र्तक आदि विश्वकर्मा जी का केवल और केवल विश्वकर्मा पूजा दिवस है, सृष्टि सृजन दिवस है। इसी दिन सर्वप्रथम देवताओं ने विश्वकर्मा जी की पूजा की थी।

विश्वकर्मा दिवस क्यों मनाया जाता है?क्या है 17 सितम्बर?
मूल रूप कन्या सक्रांति ही है जो आदि काल से है 17 सितम्बर बहुत बाद में प्रचलित हुआ। इस आधार पर हम यह प्रमाणिकता से कह सकते हैं कि कन्या संक्रान्ति आदि काल से ही विश्वकर्मा पूजन दिवस रहा है। कुछ लोग जो यह कहते हैं कि हावड़ा ब्रिज के बनने पर सर्वप्रथम अंगेजों ने विश्वकर्मा पूजा की थी, यह प्रमाणिक नहीं हो सकती। हां यह अवश्य माना जा सकता है कि कन्या संक्रान्ति को ही अंग्रेजों ने विश्वकर्मा पूजा की हो, और १७ सितम्बर नाम दिया गया हो। क्योंकि कन्या संक्रान्ति १७ सितम्बर के आसपास ही प्रतिवर्ष पड़ती है। इस प्रकार कन्या संक्रान्ति को १७ सितम्बर विश्वकर्मा पूजन दिवस प्रतिवर्ष सभी शिल्पियों तथा सभी तकनिकी संस्थानों व तकनिकी लोगों, इंजीनियरिंग संस्थान में मनाई जाती है।

भारतीय महिलाएं दंडवत प्रणाम क्यों नहीं करती ?

ये है भगवान को प्रणाम करने की सही विधि…
आपने कभी ये देखा है कि कई लोग मूर्ति के सामने लेट कर माथा टेकते है। जी हां इसी को साष्टांग दंडवत प्रणाम कहा जाता है।

शास्त्रों के अनुसार माना जाता है कि इस प्रणाम में व्यक्ति का हर एक अंग जमीन को स्पर्श करता है। जो कि माना जाता है कि व्यक्ति अपना अहंकार छोड़ चुका है। इस आसन के जरिए आप ईश्वर को यह बताते हैं कि आप उसे मदद के लिए पुकार रहे हैं। यह आसन आपको ईश्वर की शरण में ले जाता है। लेकिन आपने यह कभी ध्यान दिया है कि महिलाएं इस प्रणाम को क्यों नहीं करती है। इस बारें में शास्त्र में बताया गया है।

शास्त्रों के अनुसार स्त्री का गर्भ और उसके वक्ष कभी जमीन से स्पर्श नहीं होने चाहिए। ऐसा इसलिए क्योंकि उसका गर्भ एक जीवन को सहेजकर रखता है और वक्ष उस जीवन को पोषण देते हैं। इसलिए यह प्रणाम को स्त्रियां नहीं कर सकती है। जो करती भी है उन्हें यह प्रणाम नहीं करना चाहिए।