राधे राधे बोल श्याम आएंगे आएंगे श्याम आएंगे

radhe radhe bol shyam aayenge lyrics

राधे राधे बोल श्याम आएंगे

आएंगे शाम आएंगे

वृंदावन कहां दूर है

बरसाना का दूर है

सब तेरी नजर का कसूर है

राधे राधे बोल श्याम आएंगे

आएंगे श्याम आएंगे

निकलेगा तेरी भक्ति का परिणाम

तेरे घर भी आएंगे घनश्याम

बस याद कर फरियाद कर

नायु जीवन बर्बाद कर

बीते दिन लौट ना आएंगे

राधे राधे बोल श्याम आएंगे

ना देखे कोई धर्म कर्म ना जात

जाने बस भक्तों के दिल की बात

वह बस जान ले पहचान ले

एक बार वह अपना मान ले

फिर आकर गले लगाएंगे

राधे राधे बोल श्याम आएंगे

लाखों में किसी एक को चुनते हैं

अंदर की आवाज को सुनते हैं

बस जान ले पहचान ले

एक बार वह अपना मान ले

फिर आकर गले लगाएंगे

राधे राधे बोल श्याम आएंगे श्याम आएंगे

प्रेम के आंसू जिनके बहते हैं

उनके तो हरी अंग संग रहते हैं

मैं भी प्यासी हूं हरिदासी हूं

राधा जू की खासम खास हु

सुनकर प्रभु देर ना लगाएंगे

राधे राधे बोल श्याम आएंगे

श्रेणी:

राधा रानी भजन

स्वर:

संगीत वर्मा जी

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काली कमली वाला मेरा यार है

किशोरी कुछ ऐसा इन्तजाम हो जाए

भोले मेरी कुटिया में आना होगा

बेलपत्ते ले आओ सारे

चुन चुन लाई भोला फूल बेल पाती

मैं कैसे कावड़ चढ़ाऊं ओ भोले भीड़ बड़ी मंदिर में

बालू मिट्टी के बनाए भोलेनाथ

जग रखवाला है मेरा भोला बाबा

कैलाश के भोले बाबा 

कब से खड़ी हूं झोली पसार

भोले नाथ तुम्हारे मंदिर मेंअजब नजारा देखा है —

शिव शंभू कमाल कर बैठे

गोरा की चुनरी पे ओम लिखा है

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हमने हर एक ब्लॉग के साथ रामचरितमानस की कुछ चौपाइयाँ दी हैं और मुख्य चौपाइयों को हाईलाइट किया है ,आप चाहें तो उन्हें भी पढ़ सकते हैँ

1.90

चौपाई
सुनि बोलीं मुसकाइ भवानी। उचित कहेहु मुनिबर बिग्यानी।।
तुम्हरें जान कामु अब जारा। अब लगि संभु रहे सबिकारा।।
हमरें जान सदा सिव जोगी। अज अनवद्य अकाम अभोगी।।
जौं मैं सिव सेये अस जानी। प्रीति समेत कर्म मन बानी।।
तौ हमार पन सुनहु मुनीसा। करिहहिं सत्य कृपानिधि ईसा।।
तुम्ह जो कहा हर जारेउ मारा। सोइ अति बड़ अबिबेकु तुम्हारा।।
तात अनल कर सहज सुभाऊ। हिम तेहि निकट जाइ नहिं काऊ।।
गएँ समीप सो अवसि नसाई। असि मन्मथ महेस की नाई।।

दोहा/सोरठा
हियँ हरषे मुनि बचन सुनि देखि प्रीति बिस्वास।।
चले भवानिहि नाइ सिर गए हिमाचल पास।।90।।

1.91

चौपाई
सबु प्रसंगु गिरिपतिहि सुनावा। मदन दहन सुनि अति दुखु पावा।।
बहुरि कहेउ रति कर बरदाना। सुनि हिमवंत बहुत सुखु माना।।
हृदयँ बिचारि संभु प्रभुताई। सादर मुनिबर लिए बोलाई।।
सुदिनु सुनखतु सुघरी सोचाई। बेगि बेदबिधि लगन धराई।।
पत्री सप्तरिषिन्ह सोइ दीन्ही। गहि पद बिनय हिमाचल कीन्ही।।
जाइ बिधिहि दीन्हि सो पाती। बाचत प्रीति न हृदयँ समाती।।
लगन बाचि अज सबहि सुनाई। हरषे मुनि सब सुर समुदाई।।
सुमन बृष्टि नभ बाजन बाजे। मंगल कलस दसहुँ दिसि साजे।।

दोहा/सोरठा
लगे सँवारन सकल सुर बाहन बिबिध बिमान।
होहि सगुन मंगल सुभद करहिं अपछरा गान।।91।।

1.92

चौपाई
सिवहि संभु गन करहिं सिंगारा। जटा मुकुट अहि मौरु सँवारा।।
कुंडल कंकन पहिरे ब्याला। तन बिभूति पट केहरि छाला।।
ससि ललाट सुंदर सिर गंगा। नयन तीनि उपबीत भुजंगा।।
गरल कंठ उर नर सिर माला। असिव बेष सिवधाम कृपाला।।
कर त्रिसूल अरु डमरु बिराजा। चले बसहँ चढ़ि बाजहिं बाजा।।
देखि सिवहि सुरत्रिय मुसुकाहीं। बर लायक दुलहिनि जग नाहीं।।
बिष्नु बिरंचि आदि सुरब्राता। चढ़ि चढ़ि बाहन चले बराता।।
सुर समाज सब भाँति अनूपा। नहिं बरात दूलह अनुरूपा।।

दोहा/सोरठा
बिष्नु कहा अस बिहसि तब बोलि सकल दिसिराज।
बिलग बिलग होइ चलहु सब निज निज सहित समाज।।92।।

1.93

चौपाई
बर अनुहारि बरात न भाई। हँसी करैहहु पर पुर जाई।।
बिष्नु बचन सुनि सुर मुसकाने। निज निज सेन सहित बिलगाने।।
मनहीं मन महेसु मुसुकाहीं। हरि के बिंग्य बचन नहिं जाहीं।।
अति प्रिय बचन सुनत प्रिय केरे। भृंगिहि प्रेरि सकल गन टेरे।।
सिव अनुसासन सुनि सब आए। प्रभु पद जलज सीस तिन्ह नाए।।
नाना बाहन नाना बेषा। बिहसे सिव समाज निज देखा।।
कोउ मुखहीन बिपुल मुख काहू। बिनु पद कर कोउ बहु पद बाहू।।
बिपुल नयन कोउ नयन बिहीना। रिष्टपुष्ट कोउ अति तनखीना।।

छंद
तन खीन कोउ अति पीन पावन कोउ अपावन गति धरें।
भूषन कराल कपाल कर सब सद्य सोनित तन भरें।।
खर स्वान सुअर सृकाल मुख गन बेष अगनित को गनै।
बहु जिनस प्रेत पिसाच जोगि जमात बरनत नहिं बनै।।

दोहा/सोरठा
नाचहिं गावहिं गीत परम तरंगी भूत सब।
देखत अति बिपरीत बोलहिं बचन बिचित्र बिधि।।93।।

1.94

चौपाई
जस दूलहु तसि बनी बराता। कौतुक बिबिध होहिं मग जाता।।
इहाँ हिमाचल रचेउ बिताना। अति बिचित्र नहिं जाइ बखाना।।
सैल सकल जहँ लगि जग माहीं। लघु बिसाल नहिं बरनि सिराहीं।।
बन सागर सब नदीं तलावा। हिमगिरि सब कहुँ नेवत पठावा।।
कामरूप सुंदर तन धारी। सहित समाज सहित बर नारी।।
गए सकल तुहिनाचल गेहा। गावहिं मंगल सहित सनेहा।।
प्रथमहिं गिरि बहु गृह सँवराए। जथाजोगु तहँ तहँ सब छाए।।
पुर सोभा अवलोकि सुहाई। लागइ लघु बिरंचि निपुनाई।।

छंद
लघु लाग बिधि की निपुनता अवलोकि पुर सोभा सही।
बन बाग कूप तड़ाग सरिता सुभग सब सक को कही।।
मंगल बिपुल तोरन पताका केतु गृह गृह सोहहीं।।
बनिता पुरुष सुंदर चतुर छबि देखि मुनि मन मोहहीं।।

दोहा/सोरठा
जगदंबा जहँ अवतरी सो पुरु बरनि कि जाइ।
रिद्धि सिद्धि संपत्ति सुख नित नूतन अधिकाइ।।94।।

1.95

चौपाई
नगर निकट बरात सुनि आई। पुर खरभरु सोभा अधिकाई।।
करि बनाव सजि बाहन नाना। चले लेन सादर अगवाना।।
हियँ हरषे सुर सेन निहारी। हरिहि देखि अति भए सुखारी।।
सिव समाज जब देखन लागे। बिडरि चले बाहन सब भागे।।
धरि धीरजु तहँ रहे सयाने। बालक सब लै जीव पराने।।
गएँ भवन पूछहिं पितु माता। कहहिं बचन भय कंपित गाता।।
कहिअ काह कहि जाइ न बाता। जम कर धार किधौं बरिआता।।
बरु बौराह बसहँ असवारा। ब्याल कपाल बिभूषन छारा।।

छंद
तन छार ब्याल कपाल भूषन नगन जटिल भयंकरा।
सँग भूत प्रेत पिसाच जोगिनि बिकट मुख रजनीचरा।।
जो जिअत रहिहि बरात देखत पुन्य बड़ तेहि कर सही।
देखिहि सो उमा बिबाहु घर घर बात असि लरिकन्ह कही।।

दोहा/सोरठा
समुझि महेस समाज सब जननि जनक मुसुकाहिं।
बाल बुझाए बिबिध बिधि निडर होहु डरु नाहिं।।95।।

1.96

चौपाई
लै अगवान बरातहि आए। दिए सबहि जनवास सुहाए।। 
मैनाँ सुभ आरती सँवारी। संग सुमंगल गावहिं नारी।।
कंचन थार सोह बर पानी। परिछन चली हरहि हरषानी।। 
बिकट बेष रुद्रहि जब देखा। अबलन्ह उर भय भयउ बिसेषा।।
भागि भवन पैठीं अति त्रासा। गए महेसु जहाँ जनवासा।।
मैना हृदयँ भयउ दुखु भारी। लीन्ही बोलि गिरीसकुमारी।।
अधिक सनेहँ गोद बैठारी। स्याम सरोज नयन भरे बारी।।
जेहिं बिधि तुम्हहि रूपु अस दीन्हा। तेहिं जड़ बरु बाउर कस कीन्हा।।

छंद
कस कीन्ह बरु बौराह बिधि जेहिं तुम्हहि सुंदरता दई।
जो फलु चहिअ सुरतरुहिं सो बरबस बबूरहिं लागई।।
तुम्ह सहित गिरि तें गिरौं पावक जरौं जलनिधि महुँ परौं।।
घरु जाउ अपजसु होउ जग जीवत बिबाहु न हौं करौं।।

दोहा/सोरठा
भई बिकल अबला सकल दुखित देखि गिरिनारि।
करि बिलापु रोदति बदति सुता सनेहु सँभारि।।96।।

1.97

चौपाई
नारद कर मैं काह बिगारा। भवनु मोर जिन्ह बसत उजारा।।
अस उपदेसु उमहि जिन्ह दीन्हा। बौरे बरहि लगि तपु कीन्हा।।
साचेहुँ उन्ह के मोह न माया। उदासीन धनु धामु न जाया।।
पर घर घालक लाज न भीरा। बाझँ कि जान प्रसव कैं पीरा।।
जननिहि बिकल बिलोकि भवानी। बोली जुत बिबेक मृदु बानी।।
अस बिचारि सोचहि मति माता। सो न टरइ जो रचइ बिधाता।।
करम लिखा जौ बाउर नाहू। तौ कत दोसु लगाइअ काहू।।
तुम्ह सन मिटहिं कि बिधि के अंका। मातु ब्यर्थ जनि लेहु कलंका।।

छंद
जनि लेहु मातु कलंकु करुना परिहरहु अवसर नहीं।
दुखु सुखु जो लिखा लिलार हमरें जाब जहँ पाउब तहीं।।
सुनि उमा बचन बिनीत कोमल सकल अबला सोचहीं।।
बहु भाँति बिधिहि लगाइ दूषन नयन बारि बिमोचहीं।।

दोहा/सोरठा
तेहि अवसर नारद सहित अरु रिषि सप्त समेत।
समाचार सुनि तुहिनगिरि गवने तुरत निकेत।।97।।

1.98

चौपाई
तब नारद सबहि समुझावा। पूरुब कथाप्रसंगु सुनावा।।
मयना सत्य सुनहु मम बानी। जगदंबा तव सुता भवानी।।
अजा अनादि सक्ति अबिनासिनि। सदा संभु अरधंग निवासिनि।।
जग संभव पालन लय कारिनि। निज इच्छा लीला बपु धारिनि।।
जनमीं प्रथम दच्छ गृह जाई। नामु सती सुंदर तनु पाई।।
तहँहुँ सती संकरहि बिबाहीं। कथा प्रसिद्ध सकल जग माहीं।।
एक बार आवत सिव संगा। देखेउ रघुकुल कमल पतंगा।।
भयउ मोहु सिव कहा न कीन्हा। भ्रम बस बेषु सीय कर लीन्हा।।

छंद
सिय बेषु सती जो कीन्ह तेहि अपराध संकर परिहरीं।
हर बिरहँ जाइ बहोरि पितु कें जग्य जोगानल जरीं।।
अब जनमि तुम्हरे भवन निज पति लागि दारुन तपु किया।
अस जानि संसय तजहु गिरिजा सर्बदा संकर प्रिया।।

दोहा/सोरठा
सुनि नारद के बचन तब सब कर मिटा बिषाद।
छन महुँ ब्यापेउ सकल पुर घर घर यह संबाद।।98।।

1.99

चौपाई
तब मयना हिमवंतु अनंदे। पुनि पुनि पारबती पद बंदे।।
नारि पुरुष सिसु जुबा सयाने। नगर लोग सब अति हरषाने।।
लगे होन पुर मंगलगाना। सजे सबहि हाटक घट नाना।।
भाँति अनेक भई जेवराना। सूपसास्त्र जस कछु ब्यवहारा।।
सो जेवनार कि जाइ बखानी। बसहिं भवन जेहिं मातु भवानी।।
सादर बोले सकल बराती। बिष्नु बिरंचि देव सब जाती।।
बिबिधि पाँति बैठी जेवनारा। लागे परुसन निपुन सुआरा।।
नारिबृंद सुर जेवँत जानी। लगीं देन गारीं मृदु बानी।।

छंद
गारीं मधुर स्वर देहिं सुंदरि बिंग्य बचन सुनावहीं।
भोजनु करहिं सुर अति बिलंबु बिनोदु सुनि सचु पावहीं।।
जेवँत जो बढ्यो अनंदु सो मुख कोटिहूँ न परै कह्यो।
अचवाँइ दीन्हे पान गवने बास जहँ जाको रह्यो।।

दोहा/सोरठा
बहुरि मुनिन्ह हिमवंत कहुँ लगन सुनाई आइ।
समय बिलोकि बिबाह कर पठए देव बोलाइ।।99।।

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